ये साल भी गुजर गया ,
एक हवा के झौके की तरह ,
रात के एक सपने की तरह ,
अचानक छलक आये आंसुओ सा ,
आते जाते लोगो की तरह ,
रास्तो की तरह ,बादलो की तरह ,
धुप के जैसा , छाव की तरह ..
ये साल भी गुजर गया ..
ये साल मेरे लिए
उतना ही ख़ास रहा है ,
हर गुजरे हुए साल कि तरह ,
मेरे ख्वाबो का गवाह रहा है
नींद की तरह साथ रहा है ..
मेरी सारी इच्छाओ का आगाज़ रहा ,
हर गुजरे साल की तरह ,
ये जो साल भी गुजर गया ..
कभी तमन्ना इन्तेजार करती रही,
कभी वक़्त का ख्वाब रहा ..
कभी दोस्तों ने घेरा हुआ था ..
कभी तन्हाई ने साथ दिया ,
बस हमने मुडके न देखा ...
कभी ज़िन्दगी चुपचाप गुजरी ,
कभी हम गुजर गए बिना देखे,
और यु गुजरे की समझ ही न सके
इस गुजरे हुए साल की तरह |
Thursday, December 31, 2009
Thursday, December 24, 2009
तेरे कारण ...
शुक्र है कि किसी इन्तजार में उम्मीद जिन्दा है ..
गर उम्मीद जिन्दा हो तो दिल में डर नहीं आता |
तुम्हारी याद आये न आये, दिन तो गुजर जाता है,
मुद्दा तो ये है कि दिल से तेरा ख्याल क्यों नहीं जाता |
एतिहायत जो बरतनी है तुझसे दूरी निभाने की,
वर्ना तुझे देखके मैं यूँ कभी पीछे वापस नहीं जाता |
प्यास को दरिया में डुबाने की कोशिशों के बाद भी,
जाने होठो से आंसुओ का ये स्वाद क्यों नहीं जाता |
कितनी तमन्नाये मचली और ख़तम भी हो गई वही पे ..
बस इन आँखों से एक तेरा ही सपना नहीं जाता ..|
यहाँ मेरे नाउम्मीद होने की सारी कोशिशे बेमतलब है ...
तू है या तेरी दुआए है, मैं ढंग से बर्बाद भी नहीं हो पाता |
गर उम्मीद जिन्दा हो तो दिल में डर नहीं आता |
तुम्हारी याद आये न आये, दिन तो गुजर जाता है,
मुद्दा तो ये है कि दिल से तेरा ख्याल क्यों नहीं जाता |
एतिहायत जो बरतनी है तुझसे दूरी निभाने की,
वर्ना तुझे देखके मैं यूँ कभी पीछे वापस नहीं जाता |
प्यास को दरिया में डुबाने की कोशिशों के बाद भी,
जाने होठो से आंसुओ का ये स्वाद क्यों नहीं जाता |
कितनी तमन्नाये मचली और ख़तम भी हो गई वही पे ..
बस इन आँखों से एक तेरा ही सपना नहीं जाता ..|
यहाँ मेरे नाउम्मीद होने की सारी कोशिशे बेमतलब है ...
तू है या तेरी दुआए है, मैं ढंग से बर्बाद भी नहीं हो पाता |
Monday, December 21, 2009
? दौर ?
ये वो दौर है यारों जहाँ गरीब को मरने की जल्दी इसीलिए भी है,
कि कहीं ज़िन्दगी की कश्मकश में कफ़न महंगा न हो जाये ...
"Above quote I have heard somewhere and then I expand this idea ..."
"Above quote I have heard somewhere and then I expand this idea ..."
और
ये वो दौर भी है यारों जहाँ मैं तुमसे तेज़ चलने की कोशिश में इसीलिए लगा हूँ,
कि जो रोटी मेरी भूख की नहीं है वो कभी कहीं तुम्हे न मिल जाए ...
और ये दौर वो भी है यारो जहा तेरे कंधे पे मेरा हाथ इसीलिए भी जरूरी है ,
कि वक़्त कि इस दौड़ में कही तू मेरे आगे न निकल जाए |
और ये वो दौर भी है यारों जहाँ मेरे चेहरे पे मुखौटा इसीलिए भी जरूरी है,
कि उभरते चेहरों की इस दुनिया में कही मेरा असल रंग न उतर जाए | - Mayank G
Wednesday, December 16, 2009
मैं कैसे भूल जाऊ |
कैसे भूल जाऊ कि ,
तू मेरा ही एक हिस्सा है |
कैसे भूल जाऊ कि
तुने ही पूरा किया है |
वो तेरा मुझ पर
खिलखिला के हसना ,
मेरे बालो पे तेरी ,
अंगुलिया फिराना |
मुझको गले लगाना
और देर तक रोना ,
मैं कैसे भूल जाऊ |
कभी रातो में जागकर ,
खाना पकाना ,
मुझको खिलाना ,
खुद भूखा सो जाना ,
मैं कैसे भूल जाऊ |
सारी रात जागकर ,
मेरा कुछ भी सुनाना
तेरा उफ़ भी न करना ,
सिर्फ मुस्कुराते जाना |
होने लगे गर चिड इससे ,
फिर भी हाँ मिलाना
तेरी बाहों में ही ,
फिर थक के सो जाना |
मैं कैसे भूल जाऊ |
कभी अकेले में अपने
सारे राज बताना |
मुझसे मेरा हर ,
राज चुरा ले जाना |
कभी मुझे छूना ,
कभी छूने न देना ,
कभी मेरे कंधे पे ,
टिक कर ही दिन बिताना
मैं कैसे भूल जाऊ |
आज दूर है तू ,
तेरी याद पास है ,
मुझे भूख भी अब
तेरी तस्वीर के ख्याल
के साथ ही आती है |
मैं जब सोता हूँ ,
तो चादर बन जाती है |
कभी मैं तुझे
बिछा लेता हूँ ,
कभी तू मुझे
ओढ़ के सो जाती है |
मैं कैसे भूल जाऊ |
तू मेरी आदत
हुआ करती थी कभी ,
अब मेरी खामोशी
बन जाती है |
कभी मेरी
जागती आखों का
शौक थी तू ,
और आज नींद में
सपने सी
जरूरत बन जाती है
मैं कैसे भूल जाऊ |
मैं कैसे भूल जाऊ ,
कि तू मेरी माँ जैसी हो ,
और कभी मेरी साथी
बन जाती है ..
मेरे जीवन का हर
समाधान हो तो तुम ,
मैं जब कभी
प्रश्न होता हूँ
तब तु मेरी लिए
उदाहरण बन जाती है ..
मैं कैसे भूल जाऊ तुम्हे ...
Tuesday, December 15, 2009
ख़ामोशी को भी सुना है |
सीने में टूटन सी इतनी क्यों है ,
हालात से क्यों झगडा हुआ है |
जहा से चले थे वही पे खड़े है ,
दिल जाके तुझपे ही अटका हुआ है |
वो रास्ता दिखाने आया था मुझको ,
जो पहले ही कही गुमशुदा हुआ है |
खुशनुमा है राते फिर भी क्यों ग़म है ,
उम्मीद पर ही तो चाँद लटका हुआ है |
इनायत है तेरी कि मुझको यु देखा ,
नहीं तो अभी तक ये अनदेखा हुआ है |
उसकी आँखों में यु डर दिख रहा है
वो प्यार के नाम से ही सहमा हुआ है ..
