कविताएं और भी यहाँ ..

Saturday, October 23, 2010

विरोधाभास ...

मैं तो कहता था कि कोशिशों  का आदमी हूँ ,
फिर भी जाने क्यों ज़िन्दगी से हारता हूँ |
मेरे चलने की अब तक  कहानी भी यही है,
मैं अब हर एक नए कदम पे कराहता हूँ |
कभी तेरे वादे पे बड़ा यकीन हुआ था मुझे ,
पर खुद को हर ठोकर पे खुद ही सम्हालता हूँ |
मैं तनहा हूँ या अकेला हूँ, अभिमानी हूँ या दम्भी ,
मैं तेरी आवाज़ सुनने की ख्वाहिशो में जागता हूँ |
तुझे डर है क़ि मैंने सारे रास्ते रोक रखे है तेरे ,
उन गलियों  को कभी याद करो जिन्हें मैं संवारता हूँ |
तेरी आवाज़ में सुनने को तरस गया हूँ मैं जो आज,
उन  बातों को किसी तिजोरी में अब भी सम्हालता हूँ |
मुझसे बेहतर इस जहाँ में कई कंधे मिलेंगे  तुझे,
मैं अपने कंधे से यादो की गठरियाँ नहीं उतारता हूँ  |
मेरी उदासी को मैंने अपने हुनर से ही छिपाया है ,
मैं रोने के लिए आजकल सिर्फ कोने तलाशता हूँ ..

4 comments:

Prabhash Dhyani said...

One more masterpiece bhai.... lekin ab sad sad kaafi ho gaye... kuch light hearted bhi kuch ho jaye.

Anonymous said...

Mast hai sirji...

Anonymous said...

Pratik: Mast hai sirji.... :)

Amol said...

Subhan allah... :)