मैं मुड़कर अब क्यों देखूं पीछे ,
जहाँ रहा अब कुछ शेष नहीं |
जीवन में चलना है, बढना है ,
नियति मेरी बनना अवशेष नहीं |
मैं अथक, अमिट रास्तो का राही,
लक्ष्य अनन्त है, कोई प्रदेश नहीं |
पथिक हूँ, साथी कई मिलते है ,
कोई बुरा नहीं, कोई विशेष नहीं |
मैं हूँ आभारी इस जीवन का ,
जिसने धैर्य दिया, आवेश नहीं |
मैं नहीं किसी पटल का ध्रुव तारा,
मैं विनम्र बहुत हूँ, आदेश नहीं |