इस उम्र के रास्ते भी बड़े सयाने निकले ,
वही जा के अटके जहाँ से ज़माने निकले ..
कदम बढाये थे बड़ी एहतिहायत से मैंने,
घर को चला था, और ये मैखाने पे निकले |
जिन उम्मीदों के सहारे चल पड़े थे सफ़र पे,
साथ देने के वो सारे वादे झूठे तुम्हारे निकले |
मैं रास्ता तलाशने कि कोशिश में चलता रहा,
कही मुहाने बंद थे, और कही चौराहे निकले |
2 comments:
bahut badiya.....
Rachna to zabardast hai,par thoda aur dil ko chune wali nayi kavita likhi jaye................
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