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Thursday, October 1, 2009

मैं तो उस आदत सा था

मैं तो उस आदत सा था जो छोड़ दी तुमने ,
अब वो खामोशी हूँ जो ओढ़ ली है तुमने ,
मैं तो पनाहों की तलाश में भटकता ही रहा ,
मेरी कुछ उलझी सी राहे थी जो रोक दी तुमने ,
यहाँ तो अब खून निकले तो भी रंग नहीं दिखता
अब ये तो वो शराब है जो छोड़ दी मैंने ,
साँसे उधार मांग रही थी ज़िन्दगी मुझसे ,
ज़रूरतमंद देखा तो साँसे भी छोड़ दी मैंने ,
मैं तो अब हैरान हूँ कि चलू तो कैसे चलूँ ,
पैरों तले एक ज़मीन थी जो खीच ली तुमने ,
इस बेसुध ज़िन्दगी का बोझ कैसे उठाऊंगा मैं ,
अब वो बांह ही नहीं रही जो मरोड़ी थी तुमने ,
अब इस लाश कि रगों में लहू बहे तो कैसे बहे ,
जिंदा था तब सीधे दिल पर ही तो चोट कि थी तुमने ........

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