तमन्ना थी चिरागों से अँधेरे बुझायेगे ,
रौशनी कि उम्मीद में घर ही जला है |
कही तो साजिश करती है ये बारिश ,
मिटटी के घरोदो में ही पानी घुसा है |
साँसों का चलना तुझसे ही मुमकिन ,
साँसों का चलना तुझसे ही मुमकिन ,
जिन्दा हूँ जब तक तूने थामा हुआ है |
तू रगों में दौड़ता रहे भी तो क्या ,
नदी का पानी कब नदी का हुआ है |
तेरे आने कि कोई दस्तक भी नहीं हुई ,वर्ना हमने तो ख़ामोशी को भी सुना है |
Wednesday, December 9, 2009
उलझन
सुकून की तलाश में
यहाँ सुकून खो गया |
उलझनों का नाम ही,
अब ज़िन्दगी हो गया |
उलझनों का नाम ही,
अब ज़िन्दगी हो गया |
जीते है लोग यहाँ ,
औरो की आँखों के
सपनो के लिए |
बेगाने सपनो को ही
ज़िन्दगी का सारा
अरमान दे दिया |
समंदर भीग रहे है ,
अपनी ही लहरों से ..
और कहीं सूरज की
जल्दी घर जाने की जिद ने
चाँद को रात भर,
पहरेदारी का काम दे दिया |
Tuesday, December 8, 2009
tum kya ho ...
तुम
जाने किसकी किस्मत हो ,
पर जान लो ,
की तुम मेरी भी हसरत हो |
मैं हकीकत का भरोसा
कैसे करू ,
जब,
तुम साँसों की तरह
ज़िन्दगी की जरूरत हो |
तुमको जानने का
जितना वक़्त मिला है मुझे,
तुम उस वक़्त की
मुझको नियामत हो |
क्या हुआ
जो वक़्त कम मिला,
हर किसी से यहाँ पे,
तुम उन चंद,
लम्हों की
मेरे लिए हिदायत हो |
ये नवाजिश है
ये जान नहीं पाया |
तुम ,
मेरे लिए ,
जिंदगी की साजिश हो,
या फिर,
ज़िन्दगी भर की,
मोहलत हो ....
Monday, December 7, 2009
पहचान
मुझे विश्वाश है ,
कि मैं
तुम्हे जानता हूँ
मुझे मालूम है ,
तुम्हे कब हसाना है ,
कब जगाना है ,
कब आना है पास ,
और कब तुम्हे ,
कुछ बताना है |
मुझे पता है ,
कि तेरे दिल में
अकेलापन कब होगा
और कब उस तन्हाई की,
जगह ले जाना है |
मैं तुम्हे,
अपने घर की तरह,
जानता हूँ ,
जिसका एक - एक कोना ,
पहचानता हूँ |
कब कहाँ से धूल ,
हटाना है,
कब किस सामान को,
करीने से लगाना है |
तुम किसी तस्वीर
की तरह नहीं हो,
जिसको कही सजाना है,
तुम,
उस रोशनदान की तरह हो,
जिसे मैंने बचपन से
आज तक,
एक ही जगह देखा है,
जिसे कभी चाँद सा कोमल
और कभी रोशनी सा ,
सूरज बन जाना है |
कि मैं
तुम्हे जानता हूँ
मुझे मालूम है ,
तुम्हे कब हसाना है ,
कब जगाना है ,
कब आना है पास ,
और कब तुम्हे ,
कुछ बताना है |
मुझे पता है ,
कि तेरे दिल में
अकेलापन कब होगा
और कब उस तन्हाई की,
जगह ले जाना है |
मैं तुम्हे,
अपने घर की तरह,
जानता हूँ ,
जिसका एक - एक कोना ,
पहचानता हूँ |
कब कहाँ से धूल ,
हटाना है,
कब किस सामान को,
करीने से लगाना है |
तुम किसी तस्वीर
की तरह नहीं हो,
जिसको कही सजाना है,
तुम,
उस रोशनदान की तरह हो,
जिसे मैंने बचपन से
आज तक,
एक ही जगह देखा है,
जिसे कभी चाँद सा कोमल
और कभी रोशनी सा ,
सूरज बन जाना है |
Friday, December 4, 2009
पड़ाव
सुबह का सूरज,
दोपहर का सूरज,
शाम का सूरज |
सुबह रण में जाता हुआ योद्धा
दोपहर आग बरस|ता हुआ योद्धा,
शाम को वीरगति पता हुआ योद्धा |
यही तो जीवन के पड़ाव है,
जो सूरज एक दिन में दिखा देता है ||
दोपहर का सूरज,
शाम का सूरज |
सुबह रण में जाता हुआ योद्धा
दोपहर आग बरस|ता हुआ योद्धा,
शाम को वीरगति पता हुआ योद्धा |
यही तो जीवन के पड़ाव है,
जो सूरज एक दिन में दिखा देता है ||
Thursday, December 3, 2009
koshish
हर तरफ रोशनी बाटता फिर रहा है सूरज,
पर उस चाँद की कोशिश भी तो कम नहीं है |
जो भरपूर है पास तेरे उसके जाने का क्या ग़म,
कभी देकर वो देख जो तेरे पास ज्यादा नहीं है |
पर उस चाँद की कोशिश भी तो कम नहीं है |
जो भरपूर है पास तेरे उसके जाने का क्या ग़म,
कभी देकर वो देख जो तेरे पास ज्यादा नहीं है |
Friday, November 27, 2009
saamna
आंधियो के बीच खड़े
उस पेड़ को देखो,
हजारो बार झुका है,
जीता नहीं फिर भी खड़ा है
हारा है तो क्या हुआ,
कह तो सकता है,
कि देखो,
चाहे कमजोर हूँ मैं,
पर मैंने हर बार लड़ा है
साहिल पे वजूद खोती,
लहरों का जज्बा,
भी क्या अजीब है,
उसने भी किनारे की,
उस चट्टान को,
तोड़ने का सपना लिया है
और उस लहर का,
सामना करने को,
वह पत्थर भी सदियों से,
वही पड़ा है |
और एक मैं हूँ,
जो कहता हूँ की,
बिखर जाने दो मुझे,
ये वक़्त मुझे,
तोड़ने पे तुला है |
किसने लहरों से सीखा है,
हर बार वजूद खोया,
तो क्या हुआ ,
अगली कोशिश में,
हर बार जोश ही
दुगुना किया है |
और कभी उस चट्टान की,
जिद को देखो,
वह कब लहर के ,
रास्ते से हटा है |
उस पेड़ को देखो,
हजारो बार झुका है,
जीता नहीं फिर भी खड़ा है
हारा है तो क्या हुआ,
कह तो सकता है,
कि देखो,
चाहे कमजोर हूँ मैं,
पर मैंने हर बार लड़ा है
साहिल पे वजूद खोती,
लहरों का जज्बा,
भी क्या अजीब है,
उसने भी किनारे की,
उस चट्टान को,
तोड़ने का सपना लिया है
और उस लहर का,
सामना करने को,
वह पत्थर भी सदियों से,
वही पड़ा है |
और एक मैं हूँ,
जो कहता हूँ की,
बिखर जाने दो मुझे,
ये वक़्त मुझे,
तोड़ने पे तुला है |
किसने लहरों से सीखा है,
हर बार वजूद खोया,
तो क्या हुआ ,
अगली कोशिश में,
हर बार जोश ही
दुगुना किया है |
और कभी उस चट्टान की,
जिद को देखो,
वह कब लहर के ,
रास्ते से हटा है |
Wednesday, November 25, 2009
एक टुकड़ा अरमान !
