मैं मुड़कर अब क्यों देखूं पीछे ,
जहाँ रहा अब कुछ शेष नहीं |
जीवन में चलना है, बढना है ,
नियति मेरी बनना अवशेष नहीं |
मैं अथक, अमिट रास्तो का राही,
लक्ष्य अनन्त है, कोई प्रदेश नहीं |
पथिक हूँ, साथी कई मिलते है ,
कोई बुरा नहीं, कोई विशेष नहीं |
मैं हूँ आभारी इस जीवन का ,
जिसने धैर्य दिया, आवेश नहीं |
मैं नहीं किसी पटल का ध्रुव तारा,
मैं विनम्र बहुत हूँ, आदेश नहीं |
Friday, December 10, 2010
Wednesday, November 24, 2010
प्रेम -४
मोहब्बत का रंग फिर दागदार निकला ,
इस बार भी वो एक किरदार निकला ..
जो खुशियों के चश्मे में नहाने गया था,
बाहर जब भी आया, तार तार निकला |
बहुत बेजुबां निकले दर्द और अफ़साने,
उस गली से मैं फिर भी बार बार निकला |
इस बार भी वो एक किरदार निकला ..
जो खुशियों के चश्मे में नहाने गया था,
बाहर जब भी आया, तार तार निकला |
बहुत बेजुबां निकले दर्द और अफ़साने,
उस गली से मैं फिर भी बार बार निकला |
Saturday, November 13, 2010
प्रेम - 3
काश कभी जो तुमसे शुरू हो ,
कोई एक ऐसी शाम हो जाए |
की गर तू कभी याद ना आए ,
तो ये शख्स गुमनाम हो जाए |
ज़िन्दगी में तू है, ये बहुत है ,
ये सफ़र थोडा आसान हो जाए |
मैं क्यों तुझे यूँ देखू इस तरह,
कि तू बेवजह बदनाम हो जाए ?
ज़िन्दगी है रुक रुक के चलती है,
तेरी बाहों में ही अब शाम हो जाए |
मैं थक जाता हूँ यहाँ पे आजकल,
अपना कन्धा दे, थोडा आराम हो जाए|
अब तू ही बस बोलती रहे सब कुछ,
मैं सुनु और दुनिया बेजुबान हो जाए |
Monday, November 8, 2010
प्रेम ? - भाग -२
अपनी पिछली कविता प्रेम लिखने के बाद एहसास हुआ की बात तो अभी ख़त्म ही नहीं हुई, तो सोचा कि मैं तब तक लिखूंगा इसे जब तक सब कुछ नहीं लिख डालता ... जो भी मन में है या जो भी देखा सुना है मैंने जीवन में .. तो पिछली कविता के आगे की बात भी पढ़िए .. इस कविता में ( इसके पहले अगर आपने मेरी कविता "प्रेम ?" न पढ़ी हो तो कृपया उसे एक बार पढ़े ताकि प्रवाह बना रहे, इस कविता के ठीक नीचे है ) .
मैं अब तक यही समझा,
कि तुमने प्रेम भी किया है,
तो दया जानकर,
और मैं याद भी करता हूँ ,
तो दुआ मानकर |
तेरे न होने का ,
इतना फर्क तो पड़ा है मुझे ,
कि अब रातो को जागता हूँ,
मैं इबादत जानकर |
तुम्हारे स्पर्श को धो डालने की,
वो सारी कोशिशे,
जब नाकाम हो गई,
तो अपना लिया है मैंने,
उसे भी रिवाज़ मानकर |
तुमसे हुई उन सारी बातो का,
एक गट्ठा,
मैं अपने साथ लेकर,
चल रहा हूँ,
इस उम्मीद में,
कि किसी दिन शायद,
इसे पढने की शक्ति
मुझे मिल जायेगी |
तुमने तो अब
बोलना भी बंद कर दिया है ,
मुझसे,
मैं भी चुप बैठ जाता हूँ,
खुद को गूंगा मानकर |
मैं तुम तक पहुचने की,
कोशिशो में
अब भी जुटा हुआ हूँ,
तेरी यादो को ही,
एक सीढ़ी मानकर |
मैं उतना सफल न हो पाया,
न प्रेम में, न जीवन में,
जो पर्याप्त हो पाता,
तुम्हारे लिए,
पर अभी भी,
थोडा परेशान हूँ ,
कि,
प्रेम का मापदंड ,
क्या ये भी होता है?
