कविताएं और भी यहाँ ..

Thursday, December 31, 2009

ये साल भी गुजर गया ,

ये साल भी गुजर गया ,
एक हवा के झौके की तरह ,
रात के एक सपने की तरह ,
अचानक छलक आये आंसुओ सा ,
आते जाते लोगो की तरह ,
रास्तो की तरह ,बादलो की तरह ,
धुप के जैसा , छाव की तरह ..
ये साल भी गुजर गया ..

ये साल मेरे लिए
उतना ही ख़ास रहा है ,
हर गुजरे हुए साल कि तरह ,
मेरे ख्वाबो का गवाह रहा है
नींद की तरह साथ रहा है ..
मेरी सारी इच्छाओ का आगाज़ रहा ,
हर गुजरे साल की तरह ,
ये जो साल भी गुजर गया ..

कभी तमन्ना इन्तेजार करती रही,
कभी वक़्त का ख्वाब रहा ..
कभी दोस्तों ने घेरा हुआ था ..
कभी तन्हाई ने साथ दिया ,
बस हमने मुडके न देखा ...
कभी ज़िन्दगी चुपचाप गुजरी ,
कभी हम गुजर गए बिना देखे,
और यु गुजरे की समझ ही न सके
इस गुजरे हुए साल की तरह |

Thursday, December 24, 2009

तेरे कारण ...

शुक्र है कि किसी इन्तजार में उम्मीद जिन्दा है ..
गर उम्मीद जिन्दा हो तो दिल में डर नहीं आता |

तुम्हारी याद आये न आये, दिन तो गुजर जाता है,
मुद्दा तो ये है कि दिल से तेरा ख्याल क्यों नहीं जाता |

एतिहायत जो बरतनी है तुझसे दूरी निभाने की,
वर्ना तुझे देखके मैं यूँ कभी पीछे वापस नहीं जाता  |

प्यास को दरिया में डुबाने की कोशिशों के बाद भी,
जाने होठो से आंसुओ का ये स्वाद क्यों नहीं जाता  |

कितनी तमन्नाये मचली और ख़तम भी हो गई वही पे ..
बस इन आँखों से एक तेरा ही सपना नहीं जाता ..|

यहाँ मेरे नाउम्मीद होने की सारी कोशिशे बेमतलब है ...
तू है या तेरी दुआए है, मैं ढंग से बर्बाद भी नहीं हो पाता |

Monday, December 21, 2009

? दौर ?


ये वो दौर है यारों जहाँ गरीब को मरने की जल्दी इसीलिए भी है,
कि कहीं ज़िन्दगी की कश्मकश में कफ़न महंगा न हो जाये ...
"Above quote I have heard somewhere and then I expand this idea ..."
और 
ये वो दौर भी है यारों जहाँ मैं तुमसे तेज़ चलने की कोशिश में इसीलिए लगा हूँ,
कि जो रोटी मेरी भूख की नहीं है वो कभी कहीं तुम्हे न मिल जाए ...
और ये दौर वो भी है यारो जहा तेरे कंधे पे मेरा हाथ इसीलिए भी जरूरी है ,
कि वक़्त कि इस दौड़ में कही तू मेरे आगे न निकल जाए |
और ये वो दौर भी है यारों जहाँ मेरे चेहरे पे मुखौटा इसीलिए भी जरूरी है, 
कि उभरते चेहरों की इस दुनिया में कही मेरा असल रंग न उतर जाए | - Mayank G

Wednesday, December 16, 2009

मैं कैसे भूल जाऊ |


कैसे  भूल  जाऊ  कि ,
तू  मेरा  ही  एक  हिस्सा  है  |
कैसे  भूल  जाऊ  कि 
तुने  ही  पूरा  किया  है  |
वो  तेरा  मुझ  पर  
खिलखिला  के  हसना ,
मेरे  बालो  पे  तेरी ,
अंगुलिया  फिराना |
मुझको  गले  लगाना 
और  देर  तक  रोना ,
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

कभी  रातो  में  जागकर ,
खाना  पकाना ,
मुझको  खिलाना , 
खुद  भूखा  सो  जाना ,
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |
सारी रात  जागकर ,
मेरा  कुछ  भी  सुनाना
तेरा  उफ़  भी न   करना ,
सिर्फ  मुस्कुराते  जाना  |
होने  लगे  गर  चिड  इससे ,
फिर  भी  हाँ मिलाना 
तेरी  बाहों  में  ही ,
फिर  थक  के  सो  जाना  |
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

कभी  अकेले  में  अपने  
सारे  राज  बताना  |
मुझसे  मेरा  हर ,  
राज  चुरा  ले  जाना  |
कभी  मुझे  छूना ,
कभी  छूने  न  देना ,
कभी  मेरे  कंधे  पे ,
टिक  कर  ही  दिन बिताना 
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

आज  दूर  है  तू ,
तेरी  याद  पास  है ,
मुझे  भूख  भी  अब 
तेरी  तस्वीर  के ख्याल  
के साथ  ही  आती  है | 
मैं   जब  सोता  हूँ ,
तो  चादर  बन  जाती  है  |
कभी  मैं  तुझे 
बिछा  लेता  हूँ ,
कभी  तू   मुझे  
ओढ़  के  सो  जाती  है   |
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

तू  मेरी  आदत  
हुआ  करती  थी  कभी ,
अब  मेरी  खामोशी  
बन  जाती  है  |
कभी  मेरी  
जागती  आखों  का 
शौक   थी तू ,
और  आज  नींद  में  
सपने  सी  
जरूरत  बन  जाती  है 
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

मैं  कैसे  भूल  जाऊ ,
कि  तू  मेरी  माँ  जैसी  हो ,
और  कभी  मेरी  साथी 
बन  जाती  है  ..
मेरे  जीवन  का  हर  
समाधान  हो  तो  तुम ,
मैं  जब  कभी  
प्रश्न  होता  हूँ 
तब  तु  मेरी  लिए  
उदाहरण  बन  जाती   है  ..