मैं चला था
जानिबे मंजिल,
लेकर बस इतना सा सामान;
टुकड़ा टुकड़ा जीना,
टुकड़ा टुकड़ा अरमान,
टुकड़े टुकड़े ज़िन्दगी,
और
एक मुट्ठी आसमान |
फिर तुम आये,
कुछ तार जोड़े तुमने ,
कुछ और टुकड़े लाकर,
मेरे जीवन को किया पूरा,
मेरे अरमानो को
आकार दिया |
और फिर कर दी,
जाने की बात,
ना लौट के आने की बात |
भूल गए तुम,
की मुट्ठी अभी भी बंद है,
तुम्हारे हाथो तले |
तुम ले गए ,
जाते जाते,
वो सारा आसमान,
बस रह गया मैं,
एक टुकड़ा अरमान,
और,
तेरा ढेर सारा एहसान !
जानिबे मंजिल,
लेकर बस इतना सा सामान;
टुकड़ा टुकड़ा जीना,
टुकड़ा टुकड़ा अरमान,
टुकड़े टुकड़े ज़िन्दगी,
और
एक मुट्ठी आसमान |
फिर तुम आये,
कुछ तार जोड़े तुमने ,
कुछ और टुकड़े लाकर,
मेरे जीवन को किया पूरा,
मेरे अरमानो को
आकार दिया |
और फिर कर दी,
जाने की बात,
ना लौट के आने की बात |
भूल गए तुम,
की मुट्ठी अभी भी बंद है,
तुम्हारे हाथो तले |
तुम ले गए ,
जाते जाते,
वो सारा आसमान,
बस रह गया मैं,
एक टुकड़ा अरमान,
और,
तेरा ढेर सारा एहसान !
Thursday, November 19, 2009
दीवारे
मैं जब होता हूँ अकेला
और खाली हाथ |
मैं सोचता हूँ,
जब अँधेरे के बारे में |
अपना सा लगता है,
मुझे दीवारों का चुपचाप
खड़ा रहना |
बिना शिकायत, सर उठाये ,
किसी की भी फिक्र से ऊपर,
खुद से बेखबर,
कभी किसी के लिए सहारा,
और कभी किसी के लिए छाव |
दीवारे बोलती नहीं,
जवाब नहीं देती,
कभी कोई व्यंग्य नहीं,
दीवारे चुप रहती है
और
मिलाती है
हां में हां
या ना,
कोई नहीं जानता |
लेकिन सबसे अच्छी साथी है
क्योकि
चुप रहती है,
और
अहंकार का मान
रखती है,
सब कुछ चुपचाप सुनकर |
और खाली हाथ |
मैं सोचता हूँ,
जब अँधेरे के बारे में |
अपना सा लगता है,
मुझे दीवारों का चुपचाप
खड़ा रहना |
बिना शिकायत, सर उठाये ,
किसी की भी फिक्र से ऊपर,
खुद से बेखबर,
कभी किसी के लिए सहारा,
और कभी किसी के लिए छाव |
दीवारे बोलती नहीं,
जवाब नहीं देती,
कभी कोई व्यंग्य नहीं,
दीवारे चुप रहती है
और
मिलाती है
हां में हां
या ना,
कोई नहीं जानता |
लेकिन सबसे अच्छी साथी है
क्योकि
चुप रहती है,
और
अहंकार का मान
रखती है,
सब कुछ चुपचाप सुनकर |
Monday, November 16, 2009
tum
तेरे होने से जीवन में कुछ ऐसा नया सा है ,
कि तेरे न होने का सोच के ही डर जाता हूँ मैं |
तुम मेरी हर बात को अर्थ देते हो सदा नया ,
तेरे न होने से बेमतलब सा हो जाता हूँ मैं
कि तेरे न होने का सोच के ही डर जाता हूँ मैं |
तुम मेरी हर बात को अर्थ देते हो सदा नया ,
तेरे न होने से बेमतलब सा हो जाता हूँ मैं
Thursday, November 12, 2009
तुम्हारे , टूटे हुए कुछ बाल
तुम्हारे ,
टूटे हुए कुछ बाल ,
हवा में इधर उधर ,
उड़ते है जब .
एक कहानी साथ लेकर
चलते है !
वो तुमने जिन्हें ,
इतने जतन से
सम्हाला था कभी .
अब वो एक
फ़साना
बन के रह गए ..
कभी जो उड़ते हुए
मेरे कंधे पर
आते है ..
उन
टूटे हुए बालो सा मैं
तुमसे जुदा होना
नहीं चाहता ...
इन्हें
सम्हालना ,
सवारना ,
तुम्हारा ही
अधिकार है ,
और इनकी तरह
मेरी भी फ़िक्र
बनी रहे तुम्हे
येही
मेरा स्वप्न !!
मैं रहूँगा
एहसानमंद
अगर उन टूटे
हुए बालो को देखकर ,
तुम मुझे याद करो ,
कि मैं भी इतना ही ,
ऐसा ही
करीबी था
तुम्हारा,
और
इतना ही अभिन्न ,
जिसे
एक दिन दूर जाना
पड़ेगा ,
इन टूटे हुए
बालो की तरह ..
टूटकर ...
लेकिन ,
मेरे रहने से लेकर
जाने तक के वक़्त में ,
तुम्हारे हाथ ही ,
छुएंगे ,
मुझे आखिरी बार भी ||
टूटे हुए कुछ बाल ,
हवा में इधर उधर ,
उड़ते है जब .
एक कहानी साथ लेकर
चलते है !
वो तुमने जिन्हें ,
इतने जतन से
सम्हाला था कभी .
अब वो एक
फ़साना
बन के रह गए ..
कभी जो उड़ते हुए
मेरे कंधे पर
आते है ..
उन
टूटे हुए बालो सा मैं
तुमसे जुदा होना
नहीं चाहता ...
इन्हें
सम्हालना ,
सवारना ,
तुम्हारा ही
अधिकार है ,
और इनकी तरह
मेरी भी फ़िक्र
बनी रहे तुम्हे
येही
मेरा स्वप्न !!
मैं रहूँगा
एहसानमंद
अगर उन टूटे
हुए बालो को देखकर ,
तुम मुझे याद करो ,
कि मैं भी इतना ही ,
ऐसा ही
करीबी था
तुम्हारा,
और
इतना ही अभिन्न ,
जिसे
एक दिन दूर जाना
पड़ेगा ,
इन टूटे हुए
बालो की तरह ..
टूटकर ...
लेकिन ,
मेरे रहने से लेकर
जाने तक के वक़्त में ,
तुम्हारे हाथ ही ,
छुएंगे ,
मुझे आखिरी बार भी ||
Thursday, November 5, 2009
मेरे चार शब्द,
मेरे चार शब्द,
सारे जीवन की रचना करते है,
बहुत सीमित दायरे में है,
पर सिमटे हुए नहीं है,
मेरे चार शब्द |
पहला शब्द,
भावनाओ को अभिव्यक्ति देता है,
मेरा दूसरा शब्द ,
यथार्थ को अर्थ देता है,
मेरा तीसरा शब्द,
विशमताओ को व्यर्थ कहता है,
पर मेरे चौथे शब्द की,
कोई स्पष्ट पहचान नहीं है .
मेरी कविता में ,
कोई विशेष स्थान नहीं है
पर न जाने क्यों लगता है
की खोज जारी है
पर इतना मुझे मालूम है,
चाहे खोजा जाए ,
या न खोज पाए ,
मेरी कविता तभी आकार लेती है ,
जब वह यहाँ रहता है,
कौन,
मेरा चौथा शब्द,
निश्छल, निष्कपट, निष्तब्ध ||
सारे जीवन की रचना करते है,
बहुत सीमित दायरे में है,
पर सिमटे हुए नहीं है,
मेरे चार शब्द |
पहला शब्द,
भावनाओ को अभिव्यक्ति देता है,
मेरा दूसरा शब्द ,
यथार्थ को अर्थ देता है,
मेरा तीसरा शब्द,
विशमताओ को व्यर्थ कहता है,
पर मेरे चौथे शब्द की,
कोई स्पष्ट पहचान नहीं है .
