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Thursday, October 1, 2009

आदत है

अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की,
जब जब ज़िन्दगी ने परखना चाह ,
हमने नहीं की कोशिश आजमाने की ....

बस चलते रहे मुस्कुराते रहे ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ,
कोई पसंद आया तो रख लिया दिल में ,
जरूरत न समझी कभी बताने की ..

अब उनको इस चहरे से दिक्कते होने लगी ..
हमें हिदायत दे डाली बदल जाने की ...
कोई बताये की मुस्कुराना कैसे छोडे ,
यही तो एक दवा है ग़म छुपाने की ...

अब तो मौत भी बोझ उठाने से मना करती है ,
ज़िन्दगी भी चुपचाप गुज़र जाया करती है ,
कोई कहता है की दरख्तों से ठहरे हुए क्यों हो ,
क्या सजा मिली है मुझे खुद पर खिलखिलाने की ,

मैं क्या कहूं क्या समझाऊंगा उन्हें ,
सीने मैं कितने ख्वाब दफ्नाऊंगा मैं ,
मेरे पैरों में वो लड़खादाहत आई है अभी ,
मौत भी आज देखकर मुझे मुस्कुराई है अभी ,

बस निकलने का वक़्त बहुत करीब आया है ,
ज़िन्दगी ने आज फिर दामन छुडाया है ,
पर अपनी तो आदत रही है मुस्कुराने की ,
अब तो बारी है ज़िन्दगी की मुह छुपाने की ,

मुझे नहीं है शिकायत -शिकवा ज़िन्दगी से कोई ,
उसकी तो कहानी है सदियों से दामन छुडाने की ,
हम तो हर आहट पर आँखें खोल लेते हैं ,
अब तो मौत ने भी मोहलत दे दी है उनके आने की ..

कौन बदलेगा इस वक़्त को आगे बढ़ने से ,
कौन भीगेगा रेत का तूफ़ान होने से ,
यहाँ तो दुकाने है आंसुओ की कीमत लगाने की ,
अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की

1 comment:

Anonymous said...

hmmm... not a typical mayank...