हौसला टूटने की
कोई आवाज़ नहीं होती ?
कुछ ऐसी,
कि पहले,
चरमराये थोडा ,
थोडा गिड़गिड़ाये,
गिरे अपने घुटनों पे ,
और सूचित करे,
मैं टूटने वाला हूँ,
नहीं होता ऐसा,
वो टूटता है,
झटके में ,
विश्वास की तरह ,
ईमान की तरह ,
इंसान की तरह ...
और इनमे से ,
जब भी, कुछ भी ,
टूटता है ,
तो जुड़ता नहीं ,
वो ,
टूटने के बाद ,
चरमराता रहता है ,
आवाज़ करता है ,
कभी आँखों से बहते हुए,
और कभी ,
एकदम चुपचाप ,
पर आवाज़ करता है ,
ताउम्र !
1 comment:
बोहत खूब .....मस्त लिखा है भाई ....मुज्ज़े तो लगा शायद बात तो दिल की होने वाली थी परन्तु इस कमबख्त कलम की सहाही ने कुछ और ही लिखने को मजबूर कर दीया ......... फिर तो कुछ ऐस्सा होता की "दिल टूटने की कोई आवाज़ नहीं होती ..... :)
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