पर तुम्हे तो पता है,
तेरी हर बात को,
मान तो लेता था मैं,
गीता का जानकर,
गंगा सा मानकर |
मैं अब तक यही समझा,
कि तुमने प्रेम भी किया है,
तो दया जानकर,
और मैं याद भी करता हूँ ,
तो दुआ मानकर |
तेरे न होने का ,
इतना फर्क तो पड़ा है मुझे ,
कि अब रातो को जागता हूँ,
मैं इबादत जानकर |
तुम्हारे स्पर्श को धो डालने की,
वो सारी कोशिशे,
जब नाकाम हो गई,
तो अपना लिया है मैंने,
उसे भी रिवाज़ मानकर |
तुमसे हुई उन सारी बातो का,
एक गट्ठा,
मैं अपने साथ लेकर,
चल रहा हूँ,
इस उम्मीद में,
कि किसी दिन शायद,
इसे पढने की शक्ति
मुझे मिल जायेगी |
तुमने तो अब
बोलना भी बंद कर दिया है ,
मुझसे,
मैं भी चुप बैठ जाता हूँ,
खुद को गूंगा मानकर |
मैं तुम तक पहुचने की,
कोशिशो में
अब भी जुटा हुआ हूँ,
तेरी यादो को ही,
एक सीढ़ी मानकर |
मैं उतना सफल न हो पाया,
न प्रेम में, न जीवन में,
जो पर्याप्त हो पाता,
तुम्हारे लिए,
पर अभी भी,
थोडा परेशान हूँ ,
कि,
प्रेम का मापदंड ,
क्या ये भी होता है?
पर तुम्हे तो पता है,
तेरी हर बात को,
मान तो लेता था मैं,
गीता का जानकर,
गंगा सा मानकर |
Friday, November 5, 2010
प्रेम ?
प्रेम
शायद तुम्हारे लिए
आसक्ति रहा हो,
पर मेरे लिए
कभी अभिव्यक्ति से आगे,
बढ़ ही नहीं पाया |
जब पीछे देखता हूँ,
तो पाता हूँ,
कि छूट गया है,
बहुत कुछ जो हो सकता है ..
आगे जाता हूँ,
तो दया आती है खुद पर .
कि कौन से चौराहे पे खड़ा हूँ,
जिसकी कोई भी राह,
घर को नहीं जाती |
मैं अपने में झाकने से
डरता हूँ,
कि जाने कौन सी याद ,
मुझे फिर से डरा देगी |
मैं तुम्हारे पत्र साथ तो रखता हूँ,
पर पढ़ नहीं सकता,
कि वो पढ़ते हुए,
हौसला टूटने लगता है |
और तुम्हारे चित्र,
मुझे कहते हैं कि,
तुम इतना भी नहीं कर पाए मेरे लिए |
मैं डरता हूँ,
आइना देखने से ,
वो हंसता है मुझ पर,
उसे भी डर नहीं लगता,
कि गर मैं तोड़ दूं उसे |
प्रेमगीत मुझसे कहते है,
तुम नाकाम हो ,
तुम शब्दों कि सुन्दरता को,
समझ ही नहीं सकते |
संगीत मुझे चिढाता है ..
मैं असमर्थ हूँ ,
और खुद से खफा,
टूटा हुआ ,
पर अभी भी उतना ही,
विनम्र हूँ और करीबी ?
मुझे नहीं पता ,
क्या पत्ते से टूटते ,
तुम्हारे प्रेम के इस भागीदार को ,
सम्हालोगे तुम ,
या किसी दिन सुबह,
आँगन में पड़े हुए पत्तो के ढेर सा,
घर के बाहर पटक दोगे,
जिसे सर्दी की किसी सुबह,
लोग आग समझकर,
ताप लेंगे |
चलो कोई तो संतुष्ट होगा मुझसे,
इसी बात पर,
अब टूट के गिरना
ही सही |
शायद तुम्हारे लिए
आसक्ति रहा हो,
पर मेरे लिए
कभी अभिव्यक्ति से आगे,
बढ़ ही नहीं पाया |
जब पीछे देखता हूँ,
तो पाता हूँ,
कि छूट गया है,
बहुत कुछ जो हो सकता है ..
आगे जाता हूँ,
तो दया आती है खुद पर .
कि कौन से चौराहे पे खड़ा हूँ,
जिसकी कोई भी राह,
घर को नहीं जाती |
मैं अपने में झाकने से
डरता हूँ,
कि जाने कौन सी याद ,
मुझे फिर से डरा देगी |
मैं तुम्हारे पत्र साथ तो रखता हूँ,
पर पढ़ नहीं सकता,
कि वो पढ़ते हुए,
हौसला टूटने लगता है |
और तुम्हारे चित्र,
मुझे कहते हैं कि,
तुम इतना भी नहीं कर पाए मेरे लिए |
मैं डरता हूँ,
आइना देखने से ,
वो हंसता है मुझ पर,
उसे भी डर नहीं लगता,
कि गर मैं तोड़ दूं उसे |
प्रेमगीत मुझसे कहते है,
तुम नाकाम हो ,
तुम शब्दों कि सुन्दरता को,
समझ ही नहीं सकते |
संगीत मुझे चिढाता है ..
मैं असमर्थ हूँ ,
और खुद से खफा,
टूटा हुआ ,
पर अभी भी उतना ही,
विनम्र हूँ और करीबी ?
मुझे नहीं पता ,
क्या पत्ते से टूटते ,
तुम्हारे प्रेम के इस भागीदार को ,
सम्हालोगे तुम ,
या किसी दिन सुबह,
आँगन में पड़े हुए पत्तो के ढेर सा,
घर के बाहर पटक दोगे,
जिसे सर्दी की किसी सुबह,
लोग आग समझकर,
ताप लेंगे |
चलो कोई तो संतुष्ट होगा मुझसे,
इसी बात पर,
अब टूट के गिरना
ही सही |
Saturday, October 23, 2010
विरोधाभास ...
