एक रात अपने दोहरे व्यक्तित्व के बारे में सोच रहा था तो कुछ पंक्तिया जेहन में आई.. बस उतार दिया कागज़ पर... !!
आज फिर कट के गिरी है वो पतंग,
जिसने अपना ख्वाब आसमान रखा था,
कोई और सम्हालेगा इसके अरमान अब ,
"उन्होंने" कोई और भी मेहरबान रखा था,
अपनी आरजू को यूँ ना ख़त्म होने दीजिये,
कई लोगो को इसका एहतराम करना था |
सदिया बीतेगी पर दुनिया नाम उसका लेगी,
उसने कुछ यूँ अंदाज -ऐ- बयान रखा था
ख्वाहिशे बहुत सी बाकी है अभी दोस्तों,
सपनों में कुछ और भी सामान रखा था
उसकी याद आये तो बस आखे बंद करिए,
उसने भी आपकी नींदों का अरमान रखा था ....
उसे भूल मत जाना इतनी आसानी से कभी,
उसने भी मशहूर होने का इन्तेजाम रखा था ..
मैं और उसमे ज्यादा फर्क नहीं है दोस्तों,
कभी यूँ हुआ कि मैंने अपने लिए ही "उसका" ,
और उसने भी अनकहे फायदों के लिए मेरा ,
बेचारे ईमान को छोड़कर, दामन थाम रखा था !!
2 comments:
ohhh bhai ... kamaal hi kar dia... i can truly relate to the last four lines :)
Zabardaas as always :-)
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