कभी मैं सोचता हूँ ,
कि क्यों नहीं लिखता मैं ,
तेरे बारे में ,
क्यों नहीं उतारता,
कविताओं में तुम्हे ?
शायद कविताएं मेरी ,
तुम्हे पाकर अमर न हो जाये,
इस डर से नहीं लिखता ,
नहीं चाहता मैं ,
कि कुछ भी रहे तेरे बारे में ,
पढने को ,
जब तुम यहाँ न हो ,
कि बहुत याद आओगे तुम,
हर शब्द के बाद ,
तुमसे लड़ना, झगड़ना ,
कभी हुआ ही नहीं
औरो की तरह ,
कि तुम चुपचाप ,
मुझे आत्मसात करते जाते ,
मेरी हर गलती पे ,
पर्दा डालते हुए ,
और तेरे इस विशाल व्यक्तित्व को,
शब्दों में बांधकर ,
मैं तुम्हे किसी सीमा में,
बांधना नहीं चाहता |
तुम,
आइना हो मेरे लिए ,
समझा हूँ जब ,
तुम नहीं हो आज आसपास ,
तो तुम्हे क्यों छोटा करू ?
कुछ लिखकर ..
तुम तो भावना हो,
जिसे मैं कभी शब्दों में,
बाँध ही नहीं सकता ...
तुम,
निरंतरता हो ...
निशब्द ,
आत्ममंथन की तरह,
मेरे अन्दर ही उपस्थित ..
तो क्यों बांधू मैं ,
शब्दों में तुम्हे ..
तू तो सारा आकाश है ,
जितना मैं देख पता हूँ ,
और कैसे लिख पाऊंगा ,
उस आकाश पे,
जो अनलिखा ही ,
पढ़ा जा सकता है | - mayank