कुछ इस तरह गुजरा है ये वक्त हम पर,
कुछ शिकन कुछ लकीरों में उतर आया है .
-mg
पतझड़ में गिरते
पत्तों के
गिरने की आवाज सुनी है?
कैसे सुनोगे,
होती ही नहीं,
सारी आवाज़ें होती है,
गिरने के पहले (या बाद),
किसी उम्मीद के सहारे
सोचता होगा,
मैं नही गिरूंगा,
पकड़े रहूंगा,
फिर आएगा एक झौंका,
देगा हल्का सा धक्का,
लगेगा मुक्त हो गया,
पर नही,
उड़ा कर ले जाएगा ऊपर,
घुमाएगा बवंडर की तरह,
फिर सहसा रुक जाएगी हवा,
स्थिर होगा,
अतरायेगा,
इधर, उधर,
ऊपर, नीचे,
फिर आएगा,
धीरे धीरे,
नीचे,
अपने पेड़ से कहीं दूर,
जमीन पर,
हवा फिर आएगी,
सरसराहट के साथ,
अब आएगी आवाज़,
घिसटने की,
कुछ और हजार पत्तों के साथ,
अगली सुबह,
एक झाड़ू,
लगाएगी इनको किनारे,
सुलगा देगी एक माचिस,
हो जाएगा सामूहिक,
अंतिम संस्कार,
आजकल,
इंसानों का पतझड़ चल रहा है।
~ मयंक
(Dedicated to late Ankit Chauhan)