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Sunday, January 29, 2012

शौक


नहीं मिल रहे,
वो सारे शौक ,
जो एक दिन खासे गुस्से में,
किसी खूँटी पे टांग आया था ,
अब सिर्फ दिखता है,
शौक में छुपा हुआ गुस्सा ...
वो अरमान जो उस दिन,
किसी खीज में ,
अलमारी के एक कौने में ,
फेक आया था,
वो भी नहीं दिखता अब,
दिखती है तो सिर्फ खीज,
जो उसी कोने में पड़ी हुई,
चिढाती है मुझे बार बार ,
और एक अधूरा लिखा हुआ ,
उपन्यास भी है ,
जो उस शौक से उपजा था ,
अब उसे पढने की ,
कोई इच्छा ही बाकी नहीं है ,
लिखने की तो बात ही नहीं ,
बाकी है तो सिर्फ ,
उसे इतना ही रहने देने की जिद ,
काश मान ही लेता वो बात,
कि शौक से पैसा नहीं आता,
प्रतिष्ठा नहीं मिलती ,
मिलती है,
तो किसी फंतासी की तरह,
उलझी हुई सीख ,
कि दुनिया ऐसे नहीं चलती,
दुनिया वैसे नहीं चलती,
लेकिन कोई समझा ही नहीं,
कि दुनिया चलानी किसे है ,
जिंदगी चलानी थी,
वो शौक से चलती थी,
और शौक ही नहीं,
तो ज़िन्दगी भी ,
उसी खूँटी पे टंगी है,
पर वो भी दिखती नहीं,
सिर्फ टंगी है वही पे शायद ,
शौक की तरह ही ... 

1 comment:

Anonymous said...

HShauk badi cheej hai ...