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Tuesday, December 8, 2009

tum kya ho ...


तुम
जाने  किसकी  किस्मत   हो ,
पर  जान  लो ,
की  तुम  मेरी  भी  हसरत  हो  |
मैं  हकीकत  का भरोसा
कैसे  करू ,
जब,
तुम  साँसों  की  तरह
ज़िन्दगी  की  जरूरत  हो  |
तुमको जानने का
जितना वक़्त मिला है मुझे,
तुम उस वक़्त की
मुझको नियामत हो |
क्या हुआ
जो वक़्त कम मिला,
हर किसी से यहाँ पे,
तुम उन चंद,
लम्हों की
मेरे लिए हिदायत  हो |
ये नवाजिश है
ये जान नहीं पाया  |
तुम ,
मेरे लिए ,
जिंदगी की साजिश हो,
या फिर,
ज़िन्दगी भर की,
मोहलत हो ....

1 comment:

मनोज कुमार said...

अच्छी अभिव्यक्ति।