मेरी कविता में ,
कोई विशेष स्थान नहीं है
पर न जाने क्यों लगता है
की खोज जारी है
पर इतना मुझे मालूम है,
चाहे खोजा जाए ,
या न खोज पाए ,
मेरी कविता तभी आकार लेती है ,
जब वह यहाँ रहता है,
कौन,
मेरा चौथा शब्द,
निश्छल, निष्कपट, निष्तब्ध ||
तुम हारे या कदम थके तो,
जीवन व्यर्थ चला जाएगा
तुम रुके या तुम भागे तो,
श्रम का अर्थ बदल जायेगा
तुमने जो युद्ध बिच में छोडा
तो भ्रम को जीवन मिल जाएगा
तुम्हारा क्या था क्या जाएगा
बस जीवन का सत्य बदल जाएगा
सत्य बदल जाने पे,
शायद यह जीवन तो रह जाएगा,
पर लक्ष्य मृत हो जाएगा
बिना किया कुछ इस मृत जीवन को,
कोई स्वपन मेरा ही ले जाएगा
जीवन की इन अंतिम गाडियों पे,
मेरा जीवन सारी कल्पना ,
और स्वप्ना वास्तविक हो जाएगा
यही वही फिर दिन होगा,
जब अर्थ का अर्थ बदल जाएगा |
जीवन व्यर्थ चला जाएगा
तुम रुके या तुम भागे तो,
श्रम का अर्थ बदल जायेगा
तुमने जो युद्ध बिच में छोडा
तो भ्रम को जीवन मिल जाएगा
तुम्हारा क्या था क्या जाएगा
बस जीवन का सत्य बदल जाएगा
सत्य बदल जाने पे,
शायद यह जीवन तो रह जाएगा,
पर लक्ष्य मृत हो जाएगा
बिना किया कुछ इस मृत जीवन को,
कोई स्वपन मेरा ही ले जाएगा
जीवन की इन अंतिम गाडियों पे,
मेरा जीवन सारी कल्पना ,
और स्वप्ना वास्तविक हो जाएगा
यही वही फिर दिन होगा,
जब अर्थ का अर्थ बदल जाएगा |
Wednesday, November 4, 2009
तुम बहुत बड़ा बनना
तुम बहुत बड़ा बनना
इतना बड़ा
कि आकाश छू सको |
लेकिन उसको छूने की चाह में ,
पैरो की जमीन मत छोड़ना
जब उठना हो ऊंचा,
तो मुझसे कहना,
मैं गोद में उठा लूँगा तुम्हे,
और तुम्हारी जमीन को ,
सलामत रखूँगा
अपने पैरो के तले |
~-मयंक
इतना बड़ा
कि आकाश छू सको |
लेकिन उसको छूने की चाह में ,
पैरो की जमीन मत छोड़ना
जब उठना हो ऊंचा,
तो मुझसे कहना,
मैं गोद में उठा लूँगा तुम्हे,
और तुम्हारी जमीन को ,
सलामत रखूँगा
अपने पैरो के तले |
~-मयंक
Tuesday, November 3, 2009
tum aur main
ना तुम कुछ बोलो ... ना हम कुछ सुने ..
इसका मतलब तो ये नहीं की बात पूरी नहीं है .
कभी समझने के लिए इतना वक़्त नहीं चाहिए,
ये दिल की बात है , तुम गुनगुनाओ मैं गाऊंगा
तेरे अन्दर अगर दुनिया देखी है मैंने अपनी ,
तुम जगह न दोगे तो राह में भी सो जाऊँगा ..
तेरी हर बात पूरी करने को अल्फाज़ मेरे पास है ,
बस तुम सोचते जाना , मैं दिल में लिखता जाऊँगा ...
मैं तुम्हारी ज़िन्दगी का सच हूँ मेरे दोस्त ,
इसे ज्यादा मत उलझाना , मैं गुम हो जाऊँगा
इसका मतलब तो ये नहीं की बात पूरी नहीं है .
कभी समझने के लिए इतना वक़्त नहीं चाहिए,
ये दिल की बात है , तुम गुनगुनाओ मैं गाऊंगा
तेरे अन्दर अगर दुनिया देखी है मैंने अपनी ,
तुम जगह न दोगे तो राह में भी सो जाऊँगा ..
तेरी हर बात पूरी करने को अल्फाज़ मेरे पास है ,
बस तुम सोचते जाना , मैं दिल में लिखता जाऊँगा ...
मैं तुम्हारी ज़िन्दगी का सच हूँ मेरे दोस्त ,
इसे ज्यादा मत उलझाना , मैं गुम हो जाऊँगा
Wednesday, October 28, 2009
Tuesday, October 27, 2009
हार सिखाती है आगे बढो,
हार सिखाती है आगे बढो,
थक गए हो तो भी लडो,
जो जगह छिन चुकी है तुमसे,
कुछ नहीं तो उसी की खातिर बढो,
एक इमारत गिर चुकी है,
श्रेष्ठता की,
उसे फिर बनाओ,
उसे फिर गढो..
पथ चाहे कितना दुर्गम हो,
चलते रहो और आगे बढो,
बहुत प्रश्न आने बाकि है अभी,
उनके लिए एक उदहारण गढो,
मंजिल जब आ जाए पास बहुत,
तब समझेगे,
कि आसमान से ऊंचा कुछ भी नहीं,
संकल्प की सीढ़ी पर चढो ||
थक गए हो तो भी लडो,
जो जगह छिन चुकी है तुमसे,
कुछ नहीं तो उसी की खातिर बढो,
एक इमारत गिर चुकी है,
श्रेष्ठता की,
उसे फिर बनाओ,
उसे फिर गढो..
पथ चाहे कितना दुर्गम हो,
चलते रहो और आगे बढो,
बहुत प्रश्न आने बाकि है अभी,
उनके लिए एक उदहारण गढो,
मंजिल जब आ जाए पास बहुत,
तब समझेगे,
कि आसमान से ऊंचा कुछ भी नहीं,
संकल्प की सीढ़ी पर चढो ||
Sunday, October 25, 2009
मेरी खिड़की से आसमान नज़र आता है
मेरी खिड़की से आसमान नज़र आता है
पर मेरी छत से छोटा है ,
क्योकि बेहतर वही है जो ,
हाथ आता है ...
मेरी चादर मेरे पैरो से ,
बड़ी ही रखना मेरे खुदा ..
कि जरूरत के वक़्त ...
एक और समा जाता है ...
मैं इतना अधिकार तो नहीं रखता ,
पर इतना वक़्त देना ,
कि मैं कह सकूँ ..
वो सब कुछ...
जो हर बार रह जाता है...
कभी कभी कहना बहुत होता है..
पर वक़्त की इस साजिश में
पर मेरी छत से छोटा है ,
क्योकि बेहतर वही है जो ,
हाथ आता है ...
मेरी चादर मेरे पैरो से ,
बड़ी ही रखना मेरे खुदा ..
कि जरूरत के वक़्त ...
एक और समा जाता है ...
मैं इतना अधिकार तो नहीं रखता ,
पर इतना वक़्त देना ,
कि मैं कह सकूँ ..
वो सब कुछ...
जो हर बार रह जाता है...
कभी कभी कहना बहुत होता है..
पर वक़्त की इस साजिश में
कि वक़्त बहुत है ...
सारा वक़्त बीत जाता है..
सारा वक़्त बीत जाता है..
