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Sunday, August 21, 2011

फासला ?


दुःख से दुःख के बीच एक हंसी ही तो फासला है,   
वर्ना अब तक तेरे मेरे बीच में और बदला क्या है | 

सपनो की दुनिया में नींद नहीं आती थी तुमको,
और अब नींद में तुमने सपनो को ही तो बदला है | 

कितने अफ़साने अब बाकी रह गए तेरे मेरे बीच,
इन  सारी कहानियो का एक ही तो फलसफा है |

सच जानले कि मैं नहीं बदला पर तुझे ये दिक्कत है,
तेरे लिए  मेरी शख्सियत का सच ही तो बदला है |

मैं टूटकर यूँ ही इधर उधर बिखरता भी रहू तो क्या,
तेरे लिए तो तस्वीर का सिर्फ फ्रेम ही तो बदला है | 

मैं इतना नकारा नहीं समझा गया पहले कभी भी,
लेकिन इस बार देखो तो  हवाओं ने क्या रुख बदला है |

2 comments:

VijayKant Badsar said...

MAYANK JI AAPKI KAVITA MAIN TUTE HUE DIL KI CHATPATAHT HAI .
MAIN ITNA NAKARA ..... KYA RUKH BADLA HAI . APRATIM ,BAHUT SUNDER ABHIVYKTI BHAVNAON KI . EK SUNDER KAVITA KI BADHAI SVIKARAIN .

Mayank said...

बहुत बहुत शुक्रिया