मैं तो कहता था कि कोशिशों का आदमी हूँ ,
फिर भी जाने क्यों ज़िन्दगी से हारता हूँ |
मेरे चलने की अब तक कहानी भी यही है,
मैं अब हर एक नए कदम पे कराहता हूँ |
कभी तेरे वादे पे बड़ा यकीन हुआ था मुझे ,
पर खुद को हर ठोकर पे खुद ही सम्हालता हूँ |
मैं तनहा हूँ या अकेला हूँ, अभिमानी हूँ या दम्भी ,
मैं तेरी आवाज़ सुनने की ख्वाहिशो में जागता हूँ |
तुझे डर है क़ि मैंने सारे रास्ते रोक रखे है तेरे ,
उन गलियों को कभी याद करो जिन्हें मैं संवारता हूँ |
तेरी आवाज़ में सुनने को तरस गया हूँ मैं जो आज,
उन बातों को किसी तिजोरी में अब भी सम्हालता हूँ |
मुझसे बेहतर इस जहाँ में कई कंधे मिलेंगे तुझे,
मैं अपने कंधे से यादो की गठरियाँ नहीं उतारता हूँ |
मेरी उदासी को मैंने अपने हुनर से ही छिपाया है ,
मैं रोने के लिए आजकल सिर्फ कोने तलाशता हूँ ..
फिर भी जाने क्यों ज़िन्दगी से हारता हूँ |
मेरे चलने की अब तक कहानी भी यही है,
मैं अब हर एक नए कदम पे कराहता हूँ |
कभी तेरे वादे पे बड़ा यकीन हुआ था मुझे ,
पर खुद को हर ठोकर पे खुद ही सम्हालता हूँ |
मैं तनहा हूँ या अकेला हूँ, अभिमानी हूँ या दम्भी ,
मैं तेरी आवाज़ सुनने की ख्वाहिशो में जागता हूँ |
तुझे डर है क़ि मैंने सारे रास्ते रोक रखे है तेरे ,
उन गलियों को कभी याद करो जिन्हें मैं संवारता हूँ |
तेरी आवाज़ में सुनने को तरस गया हूँ मैं जो आज,
उन बातों को किसी तिजोरी में अब भी सम्हालता हूँ |
मुझसे बेहतर इस जहाँ में कई कंधे मिलेंगे तुझे,
मैं अपने कंधे से यादो की गठरियाँ नहीं उतारता हूँ |
मेरी उदासी को मैंने अपने हुनर से ही छिपाया है ,
मैं रोने के लिए आजकल सिर्फ कोने तलाशता हूँ ..
Thursday, October 21, 2010
हालात ..
वो आज मुट्ठियों में समेटे सारा जहाँ चल रहे हैं,
हम, अँधेरे जिधर है अब उस तरफ चल दिए है |
धुओं ने तो, छोड़ दी है अब शागिर्दी दीयों की ,
जो रौशनी के उतावले थे, वो खुद ही जल रहे हैं |
उसकी दोस्ती को ज्यादा मुफीद न समझना,
जो कभी हाथ मिलाया था , अब तक मल रहे है |
मैं शिकवा खुद से करू या गिला ज़िन्दगी से,
सबने सीखा है यहाँ पे, सब चालें ही चल रहे हैं ..
वो बर्बाद होने की कोशिश में आबाद हुआ जाता था,
रौशनी को समेटे है और अँधेरे पीछे चल दिए है |
मेरी उम्मीद पे अब मुझे ही यकीं कहाँ है बाकी ,
मेरे इस हालात ने अब सारे चेहरे बदल दिए है |
हम, अँधेरे जिधर है अब उस तरफ चल दिए है |
धुओं ने तो, छोड़ दी है अब शागिर्दी दीयों की ,
जो रौशनी के उतावले थे, वो खुद ही जल रहे हैं |
उसकी दोस्ती को ज्यादा मुफीद न समझना,
जो कभी हाथ मिलाया था , अब तक मल रहे है |
मैं शिकवा खुद से करू या गिला ज़िन्दगी से,
सबने सीखा है यहाँ पे, सब चालें ही चल रहे हैं ..
वो बर्बाद होने की कोशिश में आबाद हुआ जाता था,
रौशनी को समेटे है और अँधेरे पीछे चल दिए है |
मेरी उम्मीद पे अब मुझे ही यकीं कहाँ है बाकी ,
मेरे इस हालात ने अब सारे चेहरे बदल दिए है |
Wednesday, September 8, 2010
ये पंक्तियाँ लिखी गई है एक बच्ची के दूसरे जन्मदिवस के अवसर पर मुद्रित होने वाले निमंत्रण पत्र के लिए.. पढ़कर देखिये ...
