मैंने चुन रखे हैं
वो सारे फूल ,
जो काम आने है मेरे जाते वक़्त,
(कौन फूल चढ़ाएगा मेरे जनाज़े पे, उम्मीद कम ही है).
पर तेरी राह में आने वाले,
सारे शूल तो मैं ,
पहले चुन कर अलग रख दिए थे,
(उन्ही शूलों में ही तो पिरोई है आखिरी माला ).
वैसे बहुत फर्क नहीं था,
जब चुन रहा था शूल,
वही तो अब फूल बन गए है,
मेरे आखिरी सफ़र के लिए.
और फूलों की बात कौन करेगा,
उनसे ही छिले है ,
मेरे हाथ ,
तुमने देखे नहीं ?
जब ख़ुशी ही दर्द देने लगे ,
तब ,
फूल और शूल में
कितना फर्क रह जाता है,
बोलो ?
वैसे ,
मेरे अन्दर भी
एक अदद इंसान रहता था,
(जिसे दर्द भी होता है, सच! )
जाने कब पहचानोगे तुम उसे ,
या फिर कभी ,
पहचानोगे तुम ?
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