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Tuesday, October 27, 2009

हार सिखाती है आगे बढो,

हार सिखाती है आगे बढो,
थक गए हो तो भी लडो,
जो जगह छिन चुकी है तुमसे,
कुछ नहीं तो उसी की खातिर बढो,
एक इमारत गिर चुकी है,
श्रेष्ठता की,
उसे फिर बनाओ,
उसे फिर गढो..
पथ चाहे कितना दुर्गम हो,
चलते रहो और आगे बढो,
बहुत प्रश्न आने बाकि है अभी,
उनके लिए एक उदहारण गढो,
मंजिल जब आ जाए पास बहुत,
तब समझेगे,
कि आसमान से ऊंचा कुछ भी नहीं,
संकल्प की सीढ़ी पर चढो ||

1 comment:

मनोज कुमार said...

जज़्बा कोई अख़लाक से बेहतर नहीं होता।
कुछ भी यहां इंसान से बढ़कर नहीं होता।
कोशिश से ही इंसान को मिलती है मंजिलें,
मुट्ठी में कभी बंद मुक़द्दर नहीं होता।