आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ,
जरूरते क्या हैं और मैं क्या खोजता हूँ |
थोड़ी सी जमीन और क्या थोडा आसमान,
क्या मैं जिंदा हूँ जो जिंदादिली खोजता हूँ |
आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ,
कि जब मैं आईने में अक्स देखता हूँ ,
शायद लकीरों में खोया वक़्त देखता हूँ ,
जब मैं आईने के उस तरफ से देखता हूँ |
आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ,
क्या मैं दोस्तों में भी हमजुबां ढूँढता हूँ ,
मैं किस पर भरोसा करू और कैसे करू ,
जब भरोसे में भी मैं फायदा देखता हूँ |
आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ, |
कभी किसी ठोकर पे गिरा हूँ जब भी ,
तो सिर्फ मुझपे जमी नज़रों की है फ़िक्र ,
या कभी खुद खड़े होने की जुगत देखता हूँ |
तेरा किया सब तुम्हे ही हो मुबारक ,
मैं तुझमे कहाँ अब खुद को देखता हूँ ,
आजकल दूर जाते हुए सायों में अक्सर ,
मैं बेशर्मी से टूटता हुआ भरोसा देखता हूँ |
आज कल जब फुर्सत है मुझे ,
तो मैं बहुत सोचता हूँ,
बहुत सोचता हूँ |
-मयंक गोस्वामी
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