कविताएं और भी यहाँ ..

Wednesday, February 22, 2012

मेरी पत्नी नेहा के लिए ...


कभी मैं सोचता हूँ ,
कि क्यों नहीं लिखता मैं ,
तेरे बारे में ,
क्यों नहीं उतारता,
कविताओं में तुम्हे ?
शायद  कविताएं मेरी ,
तुम्हे पाकर अमर न हो जाये,
इस डर से नहीं लिखता ,
नहीं चाहता मैं ,
कि कुछ भी रहे तेरे बारे में ,
पढने को ,
जब तुम यहाँ न हो ,
कि बहुत याद आओगे तुम,
हर शब्द के बाद ,
तुमसे लड़ना, झगड़ना ,
कभी हुआ ही नहीं
औरो की तरह ,
कि तुम चुपचाप ,
मुझे आत्मसात करते जाते ,
मेरी हर गलती पे ,
पर्दा डालते हुए ,
और तेरे इस विशाल व्यक्तित्व को,
शब्दों में बांधकर ,
मैं तुम्हे किसी सीमा में,
बांधना नहीं चाहता |
तुम,
आइना हो मेरे लिए ,
समझा हूँ जब ,
तुम नहीं हो आज आसपास ,
तो तुम्हे क्यों छोटा करू ?
कुछ लिखकर ..
तुम तो भावना हो,
जिसे मैं कभी शब्दों में,
बाँध ही नहीं सकता ...
तुम,
निरंतरता हो ...
निशब्द ,
आत्ममंथन की तरह,
मेरे अन्दर ही उपस्थित ..
तो क्यों बांधू मैं ,
शब्दों में तुम्हे ..
तू तो सारा आकाश है ,
जितना मैं देख पता हूँ ,
और कैसे लिख पाऊंगा ,
उस आकाश पे,
जो अनलिखा ही ,
पढ़ा जा सकता है | - mayank

Wednesday, February 8, 2012

यू गिरना ...


मैं कभी जो हार के गिर पड़ा,
वक़्त लगा पर फिर उठ गया |
और कभी गिरा किसी ठोकर पे ,
धूल झाड कर फिर खड़ा हुआ |
कभी दुःख ने गिराया धोखे से,
रोया, पोंछे आंसू और चल पड़ा |
यू गिरना पडना तो बस लगा रहा,
समझाता गया बचना है कहाँ-कहाँ |
कोई  बात तो है ऐसे गिरने में,
नई नसीहत लेकर हुआ खड़ा |
कभी आँखों से आंसू की तरह गिरा,
कि आचल में गिरा और सिमट गया |
पर किसी की नज़रो से ऐसा गिरना,
कि वो गिरता गया , बस गिरता गया,
और उठने कि कोई गुंजाइश ही नहीं ,
जो नजर से गिरा, वो दिल से उतर गया  |