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Thursday, November 3, 2016

डायरी - ज़िन्दगी

हाथों में डायरी लेके
आज जब बैठा,
और सोचा कि ,
काश ये ज़िन्दगी,
उस नोट्स के जैसी ही पलट जाती ,
तो शायद दिन ,
पेज बन जाते ...
मैं जाता फलां पेज पर,
और मिटा देता ,
दिन , महीने या हफ्ते ,
जो मुझे पसंद नहीं है ,
पीछे जाकर,
कुछ दिन फाड़ देता,
पन्नो की तरह
और सबको ,
एक डस्ट बिन में ,
डाल आता |
और कुछ दिनों के ऊपर,
नोट्स लगाता,
किसी खास वक़्त को ,
हाई लाइट कर देता ..
जाता वापस,
पापा के पास ,
और समय पर पूछता उनसे,
कि ये जो दर्द की गोलियां है ,
वो आखिर
किस मर्ज की गोलियां है |
या फिर उस दिन,
ऑफिस से जल्दी जाकर,
ट्रेन में लोगो को
बैठने से मना करता ,
कि इसमें बोम्ब है ..
और थोडा पीछे जाकर ,
स्कूल में ,
अपने दोस्तों से कहना है ,
माफ़ करना दोस्त ,
मेरा इरादा वो नहीं था |
और हाँ,
थोड़ा सा क्रिकेट और खेलना है ...
थोड़ा सी शरारत भी ,
और थोड़ा पीछे जाकर ,
कई सारे दिन ,
पन्नो कि तरह ,
हर रंग से रंग देता ..
वो सारे दिन,
जब स्कूल में ,
पनिशमेंट मिला था ..
उनपे से एक नोट्स हटाना है
(कि एक एक को देख लूँगा..) ..
अपने सारे टीचर्स को,
एक रिटर्न नोट देना है ...
थेंक यू सर :) ...
और ,
उस साइकिल पे ,
घर से स्कूल के दूरी,
वो बढ़ानी है ...
और...
और...
बहुत कुछ ...
काश ,
ये डायरी ही ज़िन्दगी होती,
तो अभी पलट देता इसे ..
-Mayank Goswami