इस ब्लॉग पर मैंने आखिरी कविता कुछ दिन पहले लिखी थी.. लेकिन अब शायद कविता लिखने का हुनर गायब हो गया है रातो रात.. !! अब शायद कभी कुछ नहीं लिख पाऊंगा ... या हो सकता है कुछ दिनों बाद फिर से कोशिश करूँ ... ये ब्लॉग एक कोशिश थी कि जब मैं न रहू तब कोई तो इन कविताओं के द्वारा मुझे जान पाए.. पर लगता है अब कारण ख़तम हो गए है ...
नए कारण मिलने तक .. अलविदा.. हो सकता है ये आखिरी अलविदा हो या हो भी सकता है मैं वापस लौट कर भी आऊं .. लेकिन जब तक मैं वापस नहीं आता तब तक के लिए.. आप सब का शुक्रिया... यहाँ आने के लिए .. इसे सराहने के लिए.. आप सबका दिल से शुक्रगुजार हूँ... और शायद आप सब ही मेरी अगली प्रेरणा बने जो मुझे कुछ और लिखने का कारण दे..
धन्यवाद ..
मयंक गोस्वामी
6 comments:
Kavitaayein ek zariya hoti hai khud ko express karne ka
its an art jo sabke paas nahi hota
ur poems express the feelings of many so keep writing n posting ur poems bcoz smwhere it helps us to find ourself
they help to achieve salvation in soltitude :)
acha lagega yedi aap likhte rahenge to...
मैं आपको जानता नहीं लेकिन एक बात बताना चाहूँगा की कभी कभी कविता बहुत दर्द पहुचाती है.. कभी कभी अपना ही लिखा हुआ पढ़कर दुःख होता है... और कभी कभी इनका मतलब निकलना तकलीफदेह... मैं कभी नहीं चाहूँगा की कोई और इसे महसूस भी करे.. मुझे शायद कविताओं के अर्थ बेमानी लगने लगे है. .. लगता है कि आजकल के दौर में ये सब बेमानी है.. मैं नहीं जानता कि मैं कितना सफल हूँ जीवन में .. लेकिन इन कविताओं ने सिर्फ असफलताओं को ही याद दिलाया है और इन्हें पढने वालो ने भी अक्सर यही जताया है कि इन सबसे कुछ नहीं होता जीवन में.. शायद जीवन में कुछ और भी है.. जो मैं तब नहीं समझ पाया .. और आज समझ पा रहा हूँ ..
मैंने एक कविता पढ़ी थी काफी पहले इस ब्लॉग पर http://pyasasajal.blogspot.com/2008/01/this-one-is-to-you-gauri.html
ये कविता सब कुछ कह देती है...
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लफ़्ज़ों की एक इमारत है,
जो अपनी डायरी में हमने बनाई है,
ये दुनिया मगर अब तक इसके कई कमरों से पराई है,
एहसास की बुनियाद पर
जज़्बातों के ईंट तो सजाये है हमने
किसी को पर कहाँ देगा दिखाई कुछ
इन पर दिखावे की प्लास्टर जो चढ़ाई है.....
इसी इमारत में कहीं एक तहखाना है,
जिससे मेरा करीबी दोस्त भी अंजाना है,
मेरे बेड-रूम में बिस्तर परकुछ दर्द बिखरे पड़े है,
पर दीवारों पर झूठी मुस्कान की तस्वीरें टंगी है
अपने इस इमारत में हम किस कदर हैरान खड़े है.....
बंद लौकर में मेरी मोहब्बत रखी हुई है,
बेहद महत्वपूर्ण मगर छिपी हुई है,
उसी कमरे में तकिये के नीचे
उदासी को छिपाया है,
जिसकी दीवारों को
शोख चटकीले रंगो से सजाया है.....
एक और कमरा जहाँ कभी सफ़ाई नही होती,
क्योंकि यहाँ की चीज़ों से कोई कमाई नही होती,
कुछ शौक,कुछ पसंद,कुछ अरमान मेरे
टेबल पर रखे हुए है
जिनपे धूल की पर्त चढ़ गई है,
वहीं पास वक़्त के शोकेस में
भविष्य की तस्वीर लगी है
जो अपने आप ही बिगड़ गई है,
कमरे के दरवाज़े पर डोर-मैट की जगह
एक अच्छा इंसान बनने की हसरत धरी है
जिसपे पोंछ लेते है लोग पैर देखो,
पर बड़ी अदा से गुज़र जाते है फ़िर
अरमानो के इस कमरे में
एक बार भी झाँके बगैर देखो....
यूँ तो लफ़्ज़ों की इस इमारत में
हर रोज़ कई लोग आया जाया करते है,
कहीं हल्के उदास होते है
तो कहीं पर मुस्काया करते है,
पर हर कोई इस बात से अंजान है,
इसी इमारत में छिपी मेरी सच्ची पहचान है,
इसके प्रवेश का एक रस्ता और है
जो मेरे दिल से होकर गुज़रता है,
उस दरवाज़े से आने की ज़हमत उठाये तो
गूढ़ गहराईयों से हटता है परदा
और इस इमारत में मेरा असल व्यक्तित्व उभरता है......
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Hey Mayank,
You will have to be back.
You are awesome yaar!
एक उन्दा व्यक्तित्व हमेशा निखरता है .. और आतुरता यही कहती है कि अगर वो चलना छोड़ दे तो इंसानियत के सहारे कम हो जायेंगे .. यही वह/वे कारण हैं कि यह यात्रा जारी रखने में ही हित है |
निशांत
Mayank Goswami Ji.
Bada pyara sa ittefaq hai. Aaj aapke is 5 saal puraane comment pe nazar padee, jahaan aapne humari is kavita ka zikr kiya hai. In 5 salaon me is comment ki jaankaari nahi thi hume, isliye shukriya karne ka mauka bhi nahi laga tha :)
Der aayed, durust aayed... however you also didnt write on this blog for long time... this is still my one of the favorite :)
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