अपनी  आँखों  मैं  समंदर  थम  रखा  है ..
जैसे  मयखाने  मैं  हो , और  भरा  जाम  रखा  है .
ज़िन्दगी  कि  जरुरत  किसे  है ...
हमने  दामन  मैं , मौत  का  सामान  रखा  है .
शाही  अंदाज  हैं  अपने ...
काली  रातों  का  नाम , शाम  रखा  है .
वो साँसों  और  धडकनों   को  गिनाते  हैं ...
और  हमने  मौत  का  नाम , आराम  रखा  है .
लो  छूट  गयी  आज  वोह  पतंग  भी ...
उसने  अपना  ख्वाब , आसमान  रखा  है .
उन्हें  नाज  है  अपनी  अदाओं  पर ...
जाने  किसने , उनका  अरमान  रखा  है .
नहीं   लड़ -खडाएंगे  , हम  और ...
हमने  नशे  को , बाँहों  मैं  थाम  रखा  है .
वोह  कहतें  हैं , क्या  कमाया  मैंने ...
अभी  भी  थोडा  सा  अभिमान  रखा  है .
अभी  काफी  जिरहें  बाकी  हैं  ज़िन्दगी  से ...
दामन  मैं  अभी  थोडा  ईमान  रखा  है .
यूं  देखा  मुझे , कि  झाँका  आत्मा  तक ...
कह दो उनसे, अभी भी  आत्मा -सम्मान  रखा  है .
अलहडो कि  तरह  ही  जीते  गए ...
ज़िन्दगी  को  बहुत  आसान  रखा  है .
यूँ  ही  बदलते  रहे  किस्मते  कई ...
पर  खुद  को  गुमनाम  रखा  है .
और  किसी  ने  पुँछ  ही  लिया , आखिर ...
नाम  क्या  है ...
क्या  बताते ,
कि  एक  माँ  है ; 
जो  शैतान  कहती  है ..
और  दूसरा  ज़माने  ने , 
नाकाम  रखा  है .

 
 
4 comments:
उन्हें नाज है अपनी अदाओं पर ...
जाने किसने , उनका अरमान रखा है .
नहीं लड़ -खडाएंगे , हम और ...
हमने नशे को , बाँहों मैं थाम रखा है .
kamal ki lines hai... beautifulll... likhte raho..
Shukriya dost... hausla afjaai ke liye :)
waah waah!!!
kya baat hai sir.. bahut sahi
Thank you amol...
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