मुझे विश्वाश है ,
कि मैं
तुम्हे जानता हूँ
मुझे मालूम है ,
तुम्हे कब हसाना है ,
कब जगाना है ,
कब आना है पास ,
और कब तुम्हे ,
कुछ बताना है |
मुझे पता है ,
कि तेरे दिल में
अकेलापन कब होगा
और कब उस तन्हाई की,
जगह ले जाना है |
मैं तुम्हे,
अपने घर की तरह,
जानता हूँ ,
जिसका एक - एक कोना ,
पहचानता हूँ |
कब कहाँ से धूल ,
हटाना है,
कब किस सामान को,
करीने से लगाना है |
तुम किसी तस्वीर
की तरह नहीं हो,
जिसको कही सजाना है,
तुम,
उस रोशनदान की तरह हो,
जिसे मैंने बचपन से
आज तक,
एक ही जगह देखा है,
जिसे कभी चाँद सा कोमल
और कभी रोशनी सा ,
सूरज बन जाना है |
5 comments:
badhiya
संवेदनशील रचना। बधाई।
bhai yaar.. kamaal kar rahe ho...chaa gaye ho.. mere ko shabd ni mil rahe hain :)
bhai in lines ko sunke agar koi ladki pagal na ho jaye to vo ladki ni hai... gazab kar dia
bahut badhhiya likha hai guru...
Sahi hai :-)
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