कविताएं और भी यहाँ ..

Wednesday, October 28, 2009

मरना होता तो हम किसी पे भी मर जाते,
पर इस ज़िन्दगी को बहाने कम पड़ते है,
यु तो खुशिया बहुत पर गम बेहतर है उनसे ,
क्योकि अपने गम सुनाने कम पड़ते है

Tuesday, October 27, 2009

हार सिखाती है आगे बढो,

हार सिखाती है आगे बढो,
थक गए हो तो भी लडो,
जो जगह छिन चुकी है तुमसे,
कुछ नहीं तो उसी की खातिर बढो,
एक इमारत गिर चुकी है,
श्रेष्ठता की,
उसे फिर बनाओ,
उसे फिर गढो..
पथ चाहे कितना दुर्गम हो,
चलते रहो और आगे बढो,
बहुत प्रश्न आने बाकि है अभी,
उनके लिए एक उदहारण गढो,
मंजिल जब आ जाए पास बहुत,
तब समझेगे,
कि आसमान से ऊंचा कुछ भी नहीं,
संकल्प की सीढ़ी पर चढो ||

Sunday, October 25, 2009

मेरी खिड़की से आसमान नज़र आता है

मेरी खिड़की से आसमान नज़र आता है
पर मेरी छत से छोटा है ,
क्योकि बेहतर वही है जो ,
हाथ आता है ...

मेरी चादर मेरे पैरो से ,

बड़ी ही रखना मेरे खुदा ..
कि जरूरत के वक़्त ...
एक और समा जाता है ...

मैं इतना अधिकार तो नहीं रखता ,
पर इतना वक़्त देना ,
कि मैं कह सकूँ  ..
वो सब कुछ...
जो हर बार रह जाता है...

कभी कभी कहना बहुत होता है..
पर वक़्त की इस साजिश में 

कि वक़्त बहुत है ...
सारा वक़्त बीत जाता है..

Wednesday, October 21, 2009

मैं प्रश्न बनना चाहता

मैं प्रश्न बनना चाहता हूँ,
और छोड़ देना चाहता हूँ,
कोशिश,
गंभीर होने की,
व्यापक,
निरर्थक उत्तर की तरह|
बस कुछ ऐसा,
की जो निकले ,
तो बाकी सभी ,
उसे हल करे,
मैं खुद को,
तलाशना बंद करके ,
ये जिम्मेदारी,
अब औरो को देकर,
एक प्रश्न की तरह,
सदैव ,
बना रहना चाहता हूँ,
की हर नयी पीढी,
आये,
मेरा उत्तर खोजे,
मुझे हल करे,
और मैं हमेशा वही रहू,
इसीलिए मैं प्रश्न बनना चाहता हूँ !!

Tuesday, October 20, 2009

मैं भी इंसान हूँ.

जीवन के इन अँधेरे कटीले रास्तो पर ,
ह्रदय पर इच्छाओ का बोझ ढोकर
मन में संदेह के बीज बोकर ,
बढ़ना चाहता हूँ आगे, पर बढू कैसे ..
क्योकि हर बार कोई
अपरिचित अनजाना व्यक्ति,
कुछ कदम साथ चलकर,
जाने किधर चला जाता है ,
इन अंधेरो से होकर ..
अब मैंने भी ये सोच लिया है ,
उसके पीछे ही सही,
पर मैं भी अपनी मंजिल तलाश लूँगा
सारे जहाँ को अपनी मिसाल दूंगा,
बस यही है अब मन में,
कि दिखा दूं मैं भी महान हूँ,
और यही मारा जाता हूँ,
क्योकि मैं भी इंसान हूँ..

Sunday, October 18, 2009

main nahi jaanta

मेरी प्यास को किसी दरिया कि तलाश है \
आँखों को लगता है कि कोई ख्वाब आस पास है ...
मैं तनहा नहीं हूँ यहाँ हर किसी की तरह ,
ये तो आदतन अकेले होने का अहसास है ..
मेरी कहानियो का अंत मैं ही नहीं जानता ...
लिखता तो मैं हूँ पता नहीं कलम किसके पास है..
मैं जिसको समझता हूँ सबसे अजीज दिल के करीब,
ये जख्म जो दिख रहा है उसी का उधार है...
मेरी राहो में इतने चौराहे किसने बना डाले है..
मैं नहीं जानता कौन मेरी इस जिन्दगी का ठेकेदार है
मैं चला जानिबे मंजिल ,
लेकर बस इतना सा सामान
टुकड़े टुकड़े जीना ..
टुकडा टुकडा अरमान
टुकडा टुकडा ज़िन्दगी
और एक मुट्ठी आसमान ...

नाम क्या है

अपनी आँखों मैं समंदर थम रखा है ..
जैसे मयखाने मैं हो , और भरा जाम रखा है .
ज़िन्दगी कि जरुरत किसे है ...
हमने दामन मैं , मौत का सामान रखा है .

