मैं जब रोशनी में आया तो उंगलिया उठने लगी ,
पर कुछ अपने ऐसे है जो मुझे खोने नहीं देते
कुछ हसरते तकती रहती है मेरी आहटे हरसू,
कुछ सपने मुझे कभी चैन से सोने नहीं देते
मैं जब यहाँ पूरा टूट के बिखरना चाहता हूँ ,
कुछ हाथ ऐसे है, जो जमीन पर गिरने नहीं देते
कभी कहीं जिंदगी में निराश मैं हुआ हु तो ,
ऊपर जो खुदा है वो मुझे कभी रुकने नहीं देते,
और कुछ साथी ऐसे बने है यहाँ पे मेरे हमदम,
कि खुद मिट जाए पर मुझे झुकने नहीं देते
मैं उनके इस अहसान को चुकाऊंगा कैसे ,
जो मुझे कभी जेब में हाथ डालने नहीं देते
कभी कश्तिया मन बना लेती है धोखा देने का
साहिल पे यही हाथ होते है जो डूबने नहीं देते
Wednesday, January 13, 2010
Tuesday, January 12, 2010
रफ़्तार का अंदाजा नहीं है ...
रास्ते बनेगे कैसे, इसका कोई कायदा नहीं है,
जिंदगी बहुत तेज है रफ़्तार का अंदाजा नहीं है |
ये जब यु मिले है, खो भी जाना है इनको यहाँ,
क्या इन्हें पता है, इश्क को रहम आता नहीं है |
तुम्हारी जिन आदतों से परेशान था जो मैं कभी ,
कब दोहराएगा वो फिर तू, ये मुझे पता नहीं है |
कभी दो बूँद पानी ही ज़िन्दगी दे दे किसी को ,
पर कौन है यहाँ पे जो सागर का प्यासा नहीं है |
जीने के करीने कुछ अलग है जो जहाँ से हमारे,
मतलब ये है क्या कि हमें जीना आता ही नहीं है |
हद तो ये कि आँखे बंद करके बैठे है लोग यहाँ,
सच तो ये है मौत का डर किसको डराता नहीं है |
भूल जाने को बोल रहा है दिल हर खुशनुमा लम्हा,
वक़्त कि बर्बादी है, जब वो सपनो में भी आता नहीं है |
करीने , सलीके, इज्ज़त, सऊर, लफ्जों का क्या करना,
जब यहाँ पे शराफत का कोई एक पैमाना ही नहीं है |
मुद्दतो से सोच रहे है बदल जाऊँगा एक दिन मैं भी,
पत्थर नहीं बदलते जब तक कोई तराशता नहीं है |
ज़िन्दगी का वक़्त बेवक्त इम्तिहान लेता है वो रकीब ,
अब तक मुझे सीधे से जवाब लिखना ही आता नहीं है |
जला दो ख्वाबो को, किताबो को, दफना दो दूर मुझसे,
दिल की सुनता हूँ,सिवा इसके कुछ आता ही नहीं है ||
जिंदगी बहुत तेज है रफ़्तार का अंदाजा नहीं है |
ये जब यु मिले है, खो भी जाना है इनको यहाँ,
क्या इन्हें पता है, इश्क को रहम आता नहीं है |
तुम्हारी जिन आदतों से परेशान था जो मैं कभी ,
कब दोहराएगा वो फिर तू, ये मुझे पता नहीं है |
कभी दो बूँद पानी ही ज़िन्दगी दे दे किसी को ,
पर कौन है यहाँ पे जो सागर का प्यासा नहीं है |
जीने के करीने कुछ अलग है जो जहाँ से हमारे,
मतलब ये है क्या कि हमें जीना आता ही नहीं है |
हद तो ये कि आँखे बंद करके बैठे है लोग यहाँ,
सच तो ये है मौत का डर किसको डराता नहीं है |
भूल जाने को बोल रहा है दिल हर खुशनुमा लम्हा,
वक़्त कि बर्बादी है, जब वो सपनो में भी आता नहीं है |
करीने , सलीके, इज्ज़त, सऊर, लफ्जों का क्या करना,
जब यहाँ पे शराफत का कोई एक पैमाना ही नहीं है |
मुद्दतो से सोच रहे है बदल जाऊँगा एक दिन मैं भी,
पत्थर नहीं बदलते जब तक कोई तराशता नहीं है |
ज़िन्दगी का वक़्त बेवक्त इम्तिहान लेता है वो रकीब ,
अब तक मुझे सीधे से जवाब लिखना ही आता नहीं है |
जला दो ख्वाबो को, किताबो को, दफना दो दूर मुझसे,
दिल की सुनता हूँ,सिवा इसके कुछ आता ही नहीं है ||
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