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Tuesday, April 10, 2012

मैं बड़ा जो हो गया हूँ ना !!


अब नहीं बनते दुश्मन मेरे
और नए दोस्त भी नहीं ...
अब खुद से ही सारे झगडे है
और खुद से सारी यारी भी |
 
अब नहीं बनाता मैं,
कागज़ के हवाई जहाज़,
अब जो बैठने लगा हूँ उनमे,
उड़कर कहीं दूर जाने के लिए ....
 
कागज़ की नाव तो हरगिज़ नहीं ,
तैरकर  कही दूर निकल जाती है ,
तो ताली भी नहीं बजाता मैं ,
और गीली होकर जब डूबती है,
तो अब रोता भी नहीं ...
 
कही किसी दीवार पे ,
या कापी के आखिरी पन्ने पे,
किसी कार के धूल भरे शीशे पे,
अपना नाम लिखना ?
वो कब का भूल चूका हूँ मैं |
 
अब मैं सिर्फ  हिसाब करता हूँ,
पैसो का,
कल का,
रिश्तों का,
ज़िन्दगी का ...
मैं बड़ा जो हो गया हूँ ना !!
 
 
 
 --mayank Goswami

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बचपन मासूम होता है ... बड़े होते ही सोच बदलने लगती है ... सुंदर रचना

Mayank said...

bahut bahut shanyawad sangeeta ji ...