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Friday, February 26, 2010

चयन की आज़ादी !!

ये समंदर शोर मचाता रहा कहीं किनारों पर ,
और वो  बादल है जो कही चुपचाप बरस गए|
एक खुद में सिमट के खुश रहता है अहंकारी ,
और वो दूसरो की ख़ुशी के लिए खुद मिट गए |

महफ़िल में किसने किसे देखा, बड़ा सवाल है,
और हम उनकी नजरो के लिए ही सवरते गए |
कितनी तमन्नाओ को यु ही अधूरा छोड़ दिया ,
और वो हमें देखे बिना ही चुपचाप गुजर गए |

आदमी  खुद को ही देखता रहता है आईने में,
खुद नजरो में गिरते रहे, महफ़िलो में सवर गए |
मुद्दे बड़े है ज़िन्दगी को समझने के लिए दोस्त,
हम चौराहों पे बेबात क़ी बहस में ही उलझ गए |

कहते रहे आबाद रहो, बर्बादी के जश्न में डूबे हुए,
हम जश्न  मनाते रहे, वो हमसे आगे निकल गए |
कभी चाहा किसी ने, हम भी उन जैसे आबाद रहे,
अभिमानी हम, आसान रास्ते पर ही  बढ़ गए |


रास्ते खेल खेलते है गाहे बगाहे हर किसी के साथ,
कभी बहुत सीधे थे, और कभी मोड़ पर बदल गए |
तुम सीख लो मुझसे कि बादल बनना है या समंदर ,

बादल पसंद थे, पर अरमान समंदर से बड़े हो गए |

2 comments:

Prabhash Dhyani said...

aapki is rachna ki prashansha karne ke lie shabdon ka chayan karna bahut hi mushkil hai bandhu.... atyant hi prabhavit hue ham

Anonymous said...

nice..
kuch lines to awesome hai
keep it up Mr. Goswami and keep on writing....
u r a fab. poet
All d best