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Tuesday, October 30, 2012

इस तरह नहीं तो उस तरह ही सही !!!


सबको रहमते बांटना तेरे बस में नहीं , 
फिर भूख ही बराबर बाँट दे जहाँ में ..

है जो छाँव भी सबको दे पाना मुश्किल ,
तो ये धूप ही तू बराबर बाँट दे जहाँ में ..

मेरे घर की टूटी छत का जो हिसाब है,
वो बरसात भी बराबर बाँट दे जहाँ में ..

वो धुडकी और हिकारत मेरे हिस्से की ,
कहीं उसका भी लेनदार मिल जाए तो ,

तो मेरे हिस्से का कुछ अपमान भी ,
थोडा थोडा बाँट दे तू अपने जहाँ में ..

नहीं मांगता तुझसे कोई दुआ मैं आज ,
मेरी परेशानियां बराबर बाँट दे जहाँ में |

तू जो सबको सब खुशियाँ न दे सका ,
मेरे पास कमियों का खजाना है भरा,

आज मैं गरीबी लुटा रहा हूँ खुले हाथ 
बाँट दे सब कुछ बराबर अपने जहाँ में |

-Mayank Goswami

10 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत खयाल अच्छी गज़ल

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत खूब सुंदर प्रस्तुति,,,
फालोवर बने तो हार्दिक खुशी होगी,,,,

RECENT POST LINK...: खता,,,

Mayank said...

आप सबका बहुत शुक्रिया ..

Madan Mohan Saxena said...

बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना,,,,,,

Mayank said...

मदन जी , आपका बहुत शुक्रिया ..

मेरा मन पंछी सा said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

मेरा मन पंछी सा said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत सुंदर

Mayank said...

आप सबका बहुत शुक्रिया.....