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Wednesday, December 16, 2009

मैं कैसे भूल जाऊ |


कैसे  भूल  जाऊ  कि ,
तू  मेरा  ही  एक  हिस्सा  है  |
कैसे  भूल  जाऊ  कि 
तुने  ही  पूरा  किया  है  |
वो  तेरा  मुझ  पर  
खिलखिला  के  हसना ,
मेरे  बालो  पे  तेरी ,
अंगुलिया  फिराना |
मुझको  गले  लगाना 
और  देर  तक  रोना ,
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

कभी  रातो  में  जागकर ,
खाना  पकाना ,
मुझको  खिलाना , 
खुद  भूखा  सो  जाना ,
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |
सारी रात  जागकर ,
मेरा  कुछ  भी  सुनाना
तेरा  उफ़  भी न   करना ,
सिर्फ  मुस्कुराते  जाना  |
होने  लगे  गर  चिड  इससे ,
फिर  भी  हाँ मिलाना 
तेरी  बाहों  में  ही ,
फिर  थक  के  सो  जाना  |
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

कभी  अकेले  में  अपने  
सारे  राज  बताना  |
मुझसे  मेरा  हर ,  
राज  चुरा  ले  जाना  |
कभी  मुझे  छूना ,
कभी  छूने  न  देना ,
कभी  मेरे  कंधे  पे ,
टिक  कर  ही  दिन बिताना 
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

आज  दूर  है  तू ,
तेरी  याद  पास  है ,
मुझे  भूख  भी  अब 
तेरी  तस्वीर  के ख्याल  
के साथ  ही  आती  है | 
मैं   जब  सोता  हूँ ,
तो  चादर  बन  जाती  है  |
कभी  मैं  तुझे 
बिछा  लेता  हूँ ,
कभी  तू   मुझे  
ओढ़  के  सो  जाती  है   |
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

तू  मेरी  आदत  
हुआ  करती  थी  कभी ,
अब  मेरी  खामोशी  
बन  जाती  है  |
कभी  मेरी  
जागती  आखों  का 
शौक   थी तू ,
और  आज  नींद  में  
सपने  सी  
जरूरत  बन  जाती  है 
मैं  कैसे  भूल  जाऊ  |

मैं  कैसे  भूल  जाऊ ,
कि  तू  मेरी  माँ  जैसी  हो ,
और  कभी  मेरी  साथी 
बन  जाती  है  ..
मेरे  जीवन  का  हर  
समाधान  हो  तो  तुम ,
मैं  जब  कभी  
प्रश्न  होता  हूँ 
तब  तु  मेरी  लिए  
उदाहरण  बन  जाती   है  ..

मैं कैसे भूल जाऊ तुम्हे ... 

2 comments:

मनोज कुमार said...

रचना अच्छी लगी ।

Manish said...

awsome dost!!!!!!
heart touching....