कविताएं और भी यहाँ ..

Saturday, October 23, 2010

विरोधाभास ...

मैं तो कहता था कि कोशिशों  का आदमी हूँ ,
फिर भी जाने क्यों ज़िन्दगी से हारता हूँ |
मेरे चलने की अब तक  कहानी भी यही है,
मैं अब हर एक नए कदम पे कराहता हूँ |
कभी तेरे वादे पे बड़ा यकीन हुआ था मुझे ,
पर खुद को हर ठोकर पे खुद ही सम्हालता हूँ |
मैं तनहा हूँ या अकेला हूँ, अभिमानी हूँ या दम्भी ,
मैं तेरी आवाज़ सुनने की ख्वाहिशो में जागता हूँ |
तुझे डर है क़ि मैंने सारे रास्ते रोक रखे है तेरे ,
उन गलियों  को कभी याद करो जिन्हें मैं संवारता हूँ |
तेरी आवाज़ में सुनने को तरस गया हूँ मैं जो आज,
उन  बातों को किसी तिजोरी में अब भी सम्हालता हूँ |
मुझसे बेहतर इस जहाँ में कई कंधे मिलेंगे  तुझे,
मैं अपने कंधे से यादो की गठरियाँ नहीं उतारता हूँ  |
मेरी उदासी को मैंने अपने हुनर से ही छिपाया है ,
मैं रोने के लिए आजकल सिर्फ कोने तलाशता हूँ ..

Thursday, October 21, 2010

हालात ..

वो आज मुट्ठियों  में समेटे सारा जहाँ चल रहे हैं,
हम, अँधेरे जिधर  है अब उस तरफ चल दिए है |
धुओं ने तो, छोड़ दी है अब शागिर्दी दीयों की ,
जो रौशनी के उतावले थे, वो खुद ही जल रहे हैं |
उसकी दोस्ती को ज्यादा मुफीद न समझना,
जो कभी हाथ मिलाया था , अब तक मल रहे है |
मैं शिकवा खुद से करू या गिला ज़िन्दगी से,
सबने सीखा है यहाँ पे, सब चालें  ही चल रहे हैं ..
वो बर्बाद होने की कोशिश में आबाद हुआ जाता था,
रौशनी को समेटे है  और अँधेरे पीछे चल दिए है |
मेरी उम्मीद पे अब मुझे ही यकीं कहाँ  है बाकी ,
मेरे इस हालात ने अब सारे चेहरे बदल दिए है |