कविताएं और भी यहाँ ..

Monday, December 19, 2011

wife's initial effort to write a poem ...

कई यादें अब याद नहीं,
कई साथी अब साथ नहीं,
जिंदगी बिन तुम्हारे भी मुमकिन है ख्वाब नहीं |

वो हर ख्वाहिश से जुड़ा एक सपना ,
और हर सपने से जुडी एक ख्वाहिश,
जिंदगी उन सपनो के बिना भी आबाद है नाबाद नहीं |

यादें तो कुछ अब भी हैं ,
पर शायद उन यादों से जुड़े चेहरे बदल गए
सपने तो आँखें अब भी देखती हैं ,
पर शायद उन सपनो से जुड़े जज्बात बदल गए |


तुम फिर याद आओगे तो याद आएगा कोई सपना ,
पर फिर उस सपने को ओझल कर जाएगा कोई अपना
लगता है सपनो पर भी अधिकार बदलते हैं ,
जिंदगी से जुडी ख्वाहिशें और उनसे जुड़े ख्वाब भी बदलते हैं |


-Neha Sharma

Thursday, December 15, 2011

यूँ सोचता हूँ...


आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ,    
जरूरते क्या हैं और मैं क्या खोजता हूँ |
थोड़ी सी जमीन और क्या थोडा आसमान,
क्या मैं जिंदा हूँ जो जिंदादिली खोजता हूँ |

आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ, 
कि जब मैं आईने में अक्स देखता हूँ ,
शायद लकीरों में  खोया वक़्त देखता हूँ ,
जब मैं आईने के उस तरफ से देखता हूँ |

आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ, 
क्या मैं दोस्तों में भी हमजुबां ढूँढता हूँ ,
मैं किस पर भरोसा करू और कैसे करू ,
जब भरोसे में भी मैं फायदा देखता हूँ  |


आज जो फुर्सत में हूँ तो यूँ सोचता हूँ, |
कभी किसी ठोकर पे गिरा हूँ जब भी ,
तो सिर्फ मुझपे जमी नज़रों की है फ़िक्र ,
या कभी खुद खड़े होने की जुगत देखता हूँ |

तेरा किया सब तुम्हे ही हो मुबारक ,
मैं तुझमे कहाँ अब खुद को देखता हूँ ,
आजकल दूर जाते हुए सायों में अक्सर ,
मैं बेशर्मी से टूटता हुआ भरोसा देखता हूँ  |

आज कल जब फुर्सत है मुझे ,
तो मैं बहुत सोचता हूँ,
बहुत सोचता हूँ |
-मयंक गोस्वामी 

Sunday, November 20, 2011

वो परिंदे जब पेड़ो से उड़ गए

ये कविता विचलित मन के लिए ....

दिल में कितना शोर कर गए,
वो परिंदे जब पेड़ो से उड़ गए |
हम  साथ  में  हँसे , बहुत  हँसे
साथ  में  रोये,  बहुत  रोये |
फुर्सत मिली तो क्या सोचा कभी ,
उस मोड़ पे ही क्यों मुड़ गए |
सारे शौक अब अलमारी में रखे है,
तुम क्या गए,सब अरमान ले गए |
मैं नहीं चाहूँ तो भी क्या रुकता  है,
दिल है, अपनी मर्जी ही धड़कता है |
सफ़र में रहे और तुमको लगा कि,
शायद कुछ और ही जरूरी है ,
हम नीव के पत्थर ही तो  थे ,
गुमनाम है और बहुत नीचे दब गए |
जब मुड़ के देखो तो बहुत पीछे तक,
तो सिर्फ सन्नाटा ही है अब बीच में ,
और कुछ आवाजे आती है कभी कभी ,
कि,
हम  साथ  में  हँसे , बहुत  हँसे
साथ  में  रोये,  बहुत  रोये |
 

Saturday, November 12, 2011

दोस्ती और ...

ये पंक्तिया ४ महीने पहले लिखी गई थी... फ्रेंडशिप डे के दिन ..
 
