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Wednesday, November 24, 2010

प्रेम -४

मोहब्बत का रंग फिर दागदार निकला ,
इस बार भी वो एक किरदार निकला ..
जो खुशियों के चश्मे में नहाने गया था,
बाहर जब भी आया, तार तार निकला |
बहुत बेजुबां निकले  दर्द और अफ़साने,
उस गली से मैं फिर भी बार बार निकला |

4 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

umda rachna

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

Mayank said...

शुक्रिया संजय जी ..

Dr Xitija Singh said...

दिल है के मानता नहीं ... बहुत खुबसूरत नज़्म ...

Mayank said...

शुक्रिया क्षितिजा जी...