जो पास है वो कभी ख्वाहिश थी अपनी,
पर आज ख्वाहिश ही कुछ और की है ।
क्यूँ आगे निकल जाती है ख्वाहिशें ,
छोड़कर पीछे हर मुकाम ..
काश थम जाती ये कही पर
और जी लेते हम थोडा ..
या दौड़ पाते हम तेज़ इतना
कि हर ख्वाहिश के पहले मुकाम होता ।
पर आज ख्वाहिश ही कुछ और की है ।
क्यूँ आगे निकल जाती है ख्वाहिशें ,
छोड़कर पीछे हर मुकाम ..
काश थम जाती ये कही पर
और जी लेते हम थोडा ..
या दौड़ पाते हम तेज़ इतना
कि हर ख्वाहिश के पहले मुकाम होता ।