अपनी पिछली कविता प्रेम लिखने के बाद एहसास हुआ की बात तो अभी ख़त्म ही नहीं हुई, तो सोचा कि मैं तब तक लिखूंगा इसे जब तक सब कुछ नहीं लिख डालता ... जो भी मन में है या जो भी देखा सुना है मैंने जीवन में .. तो पिछली कविता के आगे की बात भी पढ़िए .. इस कविता में ( इसके पहले अगर आपने मेरी कविता "प्रेम ?" न पढ़ी हो तो कृपया उसे एक बार पढ़े ताकि प्रवाह बना रहे, इस कविता के ठीक नीचे है ) .
मैं अब तक यही समझा,
कि तुमने प्रेम भी किया है,
तो दया जानकर,
और मैं याद भी करता हूँ ,
तो दुआ मानकर |
तेरे न होने का ,
इतना फर्क तो पड़ा है मुझे ,
कि अब रातो को जागता हूँ,
मैं इबादत जानकर |
तुम्हारे स्पर्श को धो डालने की,
वो सारी कोशिशे,
जब नाकाम हो गई,
तो अपना लिया है मैंने,
उसे भी रिवाज़ मानकर |
तुमसे हुई उन सारी बातो का,
एक गट्ठा,
मैं अपने साथ लेकर,
चल रहा हूँ,
इस उम्मीद में,
कि किसी दिन शायद,
इसे पढने की शक्ति
मुझे मिल जायेगी |
तुमने तो अब
बोलना भी बंद कर दिया है ,
मुझसे,
मैं भी चुप बैठ जाता हूँ,
खुद को गूंगा मानकर |
मैं तुम तक पहुचने की,
कोशिशो में
अब भी जुटा हुआ हूँ,
तेरी यादो को ही,
एक सीढ़ी मानकर |
मैं उतना सफल न हो पाया,
न प्रेम में, न जीवन में,
जो पर्याप्त हो पाता,
तुम्हारे लिए,
पर अभी भी,
थोडा परेशान हूँ ,
कि,
प्रेम का मापदंड ,
क्या ये भी होता है?
पर तुम्हे तो पता है,
तेरी हर बात को,
मान तो लेता था मैं,
गीता का जानकर,
गंगा सा मानकर |
2 comments:
bahut khoob ... dono nazmein bahut achhi hain ...
thanks ... thanx a lot.. :)
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