--------------------------------------------------
मैं और मेरी पूरे चाँद सी ये चिड़िया, पूर्ण होते है एक दुसरे से,
और जब इसके नन्हे से हाथ थोडा सा आगे बढ़कर छूते है मुझे ,
तो इसके होने का एहसास किसी ईश्वर की कल्पना से कम नहीं|
जीवन के ये दो छोटे से साल, इन मुस्कुराहटो में कैसे बीत गए,
और देखो एक नया साल फिर दरवाजे पे दस्तक देने आ गया |
तब समझ आया कि इन दो खूबसूरत सालो का शुक्रिया अदा करना है,
ताकि ये साल हज़ारो सालो तक यू ही दस्तक देते रहे मेरे दरवाजे पे..
और मेरे घर हर साल यूँ ही हंसती खिलखिलाती आती रहे ज़िन्दगी ..
आप भी आइयेगा, ज़िन्दगी को बढ़ते हुए देखने और उसे सराहने के लिए ...
--------------------------------------------------
मैं और मेरी पूरे चाँद सी ये चिड़िया, पूर्ण होते है एक दुसरे से,
और जब इसके नन्हे से हाथ थोडा सा आगे बढ़कर छूते है मुझे ,
तो इसके होने का एहसास किसी ईश्वर की कल्पना से कम नहीं|
जीवन के ये दो छोटे से साल, इन मुस्कुराहटो में कैसे बीत गए,
और देखो एक नया साल फिर दरवाजे पे दस्तक देने आ गया |
तब समझ आया कि इन दो खूबसूरत सालो का शुक्रिया अदा करना है,
ताकि ये साल हज़ारो सालो तक यू ही दस्तक देते रहे मेरे दरवाजे पे..
और मेरे घर हर साल यूँ ही हंसती खिलखिलाती आती रहे ज़िन्दगी ..
आप भी आइयेगा, ज़िन्दगी को बढ़ते हुए देखने और उसे सराहने के लिए ...
Sunday, August 22, 2010
...उन सब लोगो के नाम ....
ये कविता है ...उन सब लोगो के नाम जिन्होंने ने इस अदने से आदमी की कविता को पूरे धैर्य के साथ सुना है.. बिना किसी शिकायत के.. ये उन सब लोगो के नाम जो मुझे केवल कविताओ के नाम से ही जानते है.. दूसरा कोई कारण ही नहीं और शायद इससे बेहतर कोई पहचान भी नहीं चाहिए मुझे .. क्योकि इससे अलावा साथ बैठने के सारे कारण बेमानी है !!!
प्रभाष , हन्नी "the" गर्ग , प्रशांत भाई, अनिकेत, आनंद जोशी, शैलेन्द्र बहेरा, राम, पंड्या जी , चिली , अमित श्रीवास्तव, विमल प्रधान , मौलिक ,अमोल , श्वेता , मानसी , प्रमोद , गोविन्द, अमित भैया , हिमांशु, साकेत, आशीष अभिषेक, राजीव, मनीष निगम , संदीप दुबे , रवि , सचिन, चेतन , नीरव , सतीश पाटीदार , सतीश चटाप,निलेश और भी बहुत सारे लोग ... माफ़ करना अगर कोई छूट गया हो तो ... बस कागज पे नाम नहीं आया .. दिल में तो है ही ....
------------------------------------
कुछ शामे न ढलें,
तो बेहतर है,
कभी कभी रौशनी भी,
आँखों से सहन नहीं होती |
दोस्त होते है साथ जब ,
तो कैसी भी दिक्कत आये,
पर फरिश्तों की जरूरत नहीं होती |
सिहरन होती है,
हाथ छूटने के डर से ,
लेकिन जब तक डूबोगे नहीं ,
समंदर की इज्ज़त नहीं होती |
मैं जब होता हूँ राहों पे,
लोग कहते है,
धीमे चलता है ,
दोस्त होते तो कहते है ,
कि तेरी उड़ान,
इतने नीचे भी कम नहीं होती |
आज रात गुजर रही है,
चाँद भी गोल दिख रहा है ,
पर मेरे कमरे में ,
बिना दोस्तों के ,
आजकल रौशनी नहीं होती |
मेरी तमन्ना है कि ,
साथ ख़तम न हो कभी,
लेकिन ये जो ज़िन्दगी है ,
साज़िश कर रही है ,
ये बेवफा किसी की,
महबूबा नहीं होती |
रास्ते बदल जायेगे,
कल तुम कही ,
और हम कही जायेगे |
पर एक सच यह भी है,
कि मैं नहीं रहूँगा
जिस दिन यहाँ पे,
कही दूर
दफ़न कर देंगे लोग मुझे |
पर तुम आओगे ,
जिस दिन ,
तब गजल होगी ,
एक शाम होगी ,
कुछ धुंआ होगा ,
और थोडा शुरूर भी
ऐसे भी अब ,
