फिर सोचा,
कि आज रात,
खाकर नींद को ही ,
चलाया जाए गुज़ारा ;
कि आँखे
बंद होने नहीं देता,
खाली पेट |
उजालो में
बहुत तलाशा ,
कि क्यों है वजूद ,
कि आँखे
खुलने ही नहीं देता,
खाली पेट |
कभी धूप ही
सेक ली,
पी ली ,
जी ली ,
खेल ली ,
और खा ली ,
थोड़ी धौंस ,
नाश्ते में ,
दोपहर में ,
और एक अदद ,
शाम का खाना |
कि कभी ,
पूछने ही नहीं देता,
कि क्यों बनाया मुझे,
खुदा से ,
ये ,
खाली पेट |
-मयंक
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