Wednesday, October 21, 2009
मैं प्रश्न बनना चाहता
मैं प्रश्न बनना चाहता हूँ,
और छोड़ देना चाहता हूँ,
कोशिश,
गंभीर होने की,
व्यापक,
निरर्थक उत्तर की तरह|
बस कुछ ऐसा,
की जो निकले ,
तो बाकी सभी ,
उसे हल करे,
मैं खुद को,
तलाशना बंद करके ,
ये जिम्मेदारी,
अब औरो को देकर,
एक प्रश्न की तरह,
सदैव ,
बना रहना चाहता हूँ,
की हर नयी पीढी,
आये,
मेरा उत्तर खोजे,
मुझे हल करे,
और मैं हमेशा वही रहू,
इसीलिए मैं प्रश्न बनना चाहता हूँ !!
Tuesday, October 20, 2009
मैं भी इंसान हूँ.
जीवन के इन अँधेरे कटीले रास्तो पर ,
ह्रदय पर इच्छाओ का बोझ ढोकर
मन में संदेह के बीज बोकर ,
बढ़ना चाहता हूँ आगे, पर बढू कैसे ..
क्योकि हर बार कोई
अपरिचित अनजाना व्यक्ति,
कुछ कदम साथ चलकर,
जाने किधर चला जाता है ,
इन अंधेरो से होकर ..
अब मैंने भी ये सोच लिया है ,
उसके पीछे ही सही,
पर मैं भी अपनी मंजिल तलाश लूँगा
सारे जहाँ को अपनी मिसाल दूंगा,
बस यही है अब मन में,
कि दिखा दूं मैं भी महान हूँ,
और यही मारा जाता हूँ,
क्योकि मैं भी इंसान हूँ..
Sunday, October 18, 2009
main nahi jaanta
मेरी प्यास को किसी दरिया कि तलाश है \
आँखों को लगता है कि कोई ख्वाब आस पास है ...
मैं तनहा नहीं हूँ यहाँ हर किसी की तरह ,
ये तो आदतन अकेले होने का अहसास है ..
मेरी कहानियो का अंत मैं ही नहीं जानता ...
लिखता तो मैं हूँ पता नहीं कलम किसके पास है..
मैं जिसको समझता हूँ सबसे अजीज दिल के करीब,
ये जख्म जो दिख रहा है उसी का उधार है...
मेरी राहो में इतने चौराहे किसने बना डाले है..
मैं नहीं जानता कौन मेरी इस जिन्दगी का ठेकेदार है
आँखों को लगता है कि कोई ख्वाब आस पास है ...
मैं तनहा नहीं हूँ यहाँ हर किसी की तरह ,
ये तो आदतन अकेले होने का अहसास है ..
मेरी कहानियो का अंत मैं ही नहीं जानता ...
लिखता तो मैं हूँ पता नहीं कलम किसके पास है..
मैं जिसको समझता हूँ सबसे अजीज दिल के करीब,
ये जख्म जो दिख रहा है उसी का उधार है...
मेरी राहो में इतने चौराहे किसने बना डाले है..
मैं नहीं जानता कौन मेरी इस जिन्दगी का ठेकेदार है
नाम क्या है
अपनी आँखों मैं समंदर थम रखा है ..
जैसे मयखाने मैं हो , और भरा जाम रखा है .
ज़िन्दगी कि जरुरत किसे है ...
हमने दामन मैं , मौत का सामान रखा है .
शाही अंदाज हैं अपने ...
काली रातों का नाम , शाम रखा है .
वो साँसों और धडकनों को गिनाते हैं ...
और हमने मौत का नाम , आराम रखा है .
लो छूट गयी आज वोह पतंग भी ...
उसने अपना ख्वाब , आसमान रखा है .
उन्हें नाज है अपनी अदाओं पर ...
जाने किसने , उनका अरमान रखा है .
नहीं लड़ -खडाएंगे , हम और ...
हमने नशे को , बाँहों मैं थाम रखा है .
वोह कहतें हैं , क्या कमाया मैंने ...
अभी भी थोडा सा अभिमान रखा है .
अभी काफी जिरहें बाकी हैं ज़िन्दगी से ...
दामन मैं अभी थोडा ईमान रखा है .
यूं देखा मुझे , कि झाँका आत्मा तक ...
कह दो उनसे, अभी भी आत्मा -सम्मान रखा है .
अलहडो कि तरह ही जीते गए ...
ज़िन्दगी को बहुत आसान रखा है .
यूँ ही बदलते रहे किस्मते कई ...
पर खुद को गुमनाम रखा है .
और किसी ने पुँछ ही लिया , आखिर ...
नाम क्या है ...
क्या बताते ,
कि एक माँ है ;
जो शैतान कहती है ..
और दूसरा ज़माने ने ,
नाकाम रखा है .
Thursday, October 1, 2009
जो कभी हुई नहीं ...
एक शाम याद है जो कभी ढली नहीं ..
एक सुबह का इंतज़ार है जो कभी हुई नहीं ...
उस घर के हालात क्या होगे , किस से पूछे ..
ना कोई हँसा , मैंने कोई चीख भी सुनी नहीं...
हर दर्द की दवा मौजूद है इस बाज़ार में ..
पर उस भूखे को रोटी की दुआ भी नहीं ..
उसको देखकर सासों का थम जाना वाजिब है ...
वो इस हालात में भी जिंदा है , मरा नहीं ...
दुश्मनी के त्यौहार बहुत पुराने नहीं हुए ..
दंगो से ज्यादा दिवाली की आवाज़ कभी हुई नहीं ..
बेहतर है हम तुम चुप ही रहे इस बात पर ...
बख्सा है हमको की उसने अपनी आवाज़ अभी सुनी नहीं ..
तमाशों और ज़िन्दगी में फर्क ज्यादा नहीं रहा अब ..
यहाँ हिचकियाँ और वहां सिर्फ तालियाँ बजती रही ...
मैं स्वार्थी और चालाक था, बच पाया इस जाल से ...
देखो वह कितनो की अंग्लुइया इस यज्ञ में जल रही ...
फुर्सत रही तो वो कभी सोचेंगे उसके हश्र को ...
अभी तो वो व्यस्त हैं , अंगुलिया अभी कुछ गिन रही ..
एक सुबह का इंतज़ार है जो कभी हुई नहीं ...
उस घर के हालात क्या होगे , किस से पूछे ..
ना कोई हँसा , मैंने कोई चीख भी सुनी नहीं...
हर दर्द की दवा मौजूद है इस बाज़ार में ..
पर उस भूखे को रोटी की दुआ भी नहीं ..
उसको देखकर सासों का थम जाना वाजिब है ...
वो इस हालात में भी जिंदा है , मरा नहीं ...
दुश्मनी के त्यौहार बहुत पुराने नहीं हुए ..
दंगो से ज्यादा दिवाली की आवाज़ कभी हुई नहीं ..
बेहतर है हम तुम चुप ही रहे इस बात पर ...
बख्सा है हमको की उसने अपनी आवाज़ अभी सुनी नहीं ..
तमाशों और ज़िन्दगी में फर्क ज्यादा नहीं रहा अब ..
यहाँ हिचकियाँ और वहां सिर्फ तालियाँ बजती रही ...
मैं स्वार्थी और चालाक था, बच पाया इस जाल से ...
देखो वह कितनो की अंग्लुइया इस यज्ञ में जल रही ...
फुर्सत रही तो वो कभी सोचेंगे उसके हश्र को ...
अभी तो वो व्यस्त हैं , अंगुलिया अभी कुछ गिन रही ..
आदत है
अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की,
जब जब ज़िन्दगी ने परखना चाह ,
हमने नहीं की कोशिश आजमाने की ....
