ये कविता विचलित मन के लिए ....
दिल में कितना शोर कर गए,
वो परिंदे जब पेड़ो से उड़ गए |
हम साथ में हँसे , बहुत हँसे
साथ में रोये, बहुत रोये |
फुर्सत मिली तो क्या सोचा कभी ,
उस मोड़ पे ही क्यों मुड़ गए |
सारे शौक अब अलमारी में रखे है,
तुम क्या गए,सब अरमान ले गए |
मैं नहीं चाहूँ तो भी क्या रुकता है,
दिल है, अपनी मर्जी ही धड़कता है |
सफ़र में रहे और तुमको लगा कि,
शायद कुछ और ही जरूरी है ,
हम नीव के पत्थर ही तो थे ,
गुमनाम है और बहुत नीचे दब गए |
जब मुड़ के देखो तो बहुत पीछे तक,
तो सिर्फ सन्नाटा ही है अब बीच में ,
और कुछ आवाजे आती है कभी कभी ,
कि,
हम साथ में हँसे , बहुत हँसे
साथ में रोये, बहुत रोये |
दिल में कितना शोर कर गए,
वो परिंदे जब पेड़ो से उड़ गए |
हम साथ में हँसे , बहुत हँसे
साथ में रोये, बहुत रोये |
फुर्सत मिली तो क्या सोचा कभी ,
उस मोड़ पे ही क्यों मुड़ गए |
सारे शौक अब अलमारी में रखे है,
तुम क्या गए,सब अरमान ले गए |
मैं नहीं चाहूँ तो भी क्या रुकता है,
दिल है, अपनी मर्जी ही धड़कता है |
सफ़र में रहे और तुमको लगा कि,
शायद कुछ और ही जरूरी है ,
हम नीव के पत्थर ही तो थे ,
गुमनाम है और बहुत नीचे दब गए |
जब मुड़ के देखो तो बहुत पीछे तक,
तो सिर्फ सन्नाटा ही है अब बीच में ,
और कुछ आवाजे आती है कभी कभी ,
कि,
हम साथ में हँसे , बहुत हँसे
साथ में रोये, बहुत रोये |