दोस्तों के बिना ,
कोई कविता नहीं होती |
तो बेहतर है,
कभी कभी रौशनी भी,
आँखों से सहन नहीं होती |
दोस्त होते है साथ जब ,
तो कैसी भी दिक्कत आये,
पर फरिश्तों की जरूरत नहीं होती |
सिहरन होती है,
हाथ छूटने के डर से ,
लेकिन जब तक डूबोगे नहीं ,
समंदर की इज्ज़त नहीं होती |
मैं जब होता हूँ राहों पे,
लोग कहते है,
धीमे चलता है ,
दोस्त होते तो कहते है ,
कि तेरी उड़ान,
इतने नीचे भी कम नहीं होती |
आज रात गुजर रही है,
चाँद भी गोल दिख रहा है ,
पर मेरे कमरे में ,
बिना दोस्तों के ,
आजकल रौशनी नहीं होती |
मेरी तमन्ना है कि ,
साथ ख़तम न हो कभी,
लेकिन ये जो ज़िन्दगी है ,
साज़िश कर रही है ,
ये बेवफा किसी की,
महबूबा नहीं होती |
रास्ते बदल जायेगे,
कल तुम कही ,
और हम कही जायेगे |
पर एक सच यह भी है,
कि मैं नहीं रहूँगा
जिस दिन यहाँ पे,
कही दूर
दफ़न कर देंगे लोग मुझे |
पर तुम आओगे ,
जिस दिन ,
तब गजल होगी ,
एक शाम होगी ,
कुछ धुंआ होगा ,
और थोडा शुरूर भी
ऐसे भी अब ,
दोस्तों के बिना ,
कोई कविता नहीं होती |
बर्बादी
संसद से सड़क तक सिर्फ मुद्दा ये ही गरम है,
की आम आदमी आखिर इतना क्यों नरम है |
जो बड़ा है यहाँ वो नंगा दौड़ सकता है जहाँ में,
सिर्फ तमाशा देखने वाले की ही आँखों में शर्म है |
कहीं देश की बर्बादी का जश्न जोर शोर से है ,
और यहाँ आज रात भी भूखे सोने का मातम है|
कल तेरे उठ खड़े होने पे, चौतरफा सवाल होंगे,
यहाँ ईमान को बेचकर आना सबसे बड़ा धर्म है |
Saturday, August 14, 2010
तेरा होना ही ..
कभी तुम मुस्कुरा देते हो,
पलट कर,
और मैं खुश हो जाता हूँ,
तेरे हसते हुए चेहरे की
कल्पना में खोकर |
तू जीवन दे रही है मुझे,
मुझमे अमृत सी फैलकर ,
मैं तृप्त सा हो रहा हूँ,
तेरी मौजूदगी को लेकर |
कभी तेरे स्वरुप को,
जान ही नहीं पाया,
मैं रह गया खुद में ही
बंधकर उलझकर |
तू हर गुजरते पल के साथ,
बड़ी होती गई ,
कभी मुझमे मिलकर ,
कभी मुझसे बिछड़कर !
पलट कर,
और मैं खुश हो जाता हूँ,
तेरे हसते हुए चेहरे की
कल्पना में खोकर |
तू जीवन दे रही है मुझे,
मुझमे अमृत सी फैलकर ,
मैं तृप्त सा हो रहा हूँ,
तेरी मौजूदगी को लेकर |
कभी तेरे स्वरुप को,
जान ही नहीं पाया,
मैं रह गया खुद में ही
बंधकर उलझकर |
तू हर गुजरते पल के साथ,
बड़ी होती गई ,
कभी मुझमे मिलकर ,
कभी मुझसे बिछड़कर !
Friday, July 30, 2010
परिवर्तन
मुझे उम्र भर तसल्ली की दवाई देता रहा ,
मरते वक़्त भी वो सिर्फ दुआए देता रहा |
मेरे होने न होने से फर्क इतना पड़ा होगा ,
आंसू निकले भी मेरे लिए तो सफाई देता रहा |
ताउम्र शराफत से जीने का क्या फायदा हुआ,
बेईमानो के शहर में ईमान की दुहाई देता रहा |
किसी ने जब भी देखा , उसे इस अंदाज में देखा ,
कि अन्धो के नगर में सबको दिखाई देना लगा |
हैरत में हूँ कि मेरा चेहरा पहचान खोने लगा है ,
अलग बनने की कोशिश में भीड़ सा सुनाई देने लगा
मरते वक़्त भी वो सिर्फ दुआए देता रहा |
मेरे होने न होने से फर्क इतना पड़ा होगा ,
आंसू निकले भी मेरे लिए तो सफाई देता रहा |
ताउम्र शराफत से जीने का क्या फायदा हुआ,
बेईमानो के शहर में ईमान की दुहाई देता रहा |
किसी ने जब भी देखा , उसे इस अंदाज में देखा ,
कि अन्धो के नगर में सबको दिखाई देना लगा |
हैरत में हूँ कि मेरा चेहरा पहचान खोने लगा है ,
अलग बनने की कोशिश में भीड़ सा सुनाई देने लगा
Sunday, July 25, 2010
करीबी !!
