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Tuesday, October 14, 2025

आख़िरकार

आख़िरी कुछ नहीं होता,

आख़िरकार होता है, 

एक लंबे सफ़र में ,

मेरा तुन्हारा 

बस किरदार होता है 

पहले भी,

मेरे बाद भी रहेगा,,

ख़ालीपन,

बस 

कुछ वक्त के लिए,

भर जाता है,

फिर अपने जाने के बाद,

फिर से 

खाली हो जाने के लिए,

तुम्हें पता है ना, 

ब्रह्मांड में सब कुछ 

दूर जा रहा है, 

एक दूसरे से ,

अगर बढ़ रहा है कुछ,

तो वो खालीपन है,

जिसका भी कोई छोर ,

आख़िरी नहीं होता 

- मयंक

3 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार 16 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर

हरीश कुमार said...

बहुत सुंदर रचना