 
आज  मेरी  पीठ  तेरी  तरफ  हो  तो  भी  खंजर  न  उठाना ,
आज  तो  दोस्तों  के  दिए  ज़ख्म  सहलाने  का  दिन  है ...
कभी  तो  दोस्त  होने  का  फ़र्ज़  अदा  कर  और  मुझे  बख्श  दे ,
कोई  कह  गया  है कि आज फिर तेरी दोस्ती को आजमाने का दिन है
  ...
 

Monday, August 22, 2011

मैं

इंसानियत का सबसे बदसूरत चेहरा हूँ,
हाँ मैं वही दो कान वाला बहरा हूँ |

मदद की गुहारे मुझे सुनाई न दे,
वो रौशनी रोकने वाला कोहरा हूँ |

मैं कंधो पे रास्तो की तरह चढ़ा हूँ,

मैं आदमी एक पर अन्दर से दोहरा हूँ |


मेरे साए मेरे साथ नहीं चलते ,
मैं सफ़ेद रौशनी वाला अँधेरा हूँ | 

Sunday, August 21, 2011

भीड़ में मेरा अकेलापन ...


मैं तुमको समझने की कोशिश में,
खुद को समझ रहा हूँ. 
यूँ लगता है कि मैं ,
खुद को खोल के पढ़ रहा हूँ  | 
कुछ उलझी - सुलझी सी ,
आधी - अधूरी सी,
कहानी की तरह ,
तुम एक पहेली जैसा ,
अंत हो मेरा |
मेरे सारे कयास,
मेरे सारे अनुमानों को ,
झुठला देती हो तुम .
कई बार खुद उलझकर ,
मुझको सुलझाती हो तुम |
कभी कथा व्यथा, 
कुछ सुनी अनसुनी ,
कविता की तरह ,
तुम एक पंक्ति का ,
अंत  हो मेरा |
मेरी सारी कमियों को ,
कितनी आसानी से 
छुपा देती हो तुम |
कई बार खुद को खोलकर,
मुझे पढ़ाती हो तुम | 
तुम जीवन हो,
उलझन हो, 
अनबन हो , 
सौंदर्य हो ,
पूर्णता हो | 
अपने सारे प्रयासों से भी ,
जो न कर सका ,
मेरे उस अपूर्ण स्वप्न का 
अंतिम जरिया हो तुम | 
तुम शरीर नहीं , 
आत्मा हो , 
और उस पर किसी का 
अधिकार नहीं , 
फिर भी कितनी चंचल ,
मोहक ,
महक, 
हंसी हो तुम  |
तुम केवल तुम हो ,
तुम रौशनी,
तुम उम्मीद , 
तुम आशा,
और तुम्ही अंत हो | 
तुम्हे पता है कि,
मैं क्या हूँ ,
फिर भी 
इस रास्ते के पत्थर  का  
देवता हो तुम |
मैं धूल ही सही , 
जो उड़ता हूँ ,
इधर उधर ,
फिर भी तुम तक पहुँचता तो हूँ ,
चाहे हर बार कोई मुझे ,
वहां से पोछ दे ,
पर मैं ,
कोई अवसर नहीं छोड़ता ,
तुम तक पहुचने का | 
मैं हसरत, 
मैं उम्मीद ,
मैं सपना 
बनकर जीना चाहता हूँ | 
मैं तुम्हारे स्पर्श को , 
अपने पास रखना चाहता हूँ |
तुम तक नहीं ,
तुम्हरी आत्मा तक
पहुचना चाहता हूँ | 
तुम्हारी सारी सफलताए ,
खुशियाँ ,
मेरे लिए धरोहर है ,
सारे जीवन के लिए 
उस याद को संजोकर,
अपनी स्मृति में रखना चाहता हूँ | 
तुम जीवन हो,
श्वाश,
धड़कन, 
चेतना ,
और तुम्ही सप्न्दन हो |
तुम हल हो 
जीवन कि पहेली का ,
सारी समस्याओं का 
समाधान हो तुम |
तुम हो तो ,
ईमान  है ,
तुम कारण हो ,
मेरे उजलेपन का ,
तुम मेरे ईमान का कारण हो | 
मेरे अकेलेपन में भीड़ हो तुम ,
और भीड़ में मेरा अकेलापन | 
तुम्ही कल्पना,
तुम्ही वास्तविकता ,
तुम्ही स्वप्न,
तुम्ही स्पर्श,
तुम्ही सनिध्याम 
तुम देवत्व हो , 
तुम्हारा हलके से खुद को नकारना , 
मुझे समझाना,
खुद को उलझाना , 
तुम सीमा हो एहसान की,
और मैं कृतज्ञ  हूँ , 
तुम्हारे साथ के लिए ,
जरूरत के वक़्त 
बड़े हुए उस हाथ के लिए | 
रोते वक़्त ,
कंधे के साथ के लिए | 
मेरे लिए ,
तुम कविता हो, 
कहानी हो,
और शायद 
पूरा एक काव्य हो | 
पर जो भी हो तुम ,
मुझे इतना पता है ,
कभी चाहे ,
तुम कितनी भी , 
कठिन,
अबूझ, 
मुश्किल,
क्लिष्ट हो जाओ ,
सबके लिए ,
पर उन सबसे अलग,
मेरे लिए आसान हो ,
और शायद इस जीवन में ,
सबसे महत्त्वपूर्ण , 
या,
एक शब्द में कहना चाहू ,
तो ,
अमूल्य हो तुम |