शाही अंदाज हैं अपने ...
काली रातों का नाम , शाम रखा है .

वो साँसों और धडकनों को गिनाते हैं ...
और हमने मौत का नाम , आराम रखा है .

लो छूट गयी आज वोह पतंग भी ...
उसने अपना ख्वाब , आसमान रखा है .

उन्हें नाज है अपनी अदाओं पर ...
जाने किसने , उनका अरमान रखा है .

नहीं लड़ -खडाएंगे , हम और ...
हमने नशे को , बाँहों मैं थाम रखा है .

वोह कहतें हैं , क्या कमाया मैंने ...
अभी भी थोडा सा अभिमान रखा है .

अभी काफी जिरहें बाकी हैं ज़िन्दगी से ...
दामन मैं अभी थोडा ईमान रखा है .

यूं देखा मुझे , कि झाँका आत्मा तक ...
कह दो उनसे, अभी भी आत्मा -सम्मान रखा है .

अलहडो कि तरह ही जीते गए ...
ज़िन्दगी को बहुत आसान रखा है .

यूँ ही बदलते रहे किस्मते कई ...
पर खुद को गुमनाम रखा है .

और किसी ने पुँछ ही लिया , आखिर ...
नाम क्या है ...
क्या बताते ,
कि एक माँ है ;
जो शैतान कहती है ..

और दूसरा ज़माने ने ,
नाकाम रखा है .

Thursday, October 1, 2009

मेरी प्यास को किसी दरिया कि तलाश है
आँखों को लगता है कि कोई ख्वाब आस पास है

जो कभी हुई नहीं ...

एक शाम याद है जो कभी ढली नहीं ..
एक सुबह का इंतज़ार है जो कभी हुई नहीं ...
उस घर के हालात क्या होगे , किस से पूछे ..
ना कोई हँसा , मैंने कोई चीख भी सुनी नहीं...
हर दर्द की दवा मौजूद है इस बाज़ार में ..
पर उस भूखे को रोटी की दुआ भी नहीं ..
उसको देखकर सासों का थम जाना वाजिब है ...
वो इस हालात में भी जिंदा है , मरा नहीं ...
दुश्मनी के त्यौहार बहुत पुराने नहीं हुए ..
दंगो से ज्यादा दिवाली की आवाज़ कभी हुई नहीं ..
बेहतर है हम तुम चुप ही रहे इस बात पर ...
बख्सा है हमको की उसने अपनी आवाज़ अभी सुनी नहीं ..
तमाशों और ज़िन्दगी में फर्क ज्यादा नहीं रहा अब ..
यहाँ हिचकियाँ और वहां सिर्फ तालियाँ बजती रही ...
मैं स्वार्थी और चालाक था, बच पाया इस जाल से ...
देखो वह कितनो की अंग्लुइया इस यज्ञ में जल रही ...
फुर्सत रही तो वो कभी सोचेंगे उसके हश्र को ...
अभी तो वो व्यस्त हैं , अंगुलिया अभी कुछ गिन रही ..

आदत है

अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की,
जब जब ज़िन्दगी ने परखना चाह ,
हमने नहीं की कोशिश आजमाने की ....

बस चलते रहे मुस्कुराते रहे ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ,
कोई पसंद आया तो रख लिया दिल में ,
जरूरत न समझी कभी बताने की ..

अब उनको इस चहरे से दिक्कते होने लगी ..
हमें हिदायत दे डाली बदल जाने की ...
कोई बताये की मुस्कुराना कैसे छोडे ,
यही तो एक दवा है ग़म छुपाने की ...

अब तो मौत भी बोझ उठाने से मना करती है ,
ज़िन्दगी भी चुपचाप गुज़र जाया करती है ,
कोई कहता है की दरख्तों से ठहरे हुए क्यों हो ,
क्या सजा मिली है मुझे खुद पर खिलखिलाने की ,

मैं क्या कहूं क्या समझाऊंगा उन्हें ,
सीने मैं कितने ख्वाब दफ्नाऊंगा मैं ,
मेरे पैरों में वो लड़खादाहत आई है अभी ,
मौत भी आज देखकर मुझे मुस्कुराई है अभी ,

बस निकलने का वक़्त बहुत करीब आया है ,
ज़िन्दगी ने आज फिर दामन छुडाया है ,
पर अपनी तो आदत रही है मुस्कुराने की ,
अब तो बारी है ज़िन्दगी की मुह छुपाने की ,

मुझे नहीं है शिकायत -शिकवा ज़िन्दगी से कोई ,
उसकी तो कहानी है सदियों से दामन छुडाने की ,
हम तो हर आहट पर आँखें खोल लेते हैं ,
अब तो मौत ने भी मोहलत दे दी है उनके आने की ..