बस चलते रहे मुस्कुराते रहे ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ,
कोई पसंद आया तो रख लिया दिल में ,
जरूरत न समझी कभी बताने की ..
अब उनको इस चहरे से दिक्कते होने लगी ..
हमें हिदायत दे डाली बदल जाने की ...
कोई बताये की मुस्कुराना कैसे छोडे ,
यही तो एक दवा है ग़म छुपाने की ...
अब तो मौत भी बोझ उठाने से मना करती है ,
ज़िन्दगी भी चुपचाप गुज़र जाया करती है ,
कोई कहता है की दरख्तों से ठहरे हुए क्यों हो ,
क्या सजा मिली है मुझे खुद पर खिलखिलाने की ,
मैं क्या कहूं क्या समझाऊंगा उन्हें ,
सीने मैं कितने ख्वाब दफ्नाऊंगा मैं ,
मेरे पैरों में वो लड़खादाहत आई है अभी ,
मौत भी आज देखकर मुझे मुस्कुराई है अभी ,
बस निकलने का वक़्त बहुत करीब आया है ,
ज़िन्दगी ने आज फिर दामन छुडाया है ,
पर अपनी तो आदत रही है मुस्कुराने की ,
अब तो बारी है ज़िन्दगी की मुह छुपाने की ,
मुझे नहीं है शिकायत -शिकवा ज़िन्दगी से कोई ,
उसकी तो कहानी है सदियों से दामन छुडाने की ,
हम तो हर आहट पर आँखें खोल लेते हैं ,
अब तो मौत ने भी मोहलत दे दी है उनके आने की ..
कौन बदलेगा इस वक़्त को आगे बढ़ने से ,
कौन भीगेगा रेत का तूफ़ान होने से ,
यहाँ तो दुकाने है आंसुओ की कीमत लगाने की ,
अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की
युही हर बार दिल पे चोट खाने की,
जब जब ज़िन्दगी ने परखना चाह ,
हमने नहीं की कोशिश आजमाने की ....
बस चलते रहे मुस्कुराते रहे ,
लोग आते रहे , लोग जाते रहे ,
कोई पसंद आया तो रख लिया दिल में ,
जरूरत न समझी कभी बताने की ..
अब उनको इस चहरे से दिक्कते होने लगी ..
हमें हिदायत दे डाली बदल जाने की ...
कोई बताये की मुस्कुराना कैसे छोडे ,
यही तो एक दवा है ग़म छुपाने की ...
अब तो मौत भी बोझ उठाने से मना करती है ,
ज़िन्दगी भी चुपचाप गुज़र जाया करती है ,
कोई कहता है की दरख्तों से ठहरे हुए क्यों हो ,
क्या सजा मिली है मुझे खुद पर खिलखिलाने की ,
मैं क्या कहूं क्या समझाऊंगा उन्हें ,
सीने मैं कितने ख्वाब दफ्नाऊंगा मैं ,
मेरे पैरों में वो लड़खादाहत आई है अभी ,
मौत भी आज देखकर मुझे मुस्कुराई है अभी ,
बस निकलने का वक़्त बहुत करीब आया है ,
ज़िन्दगी ने आज फिर दामन छुडाया है ,
पर अपनी तो आदत रही है मुस्कुराने की ,
अब तो बारी है ज़िन्दगी की मुह छुपाने की ,
मुझे नहीं है शिकायत -शिकवा ज़िन्दगी से कोई ,
उसकी तो कहानी है सदियों से दामन छुडाने की ,
हम तो हर आहट पर आँखें खोल लेते हैं ,
अब तो मौत ने भी मोहलत दे दी है उनके आने की ..
कौन बदलेगा इस वक़्त को आगे बढ़ने से ,
कौन भीगेगा रेत का तूफ़ान होने से ,
यहाँ तो दुकाने है आंसुओ की कीमत लगाने की ,
अपनी तो आदत है मुस्कुराने की ,
युही हर बार दिल पे चोट खाने की
तमन्ना हूँ
तमन्ना हूँ , पूरा मत करना ,
ख़त्म हो जाऊँगा मैं ,
एक सपना ही तो हूँ पूरा कर देना
वर्ना दफ़न हो जाऊँगा मैं ...
कही से कोई आवाज़ आये
तो ठिठककर सुन लेना ,
वर्ना आवाज़ के इन जंगलों में ,
गुम हो जाऊँगा मैं .
दीवारें उग रही है
दरख्तों की तरह यहाँ पर ,
पत्थेर के सूखे पत्तों सा
सुख ही जाऊँगा मैं ,
अपने हर रास्ते से
हटा देना मुझको तुम ,
पात्थर ही तो हूँ
ठोकर मार जाऊँगा मैं ,
एक नगमा ही रह गया ,
किसी महफिल में न कहना ,
वर्ना आज की रात ही बस ,
फिर ख़त्म हो जाऊँगा मैं ..
ख़त्म हो जाऊँगा मैं ,
एक सपना ही तो हूँ पूरा कर देना
वर्ना दफ़न हो जाऊँगा मैं ...
कही से कोई आवाज़ आये
तो ठिठककर सुन लेना ,
वर्ना आवाज़ के इन जंगलों में ,
गुम हो जाऊँगा मैं .
दीवारें उग रही है
दरख्तों की तरह यहाँ पर ,
पत्थेर के सूखे पत्तों सा
सुख ही जाऊँगा मैं ,
अपने हर रास्ते से
हटा देना मुझको तुम ,
पात्थर ही तो हूँ
ठोकर मार जाऊँगा मैं ,
एक नगमा ही रह गया ,
किसी महफिल में न कहना ,
वर्ना आज की रात ही बस ,
फिर ख़त्म हो जाऊँगा मैं ..
मैं गीता औ' कुरान पढ़ रहा हूँ
कत्ल और वध के मतलब में उलझ रहा हूँ..
आजकल मैं गीता औ' कुरान पढ़ रहा हूँ |
मुझे ये मतलब समझ में नहीं आते जब..
इसीलिए लोगो को ये बातें समझ रहा हूँ |
मुझे इंसान बनना था, लेकिन सारा फायदा,
फिरकापरस्त होने में ही समझ पा रहा हूँ |
देखो मुझे ही आज ये सारा ज़हर पीना है ..
मैं अपनी इंसानी हैवानियत को बढा रहा हूँ|
इंसान होने में इंसानियत नज़र नहीं आती
अब मैं भी खुदको मज़हबी बना रहा हूँ |
अब मुझे तरक्की ही तरक्की दिख रही है,
मैं भी कुछ लोगो का भगवान बन रहा हूँ |
आजकल मैं गीता औ' कुरान पढ़ रहा हूँ |
मुझे ये मतलब समझ में नहीं आते जब..
इसीलिए लोगो को ये बातें समझ रहा हूँ |
मुझे इंसान बनना था, लेकिन सारा फायदा,
फिरकापरस्त होने में ही समझ पा रहा हूँ |
देखो मुझे ही आज ये सारा ज़हर पीना है ..
