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Wednesday, February 8, 2012

यू गिरना ...


मैं कभी जो हार के गिर पड़ा,
वक़्त लगा पर फिर उठ गया |
और कभी गिरा किसी ठोकर पे ,
धूल झाड कर फिर खड़ा हुआ |
कभी दुःख ने गिराया धोखे से,
रोया, पोंछे आंसू और चल पड़ा |
यू गिरना पडना तो बस लगा रहा,
समझाता गया बचना है कहाँ-कहाँ |
कोई  बात तो है ऐसे गिरने में,
नई नसीहत लेकर हुआ खड़ा |
कभी आँखों से आंसू की तरह गिरा,
कि आचल में गिरा और सिमट गया |
पर किसी की नज़रो से ऐसा गिरना,
कि वो गिरता गया , बस गिरता गया,
और उठने कि कोई गुंजाइश ही नहीं ,
जो नजर से गिरा, वो दिल से उतर गया  |

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