मेरे कमरे की दीवार ,
मेरे हर दुःख को जानती है |
मेरे हर आंसू का,
कारण पहचानती है |
जब मैं उदास होता हूँ,
तो वह कितनी चुपचाप होती है,
और जब होता हूँ व्यग्र,
थोडा चिंतित,
तब कितनी शांति से,
मेरी हर बात को सुनती है |
कभी कभी ,
रात रात भर मेरे साथ,
जागती है ;
और कभी ,
गले लगकर सोती है सारी रात |
उसके रंग मेरा प्रतिबिम्ब हैं,
कभी देखो उस कोने को,
जब मैं रोया था बेसबब,
तब उसके भी आंसुओ की,
वह निशानी बाकी है |
वह बोली थी ,
हार गए,
अभी तो यह ज़िन्दगी आधी है |
मेरे हर दुःख को जानती है |
मेरे हर आंसू का,
कारण पहचानती है |
जब मैं उदास होता हूँ,
तो वह कितनी चुपचाप होती है,
और जब होता हूँ व्यग्र,
थोडा चिंतित,
तब कितनी शांति से,
मेरी हर बात को सुनती है |
कभी कभी ,
रात रात भर मेरे साथ,
जागती है ;
और कभी ,
गले लगकर सोती है सारी रात |
उसके रंग मेरा प्रतिबिम्ब हैं,
कभी देखो उस कोने को,
जब मैं रोया था बेसबब,
तब उसके भी आंसुओ की,
वह निशानी बाकी है |
वह बोली थी ,
हार गए,
अभी तो यह ज़िन्दगी आधी है |
Tuesday, June 1, 2010
Wednesday, March 24, 2010
Thursday, March 11, 2010
इस उम्र के रास्ते
इस उम्र के रास्ते भी बड़े सयाने निकले ,
वही जा के अटके जहाँ से ज़माने निकले ..
कदम बढाये थे बड़ी एहतिहायत से मैंने,
घर को चला था, और ये मैखाने पे निकले |
जिन उम्मीदों के सहारे चल पड़े थे सफ़र पे,
साथ देने के वो सारे वादे झूठे तुम्हारे निकले |
मैं रास्ता तलाशने कि कोशिश में चलता रहा,
कही मुहाने बंद थे, और कही चौराहे निकले |
वही जा के अटके जहाँ से ज़माने निकले ..
कदम बढाये थे बड़ी एहतिहायत से मैंने,
घर को चला था, और ये मैखाने पे निकले |
जिन उम्मीदों के सहारे चल पड़े थे सफ़र पे,
साथ देने के वो सारे वादे झूठे तुम्हारे निकले |
मैं रास्ता तलाशने कि कोशिश में चलता रहा,
कही मुहाने बंद थे, और कही चौराहे निकले |
Friday, February 26, 2010
चयन की आज़ादी !!
ये समंदर शोर मचाता रहा कहीं किनारों पर ,
और वो बादल है जो कही चुपचाप बरस गए|
एक खुद में सिमट के खुश रहता है अहंकारी ,
और वो दूसरो की ख़ुशी के लिए खुद मिट गए |
महफ़िल में किसने किसे देखा, बड़ा सवाल है,
और हम उनकी नजरो के लिए ही सवरते गए |
कितनी तमन्नाओ को यु ही अधूरा छोड़ दिया ,
और वो हमें देखे बिना ही चुपचाप गुजर गए |
आदमी खुद को ही देखता रहता है आईने में,
खुद नजरो में गिरते रहे, महफ़िलो में सवर गए |
मुद्दे बड़े है ज़िन्दगी को समझने के लिए दोस्त,
हम चौराहों पे बेबात क़ी बहस में ही उलझ गए |
कहते रहे आबाद रहो, बर्बादी के जश्न में डूबे हुए,
हम जश्न मनाते रहे, वो हमसे आगे निकल गए |
कभी चाहा किसी ने, हम भी उन जैसे आबाद रहे,
अभिमानी हम, आसान रास्ते पर ही बढ़ गए |
रास्ते खेल खेलते है गाहे बगाहे हर किसी के साथ,
कभी बहुत सीधे थे, और कभी मोड़ पर बदल गए |
बादल पसंद थे, पर अरमान समंदर से बड़े हो गए |
और वो बादल है जो कही चुपचाप बरस गए|
एक खुद में सिमट के खुश रहता है अहंकारी ,
और वो दूसरो की ख़ुशी के लिए खुद मिट गए |
महफ़िल में किसने किसे देखा, बड़ा सवाल है,
और हम उनकी नजरो के लिए ही सवरते गए |
कितनी तमन्नाओ को यु ही अधूरा छोड़ दिया ,
और वो हमें देखे बिना ही चुपचाप गुजर गए |
आदमी खुद को ही देखता रहता है आईने में,
खुद नजरो में गिरते रहे, महफ़िलो में सवर गए |
मुद्दे बड़े है ज़िन्दगी को समझने के लिए दोस्त,
हम चौराहों पे बेबात क़ी बहस में ही उलझ गए |
कहते रहे आबाद रहो, बर्बादी के जश्न में डूबे हुए,
हम जश्न मनाते रहे, वो हमसे आगे निकल गए |
कभी चाहा किसी ने, हम भी उन जैसे आबाद रहे,
अभिमानी हम, आसान रास्ते पर ही बढ़ गए |
रास्ते खेल खेलते है गाहे बगाहे हर किसी के साथ,
कभी बहुत सीधे थे, और कभी मोड़ पर बदल गए |
तुम सीख लो मुझसे कि बादल बनना है या समंदर ,
बादल पसंद थे, पर अरमान समंदर से बड़े हो गए |
Tuesday, February 9, 2010
कृष्ण अर्जुन संवाद
कहा कृष्ण ने,
अर्जुन !!