मैं अपनी इंसानी हैवानियत को बढा रहा हूँ|
इंसान होने में इंसानियत नज़र नहीं आती
अब मैं भी खुदको मज़हबी बना रहा हूँ |
अब मुझे तरक्की ही तरक्की दिख रही है,
मैं भी कुछ लोगो का भगवान बन रहा हूँ |
मैं तो उस आदत सा था
मैं तो उस आदत सा था जो छोड़ दी तुमने ,
अब वो खामोशी हूँ जो ओढ़ ली है तुमने ,
मैं तो पनाहों की तलाश में भटकता ही रहा ,
मेरी कुछ उलझी सी राहे थी जो रोक दी तुमने ,
यहाँ तो अब खून निकले तो भी रंग नहीं दिखता
अब ये तो वो शराब है जो छोड़ दी मैंने ,
साँसे उधार मांग रही थी ज़िन्दगी मुझसे ,
ज़रूरतमंद देखा तो साँसे भी छोड़ दी मैंने ,
मैं तो अब हैरान हूँ कि चलू तो कैसे चलूँ ,
पैरों तले एक ज़मीन थी जो खीच ली तुमने ,
इस बेसुध ज़िन्दगी का बोझ कैसे उठाऊंगा मैं ,
अब वो बांह ही नहीं रही जो मरोड़ी थी तुमने ,
अब इस लाश कि रगों में लहू बहे तो कैसे बहे ,
जिंदा था तब सीधे दिल पर ही तो चोट कि थी तुमने ........
अब वो खामोशी हूँ जो ओढ़ ली है तुमने ,
मैं तो पनाहों की तलाश में भटकता ही रहा ,
मेरी कुछ उलझी सी राहे थी जो रोक दी तुमने ,
यहाँ तो अब खून निकले तो भी रंग नहीं दिखता
अब ये तो वो शराब है जो छोड़ दी मैंने ,
साँसे उधार मांग रही थी ज़िन्दगी मुझसे ,
ज़रूरतमंद देखा तो साँसे भी छोड़ दी मैंने ,
मैं तो अब हैरान हूँ कि चलू तो कैसे चलूँ ,
पैरों तले एक ज़मीन थी जो खीच ली तुमने ,
इस बेसुध ज़िन्दगी का बोझ कैसे उठाऊंगा मैं ,
अब वो बांह ही नहीं रही जो मरोड़ी थी तुमने ,
अब इस लाश कि रगों में लहू बहे तो कैसे बहे ,
जिंदा था तब सीधे दिल पर ही तो चोट कि थी तुमने ........
शब्दों के जाल
शब्दों के जाल में उलझा हुआ जीवन,
कितना नीरस होता है,
अपनी वास्तविकता से कोसो दूरी पर,
याठार्थ से बहुत ऊपर
बहुत उलझा हुआ
की जितना निकलने की कोशिश करो
उतना हिया नए जाल में फसता है .
वो सब लोग जो,
इस जाल में फस हुआ मुझे देख रहे है,
मेरी इस स्थिति से ,
अनुभव समेत रहे हैं,
सावधान हो रहे है,
वे कितना भी सजग रहें
फसना उन्हें भी है,
शब्दों के जाल में.
क्योकि मैं भी इतना ही सजग था
पर जो जाल अपना ही बुना हो
वो प्रारब्ध होता है.
देखा है कभी ,
किसी मकडी को जाल बनाते,
वह हाथ से बनता है,
और यह दिमाग से,
पर,
अंत वही होता है ,
दोनों का,
एक साथ उलझना.
इसीलिए,
जब मैं शब्दों के इस जाल में,
फसा हुआ हूँ,
अनुभव मत समेटो,
मेरी और देखो,
यह जाल जो मैंने बुना था,
कहा जानता था,
की अपने लियेही चुना था.,
इसीलिए चेतन पर चढ़े हुए
अनुभव की गर्द साफ़ करो,
कितना भी सजग कदम रखो,
जब फसना ही है तो,
मेरे अनुभवसे काम करो,
आज और अभी अपने सारे,
जाल साफ़ करो,
फिर न कोई दूसरा फसेगा,
न तुम फसोगे ,
पर तुम सबके लिए मैं अंतिम
पाठ रहंगा,
अपने ही जाल में फस हुआ,
पर संतुष्टि है,
किसी बहाने याद तो रहूँगा !!
कितना नीरस होता है,
अपनी वास्तविकता से कोसो दूरी पर,
याठार्थ से बहुत ऊपर
बहुत उलझा हुआ
की जितना निकलने की कोशिश करो
उतना हिया नए जाल में फसता है .
वो सब लोग जो,
इस जाल में फस हुआ मुझे देख रहे है,
मेरी इस स्थिति से ,
अनुभव समेत रहे हैं,
सावधान हो रहे है,
वे कितना भी सजग रहें
फसना उन्हें भी है,
शब्दों के जाल में.
क्योकि मैं भी इतना ही सजग था
पर जो जाल अपना ही बुना हो
वो प्रारब्ध होता है.
देखा है कभी ,
किसी मकडी को जाल बनाते,
वह हाथ से बनता है,
और यह दिमाग से,
पर,
अंत वही होता है ,
दोनों का,
एक साथ उलझना.
इसीलिए,
जब मैं शब्दों के इस जाल में,
फसा हुआ हूँ,
अनुभव मत समेटो,
मेरी और देखो,
यह जाल जो मैंने बुना था,
कहा जानता था,
की अपने लियेही चुना था.,
इसीलिए चेतन पर चढ़े हुए
अनुभव की गर्द साफ़ करो,
कितना भी सजग कदम रखो,
जब फसना ही है तो,
मेरे अनुभवसे काम करो,
आज और अभी अपने सारे,
जाल साफ़ करो,
फिर न कोई दूसरा फसेगा,
न तुम फसोगे ,
पर तुम सबके लिए मैं अंतिम
पाठ रहंगा,
अपने ही जाल में फस हुआ,
पर संतुष्टि है,
किसी बहाने याद तो रहूँगा !!
Wednesday, September 30, 2009
क्या क्या समेटना है .. क्या क्या छोड़कर ..
मेरी फितरत में नहीं है ऊचा उड़ना ...
मेरे पर कभी मेरा साथ नहीं देते ..
मेरी उडानों में तेरे होने कि कमी है
कभी हवा और कभी आसमा साथ नहीं देते ..
मैं अपने हालात को देखकर हैरान हूँ ..
सांस लेता हूँ वो भी उधार मागकर ..
मेरी तन्हाइयो ने बहुत साथ दिया है मेरा ...
हर दफा आ गई मेरे पास मुझे अकेला जानकार ...
नहीं समझ पता कि गरज क्या है मेरी ..
.क्या क्या समेटना है .. क्या क्या छोड़कर ..
क्या मयस्सर होगा मेरा खुदा भी नहीं जानता
सब कुछ दिया है उसने रहमते छोड़कर ,,
सबके अपने हिमालय है , अपने अपने समंदर ..
और डूब रहा हूँ अपने ही समंदर पीकर ..
अपने ही हिमालय से कूदना हसरत थी सदा से ,
और हैरान हूँ क्यों गिरा , जब गिरा हूँ टूटकर ..
समेत लो सारी बाते ,के बिकेगे आज सरे -बाज़ार ,
कंगाल ही गए हैं , सब कुछ यहाँ बेचकर ,
बिकुंगा तो बोली भी लगेगी बेहतर मुझसे ही ,
और फिर तू सो पायेगा , सरेआम मुझे बेचकर ..
खुद को खोजने में गुम हो गया हूँ मैं,
सब और अँधेरा कर दिया मुझे देखकर ,
मैं अपने वजूद को तलाशु या उसे ढूँढू ,
हारूँगा मैं ही, यहाँ कुछ न कुछ छोड़कर !!
मेरे पर कभी मेरा साथ नहीं देते ..
मेरी उडानों में तेरे होने कि कमी है
कभी हवा और कभी आसमा साथ नहीं देते ..
मैं अपने हालात को देखकर हैरान हूँ ..
सांस लेता हूँ वो भी उधार मागकर ..
मेरी तन्हाइयो ने बहुत साथ दिया है मेरा ...
हर दफा आ गई मेरे पास मुझे अकेला जानकार ...