कौन बदलेगा इस वक़्त को आगे बढ़ने से ,
कौन भीगेगा रेत का तूफ़ान होने से ,
यहाँ तो दुकाने है आंसुओ की कीमत लगाने की ,
अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की

तमन्ना हूँ

तमन्ना हूँ , पूरा मत करना ,
ख़त्म हो जाऊँगा मैं ,
एक सपना ही तो हूँ पूरा कर देना
वर्ना दफ़न हो जाऊँगा मैं ...
कही से कोई आवाज़ आये
तो ठिठककर सुन लेना ,
वर्ना आवाज़ के इन जंगलों में ,
गुम हो जाऊँगा मैं .
दीवारें उग रही है
दरख्तों की तरह यहाँ पर ,
पत्थेर के सूखे पत्तों सा
सुख ही जाऊँगा मैं ,
अपने हर रास्ते से
हटा देना मुझको तुम ,
पात्थर ही तो हूँ
ठोकर मार जाऊँगा मैं ,
एक नगमा ही रह गया ,
किसी महफिल में न कहना ,
वर्ना आज की रात ही बस ,
फिर ख़त्म हो जाऊँगा मैं ..

मैं गीता औ' कुरान पढ़ रहा हूँ

कत्ल और वध के मतलब में उलझ रहा हूँ..
आजकल मैं गीता औ' कुरान पढ़ रहा हूँ |

मुझे ये मतलब समझ में नहीं आते जब..
इसीलिए लोगो को ये बातें समझ रहा हूँ |

मुझे इंसान बनना था, लेकिन सारा फायदा,
फिरकापरस्त होने में ही समझ पा रहा हूँ |

देखो मुझे ही आज ये सारा ज़हर पीना है ..
मैं अपनी इंसानी हैवानियत को बढा रहा हूँ|

इंसान होने में इंसानियत नज़र नहीं आती
अब मैं भी खुदको मज़हबी बना रहा हूँ |

अब मुझे तरक्की ही तरक्की दिख रही है,
मैं भी कुछ लोगो का भगवान बन रहा हूँ |

मैं तो उस आदत सा था

मैं तो उस आदत सा था जो छोड़ दी तुमने ,
अब वो खामोशी हूँ जो ओढ़ ली है तुमने ,
मैं तो पनाहों की तलाश में भटकता ही रहा ,
मेरी कुछ उलझी सी राहे थी जो रोक दी तुमने ,
यहाँ तो अब खून निकले तो भी रंग नहीं दिखता
अब ये तो वो शराब है जो छोड़ दी मैंने ,
साँसे उधार मांग रही थी ज़िन्दगी मुझसे ,
ज़रूरतमंद देखा तो साँसे भी छोड़ दी मैंने ,
मैं तो अब हैरान हूँ कि चलू तो कैसे चलूँ ,
पैरों तले एक ज़मीन थी जो खीच ली तुमने ,
इस बेसुध ज़िन्दगी का बोझ कैसे उठाऊंगा मैं ,
अब वो बांह ही नहीं रही जो मरोड़ी थी तुमने ,
अब इस लाश कि रगों में लहू बहे तो कैसे बहे ,
जिंदा था तब सीधे दिल पर ही तो चोट कि थी तुमने ........

शब्दों के जाल

शब्दों के जाल में उलझा हुआ जीवन,
कितना नीरस होता है,
अपनी वास्तविकता से कोसो दूरी पर,
याठार्थ से बहुत ऊपर
बहुत उलझा हुआ
की जितना निकलने की कोशिश करो
उतना हिया नए जाल में फसता है .
वो सब लोग जो,
इस जाल में फस हुआ मुझे देख रहे है,
मेरी इस स्थिति से ,
अनुभव समेत रहे हैं,
सावधान हो रहे है,
वे कितना भी सजग रहें
फसना उन्हें भी है,
शब्दों के जाल में.
क्योकि मैं भी इतना ही सजग था
पर जो जाल अपना ही बुना हो
वो प्रारब्ध होता है.
देखा है कभी ,
किसी मकडी को जाल बनाते,
वह हाथ से बनता है,
और यह दिमाग से,
पर,
अंत वही होता है ,
दोनों का,
एक साथ उलझना.
इसीलिए,
जब मैं शब्दों के इस जाल में,
फसा हुआ हूँ,
अनुभव मत समेटो,
मेरी और देखो,
यह जाल जो मैंने बुना था,
कहा जानता था,
की अपने लियेही चुना था.,
इसीलिए चेतन पर चढ़े हुए
अनुभव की गर्द साफ़ करो,
कितना भी सजग कदम रखो,
जब फसना ही है तो,
मेरे अनुभवसे काम करो,
आज और अभी अपने सारे,
जाल साफ़ करो,
फिर न कोई दूसरा फसेगा,
न तुम फसोगे ,
पर तुम सबके लिए मैं अंतिम
पाठ रहंगा,
अपने ही जाल में फस हुआ,
पर संतुष्टि है,
किसी बहाने याद तो रहूँगा !!