ये क्या ,
तुम खुद को भूले ...
तुम गांडीव चलाना भूले ?
द्वापर में तो तुम,
चिड़िया की आँख
भेदते थे ,
और अब ऐसे भटके,
कि धनुष उठाना भूले |
इस पर,
अर्जुन बोला,
क्षमा करे भगवन,
पर मैं कुछ नहीं भूला,
भटके तो आप है,
तो अभी तक
गीता नहीं भूले |
अरे...
गांडीव चला के,
मुझे क्या अपना
"स्टेटस" गिराना है |
कुछ तो समझो,
ये ऐ के ४७ का ज़माना है |
अर्जुन !!
ये क्या ,
तुम खुद को भूले ...
तुम गांडीव चलाना भूले ?
द्वापर में तो तुम,
चिड़िया की आँख
भेदते थे ,
और अब ऐसे भटके,
कि धनुष उठाना भूले |
इस पर,
अर्जुन बोला,
क्षमा करे भगवन,
पर मैं कुछ नहीं भूला,
भटके तो आप है,
तो अभी तक
गीता नहीं भूले |
अरे...
गांडीव चला के,
मुझे क्या अपना
"स्टेटस" गिराना है |
कुछ तो समझो,
ये ऐ के ४७ का ज़माना है |
Wednesday, February 3, 2010
मैं और वो !!
एक रात अपने दोहरे व्यक्तित्व के बारे में सोच रहा था तो कुछ पंक्तिया जेहन में आई.. बस उतार दिया कागज़ पर... !!
आज फिर कट के गिरी है वो पतंग,
जिसने अपना ख्वाब आसमान रखा था,
कोई और सम्हालेगा इसके अरमान अब ,
"उन्होंने" कोई और भी मेहरबान रखा था,
अपनी आरजू को यूँ ना ख़त्म होने दीजिये,
कई लोगो को इसका एहतराम करना था |
सदिया बीतेगी पर दुनिया नाम उसका लेगी,
उसने कुछ यूँ अंदाज -ऐ- बयान रखा था
ख्वाहिशे बहुत सी बाकी है अभी दोस्तों,
सपनों में कुछ और भी सामान रखा था
उसकी याद आये तो बस आखे बंद करिए,
उसने भी आपकी नींदों का अरमान रखा था ....
उसे भूल मत जाना इतनी आसानी से कभी,
उसने भी मशहूर होने का इन्तेजाम रखा था ..
मैं और उसमे ज्यादा फर्क नहीं है दोस्तों,
कभी यूँ हुआ कि मैंने अपने लिए ही "उसका" ,
और उसने भी अनकहे फायदों के लिए मेरा ,
बेचारे ईमान को छोड़कर, दामन थाम रखा था !!
आज फिर कट के गिरी है वो पतंग,
जिसने अपना ख्वाब आसमान रखा था,
कोई और सम्हालेगा इसके अरमान अब ,
"उन्होंने" कोई और भी मेहरबान रखा था,
अपनी आरजू को यूँ ना ख़त्म होने दीजिये,
कई लोगो को इसका एहतराम करना था |
सदिया बीतेगी पर दुनिया नाम उसका लेगी,
उसने कुछ यूँ अंदाज -ऐ- बयान रखा था
ख्वाहिशे बहुत सी बाकी है अभी दोस्तों,
सपनों में कुछ और भी सामान रखा था
उसकी याद आये तो बस आखे बंद करिए,
उसने भी आपकी नींदों का अरमान रखा था ....
उसे भूल मत जाना इतनी आसानी से कभी,
उसने भी मशहूर होने का इन्तेजाम रखा था ..
मैं और उसमे ज्यादा फर्क नहीं है दोस्तों,
कभी यूँ हुआ कि मैंने अपने लिए ही "उसका" ,
और उसने भी अनकहे फायदों के लिए मेरा ,
बेचारे ईमान को छोड़कर, दामन थाम रखा था !!
Wednesday, January 13, 2010
dosto ke liye !!!!
