सब्र सा ठहरा हुआ हूँ सदियों से ,
कब का पानी सा बह गया होता ,
रास्ते का पत्थर बनके रहा हूँ ,
वरना कब का धुल सा उढ़ गया होता ...
ये ज़िन्दगी साँसों सी ही चलती रही ,
मैं बस धड़कने ही गिनता रहा ,
बहुत सुकून है तनहा रहने में ,
मन तो बस भीड़ में ही खोता रहा ...
क्या , कहाँ किसके दिल में कौन बसा ...
मैं तो बस इंतज़ार ही करता रहा .....
तुम ना आये किसी दस्तक के साथ ,
मैं आहटों पर ही इख्तियार करता रहा ,
वक़्त बड़ा बेरहम होता रहा मुझ पर ,
मैं इंतज़ार का इज़हार ही करता रहा ,
मैं अपने "सुकून" की तलाश में सदियों जगा ,
और जब वो आया मैं सोता ही रह गया ....
No comments:
Post a Comment