कविताएं और भी यहाँ ..

Sunday, August 22, 2010

...उन सब लोगो के नाम ....

ये कविता है ...उन सब लोगो के नाम जिन्होंने ने इस अदने से आदमी की कविता को पूरे धैर्य के साथ सुना है.. बिना किसी शिकायत के.. ये उन सब लोगो के नाम जो मुझे केवल कविताओ के नाम से ही जानते है.. दूसरा कोई कारण ही नहीं और शायद इससे बेहतर कोई पहचान भी नहीं चाहिए मुझे .. क्योकि इससे अलावा साथ बैठने के सारे कारण बेमानी है !!!

प्रभाष , हन्नी "the" गर्ग , प्रशांत  भाई, अनिकेत, आनंद जोशी, शैलेन्द्र बहेरा, राम, पंड्या जी , चिली , अमित श्रीवास्तव, विमल प्रधान , मौलिक ,अमोल , श्वेता , मानसी , प्रमोद , गोविन्द, अमित भैया , हिमांशु, साकेत, आशीष अभिषेक, राजीव, मनीष निगम , संदीप दुबे , रवि , सचिन, चेतन , नीरव , सतीश पाटीदार , सतीश चटाप,निलेश और भी बहुत सारे लोग ... माफ़ करना अगर कोई छूट गया हो तो ... बस कागज पे नाम नहीं आया .. दिल में तो है ही ....
------------------------------------

कुछ शामे न ढलें,
तो बेहतर है,
कभी कभी रौशनी भी,
आँखों से सहन नहीं होती |
दोस्त होते है साथ जब ,
तो कैसी भी दिक्कत आये,
पर फरिश्तों की जरूरत नहीं होती |
सिहरन होती है,
हाथ छूटने के डर से ,
लेकिन जब तक डूबोगे नहीं ,
समंदर की इज्ज़त नहीं होती |
मैं जब होता हूँ राहों पे,
लोग कहते है,
धीमे चलता है ,
दोस्त होते तो कहते है ,
कि तेरी उड़ान,
इतने नीचे भी कम नहीं होती |
आज रात गुजर रही है,
चाँद भी गोल दिख रहा है ,
पर मेरे कमरे में ,
बिना दोस्तों के ,
आजकल रौशनी नहीं होती |
मेरी तमन्ना है कि  ,
साथ ख़तम न हो कभी,
लेकिन ये जो ज़िन्दगी है ,
साज़िश कर रही है ,
ये बेवफा किसी की,
महबूबा नहीं होती |
रास्ते बदल जायेगे,
कल तुम कही ,
और हम कही जायेगे |
पर एक सच यह भी है,
कि मैं नहीं रहूँगा
जिस दिन यहाँ पे,
कही दूर
दफ़न कर देंगे लोग मुझे |
पर तुम आओगे ,
जिस दिन ,
तब गजल होगी ,
एक शाम होगी ,
कुछ धुंआ होगा ,
और थोडा शुरूर भी
ऐसे भी  अब  ,
दोस्तों के बिना ,
कोई कविता नहीं  होती  |

बर्बादी

संसद से सड़क तक सिर्फ मुद्दा ये ही गरम है,
की आम आदमी आखिर इतना क्यों नरम है |
जो बड़ा है यहाँ वो नंगा दौड़ सकता है जहाँ में,
सिर्फ तमाशा देखने वाले की ही आँखों में शर्म है |

कहीं देश की बर्बादी का जश्न जोर शोर से है ,
और यहाँ आज रात भी भूखे सोने का मातम है| 
 कल तेरे उठ खड़े होने पे, चौतरफा सवाल होंगे, 
यहाँ ईमान को बेचकर आना सबसे बड़ा धर्म  है |

Saturday, August 14, 2010

तेरा होना ही ..

कभी तुम मुस्कुरा देते हो,

पलट कर,
और मैं खुश हो जाता हूँ,
तेरे हसते हुए चेहरे की
कल्पना में खोकर  |

तू जीवन दे रही है मुझे,
मुझमे अमृत सी फैलकर ,
मैं तृप्त सा हो रहा हूँ,
तेरी मौजूदगी को लेकर |

कभी तेरे स्वरुप को,
जान ही नहीं पाया,
मैं रह गया खुद में ही
बंधकर उलझकर |

तू हर गुजरते पल के साथ,
बड़ी होती गई ,
कभी मुझमे मिलकर ,
कभी मुझसे बिछड़कर !