मैं जब रोशनी में आया तो उंगलिया उठने लगी ,
पर कुछ अपने ऐसे है जो मुझे खोने नहीं देते
कुछ हसरते तकती रहती है मेरी आहटे हरसू,
कुछ सपने मुझे कभी चैन से सोने नहीं देते
मैं जब यहाँ पूरा टूट के बिखरना चाहता हूँ ,
कुछ हाथ ऐसे है, जो जमीन पर गिरने नहीं देते
कभी कहीं जिंदगी में निराश मैं हुआ हु तो ,
ऊपर जो खुदा है वो मुझे कभी रुकने नहीं देते,
और कुछ साथी ऐसे बने है यहाँ पे मेरे हमदम,
कि खुद मिट जाए पर मुझे झुकने नहीं देते
मैं उनके इस अहसान को चुकाऊंगा कैसे ,
जो मुझे कभी जेब में हाथ डालने नहीं देते
कभी कश्तिया मन बना लेती है धोखा देने का
साहिल पे यही हाथ होते है जो डूबने नहीं देते
पर कुछ अपने ऐसे है जो मुझे खोने नहीं देते
कुछ हसरते तकती रहती है मेरी आहटे हरसू,
कुछ सपने मुझे कभी चैन से सोने नहीं देते
मैं जब यहाँ पूरा टूट के बिखरना चाहता हूँ ,
कुछ हाथ ऐसे है, जो जमीन पर गिरने नहीं देते
कभी कहीं जिंदगी में निराश मैं हुआ हु तो ,
ऊपर जो खुदा है वो मुझे कभी रुकने नहीं देते,
और कुछ साथी ऐसे बने है यहाँ पे मेरे हमदम,
कि खुद मिट जाए पर मुझे झुकने नहीं देते
मैं उनके इस अहसान को चुकाऊंगा कैसे ,
जो मुझे कभी जेब में हाथ डालने नहीं देते
कभी कश्तिया मन बना लेती है धोखा देने का
साहिल पे यही हाथ होते है जो डूबने नहीं देते
Tuesday, January 12, 2010
रफ़्तार का अंदाजा नहीं है ...
रास्ते बनेगे कैसे, इसका कोई कायदा नहीं है,
जिंदगी बहुत तेज है रफ़्तार का अंदाजा नहीं है |
ये जब यु मिले है, खो भी जाना है इनको यहाँ,
क्या इन्हें पता है, इश्क को रहम आता नहीं है |
तुम्हारी जिन आदतों से परेशान था जो मैं कभी ,
कब दोहराएगा वो फिर तू, ये मुझे पता नहीं है |
कभी दो बूँद पानी ही ज़िन्दगी दे दे किसी को ,
पर कौन है यहाँ पे जो सागर का प्यासा नहीं है |
जीने के करीने कुछ अलग है जो जहाँ से हमारे,
मतलब ये है क्या कि हमें जीना आता ही नहीं है |
हद तो ये कि आँखे बंद करके बैठे है लोग यहाँ,
सच तो ये है मौत का डर किसको डराता नहीं है |
भूल जाने को बोल रहा है दिल हर खुशनुमा लम्हा,
वक़्त कि बर्बादी है, जब वो सपनो में भी आता नहीं है |
करीने , सलीके, इज्ज़त, सऊर, लफ्जों का क्या करना,
जब यहाँ पे शराफत का कोई एक पैमाना ही नहीं है |
मुद्दतो से सोच रहे है बदल जाऊँगा एक दिन मैं भी,
पत्थर नहीं बदलते जब तक कोई तराशता नहीं है |
ज़िन्दगी का वक़्त बेवक्त इम्तिहान लेता है वो रकीब ,
अब तक मुझे सीधे से जवाब लिखना ही आता नहीं है |
जला दो ख्वाबो को, किताबो को, दफना दो दूर मुझसे,
दिल की सुनता हूँ,सिवा इसके कुछ आता ही नहीं है ||
जिंदगी बहुत तेज है रफ़्तार का अंदाजा नहीं है |
ये जब यु मिले है, खो भी जाना है इनको यहाँ,
क्या इन्हें पता है, इश्क को रहम आता नहीं है |
तुम्हारी जिन आदतों से परेशान था जो मैं कभी ,
कब दोहराएगा वो फिर तू, ये मुझे पता नहीं है |
कभी दो बूँद पानी ही ज़िन्दगी दे दे किसी को ,
पर कौन है यहाँ पे जो सागर का प्यासा नहीं है |
जीने के करीने कुछ अलग है जो जहाँ से हमारे,
मतलब ये है क्या कि हमें जीना आता ही नहीं है |
हद तो ये कि आँखे बंद करके बैठे है लोग यहाँ,
सच तो ये है मौत का डर किसको डराता नहीं है |
भूल जाने को बोल रहा है दिल हर खुशनुमा लम्हा,
वक़्त कि बर्बादी है, जब वो सपनो में भी आता नहीं है |
करीने , सलीके, इज्ज़त, सऊर, लफ्जों का क्या करना,
जब यहाँ पे शराफत का कोई एक पैमाना ही नहीं है |
मुद्दतो से सोच रहे है बदल जाऊँगा एक दिन मैं भी,
पत्थर नहीं बदलते जब तक कोई तराशता नहीं है |
ज़िन्दगी का वक़्त बेवक्त इम्तिहान लेता है वो रकीब ,
अब तक मुझे सीधे से जवाब लिखना ही आता नहीं है |
जला दो ख्वाबो को, किताबो को, दफना दो दूर मुझसे,
दिल की सुनता हूँ,सिवा इसके कुछ आता ही नहीं है ||
Subscribe to:
Posts (Atom)