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Sunday, July 22, 2012

"स्टेटिसटिक्स" ,

आजकल,
बदनसीबी का हिसाब कर रहा हूँ ,
समझते हो ना, 
"स्टेटिसटिक्स" ,
( अजीब शब्द है ,
उच्चारण कठिन है ,
बिलकुल तुम्हारी तरह.. )
हाँ तो ,
"स्टेटिसटिक्स" ,
कितना डूबे , कितना टूटे,
क्या खोया , क्या पाया ,
क्या जोड़ा , कितना तोडा,
जो गुम हुए  खुद में ,
और कभी खुद को ,
ढूंढ निकाला ...
और "एनालिसिस"  में पाया,
कि ये बदनसीबी तो ,
रस्सी में लगी ,
गांठों जैसा ही  है ,
जितनी ज्यादा हो,
ज़िन्दगी पे 
उतनी ही मजबूत पकड़ ,
लेकिन एक बात तो तय है ,
तेरे साथ वक़्त बिताकर ,
एक चीज तो ,
सीख ही गया ,
चेहरे के नीचे का चेहरा पढना,
बातों का मतलब पकड़ना ,
और सीख गया ,
कि हर वस्तु,
( ये  "वस्तु ",
कभी कभी "इंसान" भी है)
का एक नियत उपयोग होता है ,
समय के अनुसार ,
आवश्यकता के अनुरूप,
स्थिति के अनुरूप,
और सही कहूं तो ,
ज़िन्दगी का 
"स्टेटिसटिक्स",
तुमसे ज्यादा ,
किसने किया होगा ,
तभी तो हर चाल शानदार है ,
और हर तीर निशाने पे ..
तुम तो छुपे रुस्तम निकले,
ये सब करने के बाद भी ,
कहानी के नायक ही  हो ...