नहीं समझ पता कि गरज क्या है मेरी ..
.क्या क्या समेटना है .. क्या क्या छोड़कर ..
क्या मयस्सर होगा मेरा खुदा भी नहीं जानता
सब कुछ दिया है उसने रहमते छोड़कर ,,
सबके अपने हिमालय है , अपने अपने समंदर ..
और डूब रहा हूँ अपने ही समंदर पीकर ..
अपने ही हिमालय से कूदना हसरत थी सदा से ,
और हैरान हूँ क्यों गिरा , जब गिरा हूँ टूटकर ..
समेत लो सारी बाते ,के बिकेगे आज सरे -बाज़ार ,
कंगाल ही गए हैं , सब कुछ यहाँ बेचकर ,
बिकुंगा तो बोली भी लगेगी बेहतर मुझसे ही ,
और फिर तू सो पायेगा , सरेआम मुझे बेचकर ..
खुद को खोजने में गुम हो गया हूँ मैं,
सब और अँधेरा कर दिया मुझे देखकर ,
मैं अपने वजूद को तलाशु या उसे ढूँढू ,
हारूँगा मैं ही, यहाँ कुछ न कुछ छोड़कर !!
Tuesday, September 29, 2009
सिर्फ अदाकार ही बसते हैं यहाँ पर
सिर्फ अदाकार ही बसते हैं यहाँ पर ,
किसी के आंसू तुम्हे खारे नहीं मिलेंगे ...
जिनसे करवाओगे अपने जख्मो का इलाज ,
वही बा इत्मिनान तेरा सर कलम करेंगे ...
यहाँ सच से जुबान फिरती ही रहती है ,
तू कुछ भी कर ले लोग बुरा कहेंगे ..
चीखें सुनोगे यहाँ तो डर जाओगे ,
हंसने के अंदाज़ भी यहाँ जुदा मिलेंगे ,
कौन भरोसा करेगा तेरा यहाँ पर ,
इस शब्द के जानकार ही यहाँ नहीं मिलेंगे ...
फिरते ही रहना एक दोस्त की तलाश में तुम ,
यहाँ शकल में सिर्फ दुश्मन ही मिलेंगे ,
यहाँ तेरी बातों का कोई मोल नहीं है ,
तुझे सुन ने वाले नहीं खरीददार ही मिलेंगे ,
जला दो अपनी किताबों से ख्वाबों के पन्ने ,
कितना भी खूबसूरत हो लोग बकवास कहेंगे ..
मेरा चेहरा अब किसी की पहच्हन में नहीं आता .
जो कभी अच्छा कहते थे वही अब गिरा हुआ कहेंगे ..
किसी के आंसू तुम्हे खारे नहीं मिलेंगे ...
जिनसे करवाओगे अपने जख्मो का इलाज ,
वही बा इत्मिनान तेरा सर कलम करेंगे ...
यहाँ सच से जुबान फिरती ही रहती है ,
तू कुछ भी कर ले लोग बुरा कहेंगे ..
चीखें सुनोगे यहाँ तो डर जाओगे ,
हंसने के अंदाज़ भी यहाँ जुदा मिलेंगे ,
कौन भरोसा करेगा तेरा यहाँ पर ,
इस शब्द के जानकार ही यहाँ नहीं मिलेंगे ...
फिरते ही रहना एक दोस्त की तलाश में तुम ,
यहाँ शकल में सिर्फ दुश्मन ही मिलेंगे ,
यहाँ तेरी बातों का कोई मोल नहीं है ,
तुझे सुन ने वाले नहीं खरीददार ही मिलेंगे ,
जला दो अपनी किताबों से ख्वाबों के पन्ने ,
कितना भी खूबसूरत हो लोग बकवास कहेंगे ..
मेरा चेहरा अब किसी की पहच्हन में नहीं आता .
जो कभी अच्छा कहते थे वही अब गिरा हुआ कहेंगे ..
सब्र सा
सब्र सा ठहरा हुआ हूँ सदियों से ,
कब का पानी सा बह गया होता ,
रास्ते का पत्थर बनके रहा हूँ ,
वरना कब का धुल सा उढ़ गया होता ...
ये ज़िन्दगी साँसों सी ही चलती रही ,
मैं बस धड़कने ही गिनता रहा ,
बहुत सुकून है तनहा रहने में ,
मन तो बस भीड़ में ही खोता रहा ...
क्या , कहाँ किसके दिल में कौन बसा ...
मैं तो बस इंतज़ार ही करता रहा .....
तुम ना आये किसी दस्तक के साथ ,
मैं आहटों पर ही इख्तियार करता रहा ,
वक़्त बड़ा बेरहम होता रहा मुझ पर ,
मैं इंतज़ार का इज़हार ही करता रहा ,
मैं अपने "सुकून" की तलाश में सदियों जगा ,
और जब वो आया मैं सोता ही रह गया ....
कब का पानी सा बह गया होता ,
रास्ते का पत्थर बनके रहा हूँ ,
वरना कब का धुल सा उढ़ गया होता ...
ये ज़िन्दगी साँसों सी ही चलती रही ,
मैं बस धड़कने ही गिनता रहा ,
बहुत सुकून है तनहा रहने में ,
मन तो बस भीड़ में ही खोता रहा ...
क्या , कहाँ किसके दिल में कौन बसा ...
मैं तो बस इंतज़ार ही करता रहा .....
तुम ना आये किसी दस्तक के साथ ,
मैं आहटों पर ही इख्तियार करता रहा ,
वक़्त बड़ा बेरहम होता रहा मुझ पर ,
मैं इंतज़ार का इज़हार ही करता रहा ,
मैं अपने "सुकून" की तलाश में सदियों जगा ,
और जब वो आया मैं सोता ही रह गया ....
Haar
कुछ हारों के बाद,
खत्म नहीं होता संसार ..
क्योकि बहुत बड़ा है जीवन,
संभावनाए है अपार,
तो कैसे मान लिया जाए ,
कि खो दिया है मैंने ,
जीत का अधिकार !
नींदे भी जीवन के दिनों के बराबर है,
जितने दिन जीवन है उतनी ही राते हैं साथ
हर रात को सोयिये बेखबर, बेपरवाह,
हर सुबह मिलेगे नए सपने तैयार !
हार ज्यादा अपनी होती है,
आपको भी याद रहती है,
और दूसरो को भी,
उनकी जीत से ज्यादा,
आपकी हार की फ़िक्र होती है !
फिर क्यों हार को समझ नहीं पाते..
कितने लोग खुश रहेंगे ,
बस आप हारते जाइए
इसीलिए मेरी बात मानिए ..
हार को अपना हार बनाइये,
और कुछ नए सपनो के लिए ,
एक लम्बी नींद सो जाइए..
खत्म नहीं होता संसार ..
क्योकि बहुत बड़ा है जीवन,
संभावनाए है अपार,
तो कैसे मान लिया जाए ,
कि खो दिया है मैंने ,
जीत का अधिकार !
नींदे भी जीवन के दिनों के बराबर है,
जितने दिन जीवन है उतनी ही राते हैं साथ
हर रात को सोयिये बेखबर, बेपरवाह,
हर सुबह मिलेगे नए सपने तैयार !
हार ज्यादा अपनी होती है,
आपको भी याद रहती है,
और दूसरो को भी,
उनकी जीत से ज्यादा,
आपकी हार की फ़िक्र होती है !
फिर क्यों हार को समझ नहीं पाते..
कितने लोग खुश रहेंगे ,
बस आप हारते जाइए
इसीलिए मेरी बात मानिए ..
हार को अपना हार बनाइये,
और कुछ नए सपनो के लिए ,
एक लम्बी नींद सो जाइए..
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