मैं कैसे भूल जाऊ तुम्हे ... 

Tuesday, December 15, 2009

ख़ामोशी को भी सुना है |

सीने   में  टूटन  सी  इतनी  क्यों  है ,
हालात  से  क्यों  झगडा  हुआ  है  |
जहा  से  चले  थे  वही  पे  खड़े  है ,
दिल  जाके  तुझपे  ही  अटका  हुआ  है  |
वो  रास्ता  दिखाने  आया  था  मुझको ,
जो  पहले  ही  कही  गुमशुदा  हुआ  है  |
खुशनुमा  है  राते  फिर  भी  क्यों  ग़म  है ,
उम्मीद  पर  ही  तो  चाँद  लटका  हुआ  है |
इनायत  है  तेरी  कि  मुझको  यु  देखा ,
नहीं  तो  अभी  तक  ये  अनदेखा  हुआ  है  |
उसकी  आँखों  में  यु  डर दिख  रहा  है
वो  प्यार  के  नाम  से  ही  सहमा  हुआ  है  ..
तमन्ना  थी  चिरागों  से  अँधेरे  बुझायेगे ,
रौशनी  कि  उम्मीद  में   घर  ही  जला  है  |
कही  तो  साजिश   करती  है  ये  बारिश ,
मिटटी  के  घरोदो  में  ही  पानी  घुसा  है  |
साँसों का   चलना   तुझसे   ही   मुमकिन ,
जिन्दा हूँ जब  तक  तूने  थामा  हुआ  है |
तू   रगों   में  दौड़ता   रहे  भी तो   क्या ,
नदी   का   पानी   कब   नदी   का   हुआ  है |
तेरे  आने  कि  कोई  दस्तक  भी  नहीं  हुई ,
वर्ना  हमने  तो  ख़ामोशी  को  भी  सुना है  |

Wednesday, December 9, 2009

उलझन


सुकून  की  तलाश  में
यहाँ  सुकून  खो  गया  |
उलझनों  का नाम ही,
अब ज़िन्दगी हो गया |
जीते  है  लोग  यहाँ ,
औरो  की  आँखों  के
सपनो  के  लिए  |
बेगाने  सपनो  को  ही
ज़िन्दगी  का  सारा
अरमान दे  दिया    |
समंदर  भीग  रहे  है ,
अपनी  ही  लहरों  से  ..
और  कहीं  सूरज  की
जल्दी घर जाने की जिद ने
चाँद  को रात भर,
पहरेदारी  का  काम  दे  दिया |

Tuesday, December 8, 2009

tum kya ho ...


तुम
जाने  किसकी  किस्मत   हो ,
पर  जान  लो ,
की  तुम  मेरी  भी  हसरत  हो  |
मैं  हकीकत  का भरोसा
कैसे  करू ,
जब,
तुम  साँसों  की  तरह
ज़िन्दगी  की  जरूरत  हो  |
तुमको जानने का
जितना वक़्त मिला है मुझे,
तुम उस वक़्त की
मुझको नियामत हो |
क्या हुआ
जो वक़्त कम मिला,
हर किसी से यहाँ पे,
तुम उन चंद,
लम्हों की
मेरे लिए हिदायत  हो |
ये नवाजिश है
ये जान नहीं पाया  |
तुम ,
मेरे लिए ,
जिंदगी की साजिश हो,
या फिर,
ज़िन्दगी भर की,
मोहलत हो ....

Monday, December 7, 2009

पहचान

मुझे विश्वाश है ,
कि मैं
तुम्हे जानता हूँ
मुझे मालूम है ,
तुम्हे कब हसाना है ,
कब जगाना है ,
कब आना है पास ,
और कब तुम्हे ,
कुछ बताना है |
मुझे पता है ,
कि तेरे दिल में
अकेलापन कब होगा
और कब उस तन्हाई की,
 जगह ले  जाना है |
मैं तुम्हे,
अपने घर की तरह,
जानता हूँ ,
जिसका एक - एक कोना ,
पहचानता हूँ  |
कब कहाँ  से धूल ,
हटाना है,
कब किस सामान को,
करीने से लगाना है  |
तुम किसी  तस्वीर
की तरह नहीं हो,
जिसको कही सजाना है,
तुम,
उस रोशनदान की तरह हो,
जिसे मैंने बचपन से
आज तक,
एक ही जगह देखा है,
जिसे  कभी चाँद सा कोमल
और कभी रोशनी सा ,
सूरज बन जाना है  |

Friday, December 4, 2009

पड़ाव

सुबह का सूरज,
दोपहर का सूरज,
शाम का सूरज  |

सुबह रण में जाता हुआ योद्धा
दोपहर आग बरस|ता हुआ योद्धा,
शाम को वीरगति पता हुआ योद्धा |
यही तो जीवन के पड़ाव है,
जो सूरज एक दिन में दिखा देता है  ||

Thursday, December 3, 2009

koshish

हर तरफ रोशनी बाटता फिर रहा है सूरज,

पर उस चाँद की कोशिश भी तो कम नहीं है |
जो भरपूर है पास तेरे उसके जाने का क्या ग़म,
कभी देकर वो देख जो तेरे पास ज्यादा नहीं है  |