ज़िन्दगी
या एक रेलगाड़ी ,
कभी भागती सरपट,
और कभी रेंगती हुई,
उबाऊ,
कभी ख़त्म न होने वाले सफ़र सी ...
कभी अपना स्टेशन आने के पहले,
किसी अनजान जगह ,
घंटो खड़े रहने वाली उकताहट ,
या फिर ,
स्टेशन के आने के
ठीक पहले,
लाइन में सबसे आगे खड़े होकर ,
उतरने की जल्दी,
और आश्चर्य है कि,
ये जल्दबाजी तब भी थी,
जब रेलगाड़ी के अन्दर जाना था !!
कभी दरवाजे पे लटककर,
हवाओं को आँखे दिखाना,
और कभी,
दो - चार बूंदों से बचने के लिए,
सारी खिडकिया- दरवाजे बंद |
एक कम्पार्टमेंट ही जब,
पूरी दुनिया बन जाए,
या फिर दुनिया के सारे अजनबी,
एक ही कम्पार्टमेंट में ?
ज़िन्दगी फिर रेलगाड़ी क़ी तरह,
हर किसी को
उसके आखिरी स्टेशन पे पहुंचाती हुई,
कभी समय पर ,
कभी देर सबेर ,
और कभी कभी,
कभी नहीं ....
ज़िन्दगी रेलगाड़ी क़ी तरह ,
कही भागती सरपट
और कभी कभी ,
बहुत उबाऊ !!!
या एक रेलगाड़ी ,
कभी भागती सरपट,
और कभी रेंगती हुई,
उबाऊ,
कभी ख़त्म न होने वाले सफ़र सी ...
कभी अपना स्टेशन आने के पहले,
किसी अनजान जगह ,
घंटो खड़े रहने वाली उकताहट ,
या फिर ,
स्टेशन के आने के
ठीक पहले,
लाइन में सबसे आगे खड़े होकर ,
उतरने की जल्दी,
और आश्चर्य है कि,
ये जल्दबाजी तब भी थी,
जब रेलगाड़ी के अन्दर जाना था !!
कभी दरवाजे पे लटककर,
हवाओं को आँखे दिखाना,
और कभी,
दो - चार बूंदों से बचने के लिए,
सारी खिडकिया- दरवाजे बंद |
एक कम्पार्टमेंट ही जब,
पूरी दुनिया बन जाए,
या फिर दुनिया के सारे अजनबी,
एक ही कम्पार्टमेंट में ?
ज़िन्दगी फिर रेलगाड़ी क़ी तरह,
हर किसी को
उसके आखिरी स्टेशन पे पहुंचाती हुई,
कभी समय पर ,
कभी देर सबेर ,
और कभी कभी,
कभी नहीं ....
ज़िन्दगी रेलगाड़ी क़ी तरह ,
कही भागती सरपट
और कभी कभी ,
बहुत उबाऊ !!!
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