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Wednesday, September 30, 2009

क्या क्या समेटना है .. क्या क्या छोड़कर ..

मेरी फितरत में नहीं है ऊचा उड़ना ...
मेरे पर कभी मेरा साथ नहीं देते ..
मेरी उडानों में तेरे होने कि कमी है
कभी हवा और कभी आसमा साथ नहीं देते ..

मैं अपने हालात को देखकर हैरान हूँ ..
सांस लेता हूँ वो भी उधार मागकर ..
मेरी तन्हाइयो ने बहुत साथ दिया है मेरा ...
हर दफा आ गई मेरे पास मुझे अकेला जानकार ...

नहीं समझ पता कि गरज क्या है मेरी ..
.क्या क्या समेटना है .. क्या क्या छोड़कर ..
क्या मयस्सर होगा मेरा खुदा भी नहीं जानता
सब कुछ दिया है उसने रहमते छोड़कर ,,

सबके अपने हिमालय है , अपने अपने समंदर ..
और डूब रहा हूँ अपने ही समंदर पीकर ..
अपने ही हिमालय से कूदना हसरत थी सदा से ,
और हैरान हूँ क्यों गिरा , जब गिरा हूँ टूटकर ..

समेत लो सारी बाते ,के बिकेगे आज सरे -बाज़ार ,
कंगाल ही गए हैं , सब कुछ यहाँ बेचकर ,
बिकुंगा तो बोली भी लगेगी बेहतर मुझसे ही ,
और फिर तू सो पायेगा , सरेआम मुझे बेचकर ..

खुद को खोजने में गुम हो गया हूँ मैं,
सब और अँधेरा कर दिया मुझे देखकर ,
मैं अपने वजूद को तलाशु या उसे ढूँढू ,
हारूँगा मैं ही, यहाँ कुछ न कुछ छोड़कर !!

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