-- मयंक गोस्वामी 

फासला ?


दुःख से दुःख के बीच एक हंसी ही तो फासला है,   
वर्ना अब तक तेरे मेरे बीच में और बदला क्या है | 

सपनो की दुनिया में नींद नहीं आती थी तुमको,
और अब नींद में तुमने सपनो को ही तो बदला है | 

कितने अफ़साने अब बाकी रह गए तेरे मेरे बीच,
इन  सारी कहानियो का एक ही तो फलसफा है |

सच जानले कि मैं नहीं बदला पर तुझे ये दिक्कत है,
तेरे लिए  मेरी शख्सियत का सच ही तो बदला है |

मैं टूटकर यूँ ही इधर उधर बिखरता भी रहू तो क्या,
तेरे लिए तो तस्वीर का सिर्फ फ्रेम ही तो बदला है | 

मैं इतना नकारा नहीं समझा गया पहले कभी भी,
लेकिन इस बार देखो तो  हवाओं ने क्या रुख बदला है |

फूल या शूल ?


मैंने चुन रखे हैं 
वो सारे फूल ,
जो काम आने है मेरे जाते वक़्त,
(कौन फूल चढ़ाएगा मेरे जनाज़े पेउम्मीद कम ही है).
पर तेरी राह में आने वाले,
सारे शूल तो मैं ,
पहले चुन कर अलग रख दिए थे,
(उन्ही शूलों में ही तो पिरोई  है आखिरी माला ).
वैसे बहुत फर्क नहीं था,
जब चुन रहा था शूल,
वही तो अब फूल बन गए है,
मेरे आखिरी सफ़र के लिए.
और फूलों की बात कौन करेगा,
उनसे ही छिले है ,
मेरे हाथ ,
तुमने देखे नहीं ?
जब ख़ुशी ही दर्द देने लगे ,
तब ,
फूल और शूल में 
कितना फर्क रह जाता है,
बोलो ?
वैसे ,
मेरे अन्दर भी 
एक अदद  इंसान रहता था,
(जिसे दर्द भी होता हैसच! )
जाने कब पहचानोगे  तुम उसे ,
या फिर कभी ,
पहचानोगे तुम ?

