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Sunday, October 18, 2009

नाम क्या है

अपनी आँखों मैं समंदर थम रखा है ..
जैसे मयखाने मैं हो , और भरा जाम रखा है .
ज़िन्दगी कि जरुरत किसे है ...
हमने दामन मैं , मौत का सामान रखा है .

शाही अंदाज हैं अपने ...
काली रातों का नाम , शाम रखा है .

वो साँसों और धडकनों को गिनाते हैं ...
और हमने मौत का नाम , आराम रखा है .

लो छूट गयी आज वोह पतंग भी ...
उसने अपना ख्वाब , आसमान रखा है .

उन्हें नाज है अपनी अदाओं पर ...
जाने किसने , उनका अरमान रखा है .

नहीं लड़ -खडाएंगे , हम और ...
हमने नशे को , बाँहों मैं थाम रखा है .

वोह कहतें हैं , क्या कमाया मैंने ...
अभी भी थोडा सा अभिमान रखा है .

अभी काफी जिरहें बाकी हैं ज़िन्दगी से ...
दामन मैं अभी थोडा ईमान रखा है .

यूं देखा मुझे , कि झाँका आत्मा तक ...
कह दो उनसे, अभी भी आत्मा -सम्मान रखा है .

अलहडो कि तरह ही जीते गए ...
ज़िन्दगी को बहुत आसान रखा है .

यूँ ही बदलते रहे किस्मते कई ...
पर खुद को गुमनाम रखा है .

और किसी ने पुँछ ही लिया , आखिर ...
नाम क्या है ...
क्या बताते ,
कि एक माँ है ;
जो शैतान कहती है ..

और दूसरा ज़माने ने ,
नाकाम रखा है .

4 comments:

Pramod Sharma said...

उन्हें नाज है अपनी अदाओं पर ...
जाने किसने , उनका अरमान रखा है .

नहीं लड़ -खडाएंगे , हम और ...
हमने नशे को , बाँहों मैं थाम रखा है .

kamal ki lines hai... beautifulll... likhte raho..

Mayank said...

Shukriya dost... hausla afjaai ke liye :)

Amol said...

waah waah!!!
kya baat hai sir.. bahut sahi

Mayank said...

Thank you amol...