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Wednesday, November 25, 2009

एक टुकड़ा अरमान !

मैं चला था
जानिबे मंजिल,
लेकर बस इतना सा सामान;
टुकड़ा टुकड़ा जीना,
टुकड़ा टुकड़ा अरमान,
टुकड़े टुकड़े ज़िन्दगी,
और
एक मुट्ठी आसमान |

फिर तुम आये,
कुछ तार जोड़े तुमने ,
कुछ और टुकड़े लाकर,
मेरे जीवन को किया पूरा,
मेरे अरमानो को
आकार दिया  |
और फिर कर दी,
जाने की बात,
ना लौट के आने की बात |
भूल गए तुम,
की मुट्ठी अभी भी बंद है,
तुम्हारे हाथो तले |
तुम ले गए ,
जाते जाते,
वो सारा आसमान,
बस रह गया मैं,
एक टुकड़ा अरमान,
और,
तेरा ढेर सारा एहसान !

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