Friday, August 12, 2011

ये आज़ादी कम है उनके लिए

ये आज़ादी कम है उनके लिए
उन्हें थोडा वक़्त  और चाहिए ..
अभी तो सिर्फ लूटा है देश,
उन्हें बेचने का हुनर चाहिए |
 
ये आज़ादी कम है उनके लिए ,
उन्हें थोड़ी और फ्रीडम  चाहिए.
अभी तो सिर्फ खून है निकाला,
इसकी नुमाइश का समय चाहिए |
 
ये आजादी कम है उनके लिए,
कि थोड़ी सहूलियत और चाहिए,
अभी तो गरीब का सिर्फ पेट है भूखा,
उन्हें भूख से बिकती आत्मा चाहिए |
 
ये आजादी कम है उनके लिए ,
कि कुछ लोग अभी भी खड़े है,
सपने तो ख़तम कर ही दिए है,
अब उन्हें गूंगी जुबान चाहिए |
 
ये आजादी कम है उनके लिए ,
अभी सिर्फ ६४ साल ही है बीते,
उन्हें १०० साल और दे दो कोई,
चिथडों में लिपटा हिन्दोस्तान चाहिए |

Saturday, January 15, 2011

आखिरी अलविदा ...

इस ब्लॉग पर मैंने आखिरी कविता कुछ दिन पहले लिखी थी.. लेकिन अब शायद कविता लिखने का हुनर गायब हो गया है रातो रात.. !! अब शायद कभी कुछ नहीं लिख पाऊंगा ... या हो सकता है कुछ दिनों बाद फिर से कोशिश करूँ ... ये ब्लॉग एक कोशिश थी कि जब मैं न रहू तब कोई तो इन कविताओं के द्वारा मुझे जान पाए.. पर लगता है अब कारण ख़तम हो गए है ...

नए कारण मिलने तक .. अलविदा..  हो सकता है ये आखिरी अलविदा हो या हो भी सकता है मैं वापस लौट कर भी आऊं .. लेकिन जब तक मैं वापस नहीं आता तब तक के लिए.. आप सब का शुक्रिया... यहाँ आने के लिए .. इसे सराहने के लिए.. आप सबका दिल से शुक्रगुजार हूँ... और शायद आप सब ही मेरी अगली प्रेरणा  बने जो मुझे कुछ और लिखने का कारण दे..

धन्यवाद ..
मयंक गोस्वामी

Monday, January 10, 2011

प्रेम -५

कुछ जल रहा है अन्दर,
दिल होगा ,
नहीं वो तो कब का ,
डस्ट बिन में फेक दिया था
तो इमोशंश ?
नहीं, वो तो तुमने कहा था,
कि कभी थे ही नहीं मुझमे ?
तो फिर कोई बीमारी है ?
कि अन्दर कुछ जला दे ,
ऐसी किसी बीमारी का नाम पता है ?
नहीं तो ..
तो फिर ?
ईर्ष्या होगी ..
हाँ मुझे अतीत से है ईर्ष्या ?
तुम डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते ?
क्या दिखाऊ ?
शायद कोई सपना जला है ,
और धुंआ बन के उड़ गया ..
ऐसा भी होता है कभी,
कि सपने जल जाए ?
नहीं, सुना तो नहीं मैंने ,
लेकिन आँखों में चुभने वाले,
सपने देखे है ..
जब  लोग  बदलते  है , 
तो  शायद  सपने  जलते  हैं|
वही होंगे ..
झूठी उम्मीदों वाले सपने,
अच्छा हुआ जल गए |
नई शुरुआत करना..
लेकिन अब तो सपने ही नहीं दिखते,
तुमसे बात करना बेकार है,
पहले तो नहीं था ?
समय के साथ सब बदलता है,
लोग भी , अपने भी ?
इसके अलावा,
कोई और बात कर सकते हैं ?
कुछ है ही नहीं ?
मुझे नहीं करनी बात तुमसे |
यही तो जलाता है कुछ ..
शायद अपनापन ?
हाँ वही जलता है हर बार ,
और गाँठ छोड़ जाता है ,
फिर से जलने के लिए ...