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Thursday, November 12, 2009

तुम्हारे , टूटे हुए कुछ बाल

तुम्हारे ,
टूटे हुए कुछ बाल ,
हवा में इधर उधर ,
उड़ते है जब .
एक कहानी साथ लेकर
चलते है !

वो तुमने जिन्हें ,
इतने जतन से
सम्हाला था कभी .
अब वो एक
फ़साना
बन के रह गए ..
कभी जो उड़ते हुए
मेरे कंधे पर
आते है ..
उन
टूटे हुए बालो सा मैं
तुमसे जुदा होना
नहीं चाहता ...
इन्हें
सम्हालना ,
सवारना ,
तुम्हारा ही
अधिकार  है ,
और इनकी तरह
मेरी भी फ़िक्र
बनी रहे तुम्हे
येही
मेरा स्वप्न !!

मैं रहूँगा
एहसानमंद
अगर उन टूटे
हुए बालो को देखकर ,
तुम मुझे याद करो ,
कि मैं भी इतना ही ,
ऐसा ही
करीबी था
तुम्हारा,
और
इतना ही अभिन्न ,
जिसे
एक दिन दूर जाना
पड़ेगा ,
इन टूटे हुए
बालो की तरह ..
टूटकर ...
लेकिन ,
मेरे रहने से लेकर
जाने तक के वक़्त में ,
तुम्हारे हाथ   ही ,
छुएंगे ,
मुझे आखिरी बार भी ||

4 comments:

मनोज कुमार said...

waah! Bilkul nai soch, naye bimb.

Mayank said...

धन्यवाद् मनोज जी...

इस हौसला अफजाई के लिए ...
कुछ सुझाव हो तो अवश्य दे. .

Amol said...

Waah, waah... Bahut khoob...
Kuch shringaar ras mein bhi likhein.. :)

Anonymous said...

mast hai kavita

Mahima