सीने में टूटन सी इतनी क्यों है ,
हालात से क्यों झगडा हुआ है |
जहा से चले थे वही पे खड़े है ,
दिल जाके तुझपे ही अटका हुआ है |
वो रास्ता दिखाने आया था मुझको ,
जो पहले ही कही गुमशुदा हुआ है |
खुशनुमा है राते फिर भी क्यों ग़म है ,
उम्मीद पर ही तो चाँद लटका हुआ है |
इनायत है तेरी कि मुझको यु देखा ,
नहीं तो अभी तक ये अनदेखा हुआ है |
उसकी आँखों में यु डर दिख रहा है
वो प्यार के नाम से ही सहमा हुआ है ..
तमन्ना थी चिरागों से अँधेरे बुझायेगे ,
रौशनी कि उम्मीद में घर ही जला है |
कही तो साजिश करती है ये बारिश ,
मिटटी के घरोदो में ही पानी घुसा है |
साँसों का चलना तुझसे ही मुमकिन ,
साँसों का चलना तुझसे ही मुमकिन ,
जिन्दा हूँ जब तक तूने थामा हुआ है |
तू रगों में दौड़ता रहे भी तो क्या ,
नदी का पानी कब नदी का हुआ है |
तेरे आने कि कोई दस्तक भी नहीं हुई ,वर्ना हमने तो ख़ामोशी को भी सुना है |
1 comment:
Awesome...
poem with a deep meaning
feels as in the relationship is not superficial but is deeply rooted inside you..
kya baat hai mayank babu.........
kaun hai wo ;)
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