ह्रदय पर इच्छाओ का बोझ ढोकर
मन में संदेह के बीज बोकर ,
बढ़ना चाहता हूँ आगे, पर बढू कैसे ..
क्योकि हर बार कोई
अपरिचित अनजाना व्यक्ति,
कुछ कदम साथ चलकर,
जाने किधर चला जाता है ,
इन अंधेरो से होकर ..
अब मैंने भी ये सोच लिया है ,
उसके पीछे ही सही,
पर मैं भी अपनी मंजिल तलाश लूँगा
सारे जहाँ को अपनी मिसाल दूंगा,
बस यही है अब मन में,
कि दिखा दूं मैं भी महान हूँ,
और यही मारा जाता हूँ,
क्योकि मैं भी इंसान हूँ..
3 comments:
कविता मे गहरी संवेदना है
तुम्हारे अंदर के दर्द को बयां करती है दोस्त .
बहुत प्यारी लाइन है...
shukriya manoj bhai and pramod ..
bahut bahut shukriya
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