गई शाम ज़िन्दगी को कसौटी पे कसके देखा है,
होते ही अँधेरा, परछाई को भी दूर जाता देखा है ...
देखा है बदलते रंगों को भी, जो बदस्तूर जारी है..
मैंने वक्ते जरूरत जेबों को होते हुए गहरा देखा है ...
मैंने तो ये भी देखा है कि वादों की उम्र कितनी है,
मैंने झुर्रियों से झांकता हुआ इंतज़ार भी देखा है ..
मैंने देखा है गिरगिटों औ' लोगों को साथ साथ,
मैंने तो सारी कसमों को भी रंग बदलते देखा है..
हर जुबाँ को उलटते पलटते देखा है मैंने बार बार,
मैंने आज ही हर शब्द का सही मतलब देखा है ...
मैंने आँखों से परे देखा है और दिल से परे भी ,
मैंने आज ही कही खुदा का नया मतलब देखा है ..
मेरी आँखों पे ये पट्टी भी बंधी रहे, मुमकिन है,
पर मैंने इन अंधेरो को उजालों से बेहतर देखा है