कविताएं और भी यहाँ ..

Thursday, October 21, 2010

हालात ..

वो आज मुट्ठियों  में समेटे सारा जहाँ चल रहे हैं,
हम, अँधेरे जिधर  है अब उस तरफ चल दिए है |
धुओं ने तो, छोड़ दी है अब शागिर्दी दीयों की ,
जो रौशनी के उतावले थे, वो खुद ही जल रहे हैं |
उसकी दोस्ती को ज्यादा मुफीद न समझना,
जो कभी हाथ मिलाया था , अब तक मल रहे है |
मैं शिकवा खुद से करू या गिला ज़िन्दगी से,
सबने सीखा है यहाँ पे, सब चालें  ही चल रहे हैं ..
वो बर्बाद होने की कोशिश में आबाद हुआ जाता था,
रौशनी को समेटे है  और अँधेरे पीछे चल दिए है |
मेरी उम्मीद पे अब मुझे ही यकीं कहाँ  है बाकी ,
मेरे इस हालात ने अब सारे चेहरे बदल दिए है |

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया...

Sunil Kumar said...

सुंदर रचना बधाई

Mayank said...

बहुत बहुत शुक्रिया ..