जो क्षितिज पे है ,
वो विशाल है ,
सिर्फ वही बेमिसाल है ?
जो पास है,
जो साथ है,
जो आज अपने
हाथ है,
उसकी कोई बिसात है ?
वो जो सूर्य है ,
वो तेज़ है ,
वो उग्र है,
पर रात भर
जो दिया जला,
सुबह तलक
वो बुझ गया ,
उसकी क्या
औकात है ?
जो नज़दीक था
एक उम्र ,
उसकी कोई क़द्र है ?
या फिर
उसकी याद भी ,
सर्द है ?
जो ना मिला ,
उसके बिना ,
ज़िन्दगी का ,
हिसाब क्या ?
पर ज़िन्दगी ,
कोई सामान है ?
फिर नकाब क्यों ,
इसका फिर
हिसाब क्यों ?
इसमें भी
नुक्सान नफा ?
ज़िन्दगी ना हुई,
दूकान हुई ,
हर साँस भी ,
सामान हुई ?
भूल हुई ,
या चूक थी ,
जो पास था ,
नाखास था ,
नज़र में ,
तो सिर्फ चाँद था ,
कि जो दूर है ,
वही ख़ास है ,
वही बेमिसाल है ..